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संभल की शाही जामा मस्जिद के सर्वे और विवाद के बाद पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम- 1991 (Places of Worship Act- 1991) को लेकर चर्चा तेज हो गई है।
पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991:
पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 का उद्देश्य पूजा स्थलों की धार्मिक स्थिति को संरक्षित करना और किसी भी धार्मिक संप्रदाय के भीतर या अन्य संप्रदायों के बीच उनके स्वरूप में परिवर्तन को रोकना है।
अधिनियम के प्रमुख प्रावधान:
- धारा 3: किसी भी पूजा स्थल को पूर्ण या आंशिक रूप से एक धार्मिक संप्रदाय से दूसरे में परिवर्तित करने पर रोक लगाती है।
- धारा 4(1): 15 अगस्त 1947 को पूजा स्थलों की धार्मिक स्थिति जिस रूप में थी, उसे अपरिवर्तित रखना अनिवार्य है।
- धारा 4(2): 15 अगस्त 1947 से पहले पूजा स्थलों की धार्मिक स्थिति से संबंधित सभी कानूनी कार्यवाही समाप्त कर दी जाती है। इसके साथ ही, नए मामलों को दर्ज करने पर भी रोक लगाई गई है।
- धारा 5 (अपवाद):
- अयोध्या (बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि) विवाद को इस अधिनियम से छूट दी गई है।
- इसके अतिरिक्त, ऐसे प्राचीन और ऐतिहासिक स्थलों को भी अधिनियम से छूट प्राप्त है जो पुरातात्त्विक स्थल और अवशेष अधिनियम, 1958 के तहत आते हैं।
- ऐसे मामले जो पहले ही निपट चुके हैं या जिनका समाधान आपसी सहमति से हो चुका है।
- अधिनियम के लागू होने से पहले हुए परिवर्तन।
- धारा 6 (दंड): पूजा स्थलों के धार्मिक स्वरूप में बदलाव का प्रयास करने पर तीन साल तक की जेल और जुर्माने का प्रावधान है।
उच्चतम न्यायालय की व्याख्या:
मई 2022 में, सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि पूजा स्थलों की धार्मिक स्थिति की जांच की जा सकती है, लेकिन ऐसी जांच से उनकी धार्मिक पहचान में कोई बदलाव नहीं होना चाहिए।
पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 से जुड़ी चिंताएं:
- न्यायिक समीक्षा की सीमा: अधिनियम न्यायालय की समीक्षा को सीमित करता है, जिससे विवाद निपटाने में न्यायपालिका की भूमिका कमजोर हो सकती है।
- 15 अगस्त 1947 की सीमा: अधिनियम में यह तिथि मनमानी और अनुचित मानी गई है, जिससे कुछ धार्मिक समुदायों के अधिकार प्रभावित हो सकते हैं।
- कानूनी चुनौतियां: अधिनियम पर कई याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें कहा गया है कि यह हिंदू, जैन, बौद्ध, और सिख समुदायों को उनके ऐतिहासिक स्थलों को पुनः प्राप्त करने से रोकता है।
- चुनिंदा मामलों में छूट: राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को अधिनियम से छूट देने पर असमानता और भेदभाव के आरोप लगे हैं।
- सांप्रदायिक तनाव: अधिनियम से जुड़े विवाद सांप्रदायिक मुद्दों को बढ़ा सकते हैं, खासकर संवेदनशील स्थलों पर।
- धर्मनिरपेक्षता पर प्रभाव: आलोचकों का मानना है कि यह अधिनियम कुछ धार्मिक समुदायों के दावों को दबाकर भारत की धर्मनिरपेक्षता को कमजोर कर सकता है।
शाही जामा मस्जिद विवाद:
- विवाद की पृष्ठभूमि: याचिकाकर्ताओं का दावा है कि संभल की 16वीं सदी की शाही जामा मस्जिद एक प्राचीन हरिहर मंदिर (हिंदू मंदिर) के स्थान पर बनाई गई थी।
- मस्जिद का निर्माण 1528 में मुगल सम्राट बाबर के सेनापति मीर हिंदू बेग ने करवाया था।
- इसकी वास्तुकला और इतिहास को लेकर मंदिर से जुड़े होने की संभावना जताई जा रही है।
- न्यायिक हस्तक्षेप: संभल जिला अदालत ने साइट का सर्वेक्षण करने का आदेश दिया।
- दूसरे सर्वेक्षण के दौरान हिंसा हुई।
- कानूनी स्थिति: मस्जिद प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम, 1904 के तहत संरक्षित स्मारक है।
- इसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित किया है।
- पूजा स्थल अधिनियम, 1991: यह अधिनियम 15 अगस्त 1947 के धार्मिक स्वरूप को बनाए रखने की बात करता है।
मस्जिद के धार्मिक स्वरूप में बदलाव की मांग अधिनियम के प्रावधानों को चुनौती देती है।