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विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (ODI)

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संदर्भ:

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के अनुसार, 2024 में घरेलू कंपनियों द्वारा की गई बाहरी प्रत्यक्ष निवेश (OFDI) में लगभग 17% की वृद्धि दर्ज की गई है, जो $37.68 बिलियन तक पहुँच गई है। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के आंकड़ों के अनुसार, 2023 में कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 29 बिलियन डॉलर था।

विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (ODI):

विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (ODI) का अर्थ है, किसी कंपनी या व्यक्ति द्वारा दूसरे देश में स्थित संपत्तियों या व्यवसायों में किया गया निवेश। इसमें विदेशी व्यवसाय पर सीधे स्वामित्व और नियंत्रण करना शामिल होता है, जैसे कि विदेशी बाजारों में सहायक कंपनियाँ, संयुक्त उपक्रम, या शाखाएँ स्थापित करना।

विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (ODI) के मुख्य बिंदु:

  1. नियंत्रण और प्रभाव: विदेशी व्यवसाय पर एक महत्वपूर्ण स्तर का नियंत्रण या प्रभाव (आमतौर पर कम से कम 10% स्वामित्व) होना चाहिए।
  2. उद्देश्य: अपने संचालन का विस्तार करना, नए बाजारों तक पहुँच प्राप्त करना, संसाधनों से लाभ उठाना, या जोखिमों को विविधित करना।
  3. निवेश रूप: यह विदेशी कंपनियों, रियल एस्टेट, इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं, या अन्य संपत्तियों में निवेश के रूप में हो सकता है।
  4. भारत द्वारा निवेश के क्षेत्र: होटल, निर्माण, निर्माण सामग्री, कृषि, खनन, और सेवाएँ
  5. निवेश के लिए देश: सिंगापुर, यूएस, यूके, यूएई, सऊदी अरब, ओमानी, और मलेशिया जैसे देश।

विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (ODI) के लाभ:

  1. प्रौद्योगिकी तक बेहतर पहुंच: भारतीय कंपनियों को तकनीकी ज्ञान तक बेहतर पहुँच प्राप्त होती है।
  2. वैश्विक व्यापार का विस्तार: यह कंपनियों को वैश्विक स्तर पर व्यापार विस्तार करने का अवसर प्रदान करता है।
  3. व्यापक बाजार तक पहुँच: भारतीय कंपनियों को व्यापक बाजार तक पहुँच मिलती है, जिससे उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ती है।
  4. वैश्विक ग्राहक आधार: वैश्विक ग्राहक आधार बनाने में मदद मिलती है, जिससे राजस्व में वृद्धि होती है।

भारत में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (ODI) का ढांचा:

  1. नियमों और कानूनों का पालन:
    • विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA) 1999 की धारा 6(3)(a), FEM (Permissible Capital Account Transactions) Regulations, 2000 के तहत।
    • FEM (Transfer or Issue of any Foreign Security) Regulations, 2000
    • रिजर्व बैंक भारत (RBI) द्वारा जारी किए गए सर्कुलर
    • RBI द्वारा जारी ओडीआई पर मार्गदर्शन
    • लिबरलाइज्ड रेमिटेंस स्कीम (LRS) और एफएक्यू (जो निवासियों के लिए लागू हैं)।

निष्कर्ष

  • संयुक्त उपक्रम (JVs) और पूरी तरह से स्वामित्व वाली सहायक कंपनियाँ (WOS) भारतीय व्यापारियों के लिए वैश्विक उपस्थिति को बढ़ाने के महत्वपूर्ण रास्ते बन गई हैं।
  • भारतीय कंपनियाँ अपनी स्वयं की सहायक कंपनियों में निवेश कर रही हैं, जो यह दर्शाता है कि वे बाहर विस्तार कर रही हैं।
  • भारतीय कंपनियों की निरंतर अंतरराष्ट्रीय पहुंच न केवल उन्हें वैश्विक स्तर पर विस्तार करने में मदद कर रही है, बल्कि भारत और अन्य देशों के बीच आर्थिक संबंधों को भी मजबूत कर रही है

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