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PLI 2.0 बारे में

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संदर्भ:

PLI 2.0 योजना: उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजना के पहले चरण में प्रगति देखने के बाद, केंद्र सरकार अब PLI 2.0 योजना में संशोधन करने की संभावनाओं की जांच कर रही है।

उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना:

परिचय:

  • शुरुआत: अप्रैल 2020 में भारत की विनिर्माण क्षमताओं को बढ़ाने और वैश्विक कंपनियों को भारत में उत्पादन इकाइयाँ स्थापित करने के लिए शुरू की गई।
  • शामिल सेक्टर: 14 प्रमुख क्षेत्र, जैसे इलेक्ट्रॉनिक्स, सेमीकंडक्टर, फार्मा, विशेष इस्पात, खाद्य प्रसंस्करण आदि।
  • प्रोत्साहन – अतिरिक्त बिक्री (Incremental Sales) के आधार पर कंपनियों को लाभ दिया जाता है।

मुख्य उद्देश्य:

  • घरेलू निर्माण (Manufacturing) को बढ़ावा देना और आयात पर निर्भरता कम करना।
  • मूल उपकरण निर्माताओं (OEMs) और ठेका निर्माताओं (Contract Manufacturers) को आकर्षित करना।
  • उच्च-प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में निवेश को प्रोत्साहित करना।
  • वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं (Global Supply Chains) में भारत की भागीदारी बढ़ाना।
  • रोजगार और कौशल विकास को बढ़ावा देना।

PLI 2.0 में संभावित बदलाव: प्रोत्साहन को घरेलू मूल्य संवर्धन (Domestic Value Addition) और निर्यात वृद्धि (Incremental Exports) से जोड़ा जाएगा।

अब तक की उपलब्धियाँ और चुनौतियाँ:

  • सफल क्षेत्र – मोबाइल फोन, फार्मा, और खाद्य प्रसंस्करण।
  • धीमी प्रगति – आईटी हार्डवेयर, उन्नत रसायन (Advanced Chemicals), कपड़ा (Textiles), और विशेष इस्पात (Specialty Steel)।

वर्तमान PLI ढांचे की चुनौतियाँ:

  1. कम मूल्य संवर्धन (Low Value Addition):
    • प्रमुख क्षेत्रों में मूल्य संवर्धन अब भी एकल अंकों में सीमित है।
    • घरेलू आपूर्ति श्रृंखला (Supply Chain) के गहरे एकीकरण की आवश्यकता है।
  2. वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं पर निर्भरता:
    • भारत का दूरसंचार (Telecom) और इलेक्ट्रॉनिक्स बाजार छोटा होने के कारण आपूर्ति श्रृंखला स्थानांतरित करने के लिए प्रोत्साहन सीमित हैं।
    • अर्धचालक चिप्स (Semiconductor Chips) और प्रौद्योगिकी लाइसेंसिंग में बेहतर सौदे के लिए बड़े पैमाने पर उत्पादन जरूरी है।
  3. आर्थिक पैमाने की कमी (Lack of Economies of Scale):
    • भारतीय कंपनियां चीनी और वियतनामी कंपनियों की तुलना में छोटी और कम प्रतिस्पर्धी हैं।
    • विदेशी बाजारों तक सीमित पहुंच के कारण भारतीय उत्पादों की कीमत प्रतिस्पर्धा में कमी रहती है।

PLI 2.0 योजना के लिए सिफारिशें:

  1. स्थानीयकरण (Localisation) पर जोर:
    • घरेलू विनिर्माण (manufacturing) पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूत कर अधिक मूल्यवर्धन प्राप्त करना।
    • चीनी निर्माताओं के मुकाबले प्रतिस्पर्धात्मक बढ़त हासिल करना।
  2. निर्यात को प्रमुख मानक बनाना:
    • बड़े उत्पादन के लिए निर्यात बाजारों तक पहुंच आवश्यक।
    • निर्यात से प्रतिस्पर्धा बढ़ती है और बाजार दक्षता (market efficiency) सुधरती है।
  3. विदेशी ओईएम (OEMs) की भागीदारी:
    • स्थापित आपूर्ति शृंखलाओं वाले बड़े OEM घरेलू कंपोनेंट निर्माण को बढ़ावा दे सकते हैं।
    • रणनीतिक विक्रेताओं के साथ बेहतर सौदे कर भारतीय कंपनियों को लाभ दिला सकते हैं।
  4. कंपोनेंट निर्माण पारिस्थितिकी तंत्र का विस्तार:
    • समय के साथ घरेलू कंपनियां स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय निर्माताओं को आपूर्ति कर सकती हैं।
    • ज्ञान और उत्पादकता का विस्तार पूरे विनिर्माण क्षेत्र को मजबूत करेगा।
  5. वैश्विक सफलता रणनीतियाँ:
    • जापान और दक्षिण कोरिया: विदेशी OEMs की भागीदारी से घरेलू क्षमताओं का विकास किया।
    • चीन का EV सेक्टर: टेस्ला की एंट्री का उपयोग कर घरेलू आपूर्तिकर्ताओं (vendors) को अपग्रेड किया, जिससे BYD, Xpeng, Li Auto और Nio जैसे मजबूत ब्रांड उभरे।

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