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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिकी यात्रा

सामान्य अध्ययन पेपर II: द्विपक्षीय समूह और समझौते, भारत के हितों पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव, भारत को शामिल और/या इसके हितों को प्रभावित करने वाले समूह और समझौते

चर्चा में क्यों? 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिकी यात्रा: हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से द्विपक्षीय वार्ता की। इस दौरान दोनों देशों के बीच रक्षा, ऊर्जा सुरक्षा, प्रौद्योगिकी और व्यापार के क्षेत्रों में रणनीतिक संबंधों को मजबूत करने पर सहमति बनी। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिकी यात्रा के मुख्य बिंदु:

  • व्यापक वैश्विक रणनीतिक साझेदारी:
    • यूएस-इंडिया कॉम्पैक्ट का शुभारंभ: प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रम्प ने एक नई पहल की शुरुआत की। इस पहल को “21वीं सदी के लिए यूएस-इंडिया कॉम्पैक्ट” नाम दिया गया है, जिसका मुख्य उद्देश्य सैन्य साझेदारी, त्वरित वाणिज्य, और प्रौद्योगिकी के अवसरों को उत्प्रेरित करना है। 
    • रक्षा सहयोग: भारत और अमेरिका ने यह घोषणा की कि इस वर्ष यूएस-भारत प्रमुख रक्षा साझेदारी के लिए एक नए दस वर्षीय फ्रेमवर्क पर हस्ताक्षर किए जाएंगे।
      • अमेरिकी रक्षा उत्पादों का एकीकरण: भारत की सैन्य सूची में कई महत्वपूर्ण अमेरिकी रक्षा वस्तुएं पहले ही शामिल की जा चुकी हैं, जैसे सी‑130जे सुपर हरक्यूलिस, C‑17 ग्लोबमास्टर III, P‑8I पोसीडॉन विमान, और एएच‑64ई अपाचे हेलीकॉप्टर।
      • नए रक्षा उपकरणों की खरीद: भारत ने इस वर्ष जेवलिन एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइलों और स्ट्राइकर इन्फैंट्री कॉम्बैट वाहनों के लिए नई खरीद और सह-उत्पादन व्यवस्था की घोषणा की। इसके अलावा, P-8I समुद्री गश्ती विमानों की खरीद में भी वृद्धि करने की योजना बनाई गई है। अमेरिका ने भारत को एक प्रमुख साझेदार मानते हुए F-35 विमानों की आपूर्ति का मार्ग प्रशस्त किया है।
  • स्वायत्त प्रणालियाँ: अमेरिका और भारत ने स्वायत्त प्रणालियों और उन्नत प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए एक नई पहल की शुरुआत की है, जिसका नाम है स्वायत्त प्रणाली उद्योग गठबंधन (ASIA)। इस पहल के तहत, दोनों देशों ने समुद्री प्रणालियों और काउंटर मानव रहित हवाई प्रणाली (UAS) के सह-विकास और सह-उत्पादन को बढ़ावा देने का संकल्प लिया।
  • प्रौद्योगिकी विनिमय: भारत को सामरिक व्यापार प्राधिकरण-1 (एसटीए-1) के तहत एक प्रमुख रक्षा साझेदार के रूप में मान्यता प्राप्त है। इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए, दोनों देशों ने अपने रक्षा व्यापार विनियमों की समीक्षा करने की योजना बनाई है। इसके साथ ही, रक्षा खरीद प्रणालियों को बेहतर ढंग से अनुकूलित करने के लिए पारस्परिक रक्षा खरीद (आरडीपी) समझौते पर वार्ता शुरू करने का प्रस्ताव है।
  • अभ्यास: भारत और अमेरिका ने सैन्य सहयोग को बढ़ाने के लिए कई नई पहलें शुरू की हैं। इनमें से प्रमुख है “टाइगर ट्रायम्फ” त्रि-सेवा अभ्यास, जो 2019 में शुरू किया गया था और जिसे इस वर्ष महत्वपूर्ण रूप से आयोजित किया जाएगा। 
  • व्यापार और निवेश सहयोग:
    • “मिशन 500”: प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति ट्रम्प ने “मिशन 500” नामक एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया, जिसका उद्देश्य 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को दोगुना करके 500 बिलियन डॉलर तक पहुँचाना है। 
    • द्विपक्षीय व्यापार समझौता (BTA): व्यापार संबंधों को सुदृढ़ करने के लिए, दोनों नेताओं ने 2025 के अंत तक पारस्परिक रूप से लाभकारी और बहु-क्षेत्रीय द्विपक्षीय व्यापार समझौते (BTA) के पहले चरण पर बातचीत शुरू करने की योजना की घोषणा की है। इस समझौते का उद्देश्य:
      • माल और सेवा क्षेत्र में द्विपक्षीय व्यापार को मजबूत करना।
      • टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाओं को कम करना।
      • आपूर्ति श्रृंखला एकीकरण को गहरा करना।
  • व्यापार संबंधों में सुधार: बोरबॉन, मोटरसाइकिल, आईसीटी उत्पादों और धातुओं पर भारत द्वारा टैरिफ में कमी की घोषणा की गई है।
    • दोनों देशों ने औद्योगिक वस्तुओं के अमेरिकी निर्यात और श्रम-प्रधान निर्मित उत्पादों के भारतीय निर्यात को बढ़ावा देने के लिए सहयोग की प्रतिबद्धता जताई है।
    • भारत और अमेरिका के बीच ग्रीनफील्ड निवेश से 3,000 से अधिक उच्च-गुणवत्तायुक्त रोजगारों का सृजन हुआ है।
  • ऊर्जा सुरक्षा साझेदारी:
    • वैश्विक ऊर्जा मूल्य: भारत और अमेरिका ने हाइड्रोकार्बन उत्पादन को बढ़ाने की आवश्यकता को रेखांकित किया है। इस संदर्भ में, अमेरिका ने भारत को अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) में पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल होने का संपूर्ण समर्थन किया है।
    • ऊर्जा व्यापार: दोनों देशों ने ऊर्जा सुरक्षा के प्रयासों के हिस्से के रूप में ऊर्जा व्यापार बढ़ाने की योजना बनाई है। भारत को कच्चे तेल, पेट्रोलियम उत्पादों और तरलीकृत प्राकृतिक गैस (LNG) के प्रमुख आपूर्तिकर्ता के रूप में स्थापित करने की दिशा में कार्य किया जाएगा। 
      • भारत और अमेरिका ने उन्नत छोटे मॉड्यूलर रिएक्टरों (SMRs) के विकास, तैनाती और उत्पादन में सहयोग बढ़ाने का संकल्प लिया है। 
    • भारत और अमेरिका ने असैन्य परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं। दोनों देशों ने 123 असैन्य परमाणु समझौते को पूरी तरह से साकार करने का संकल्प लिया गया है।
    • ऊर्जा कानूनों में संशोधन: भारत ने परमाणु ऊर्जा अधिनियम और सीएलएनडीए (परमाणु क्षति अधिनियम) के तहत नागरिक दायित्वों में संशोधन करने के लिए बजट में घोषणा की थी। इस कदम का स्वागत करते हुए, दोनों देशों ने सीएलएनडीए के तहत एक द्विपक्षीय व्यवस्था स्थापित करने का निर्णय लिया है। 
  • प्रौद्योगिकी और नवाचार:
    • यूएस-इंडिया ट्रस्ट पहल: दोनों देशों ने यूएस-इंडिया ट्रस्ट पहल की घोषणा की, जिसका उद्देश्य रक्षा, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), अर्धचालक, क्वांटम, जैव प्रौद्योगिकी, ऊर्जा, और अंतरिक्ष जैसे महत्वपूर्ण और उभरते क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाना है। 
    • इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास: यूएस और भारतीय निजी क्षेत्र के साथ मिलकर AI इंफ्रास्ट्रक्चर को गति देने की योजना बनाई गई है। दोनों देशों ने मिलकर अगली पीढ़ी के डेटा केंद्रों में उद्योग भागीदारी और निवेश को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता जताई है।
    • इंडस इनोवेशन: इंडस इनोवेशन को शुरू किया गया है, जो इंडस-एक्स प्लेटफॉर्म की सफलता के बाद एक नया नवाचार सेतु है। यह पहल यूएस-इंडिया उद्योग और शैक्षणिक साझेदारी को आगे बढ़ाएगी। यह पहल 21वीं सदी की आवश्यकताओं को पूरा करने और दोनों देशों में नवाचार के नेतृत्व को बनाए रखने के उद्देश्य से है।
  • अनुसंधान और विकास: भारत और अमेरिका ने महत्वपूर्ण खनिजों के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास के सहयोग को बढ़ाने की योजना बनाई है।
        • भारत और अमेरिका ने विश्वसनीय आपूर्ति श्रृंखलाओं के निर्माण के लिए अपनी प्रतिबद्धता जताई है, जिनमें सेमीकंडक्टर, महत्वपूर्ण खनिजों, उन्नत सामग्रियों और फार्मास्यूटिकल्स का समावेश है। 
  • अंतरिक्ष: भारत और अमेरिका ने 2025 को नागरिक अंतरिक्ष सहयोग के लिए एक अग्रणी वर्ष घोषित किया है। इस पहल के अंतर्गत, अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर पहला भारतीय अंतरिक्ष यात्री भेजने की योजना है। इसके अलावा, दोनों देशों ने मिलकर NISAR मिशन की योजना बनाई है, जो पृथ्वी की सतह पर परिवर्तनों को मैप करने के लिए राडार तकनीक का उपयोग करेगा।
  • बहुपक्षीय सहयोग:
    • भारत और अमेरिका ने क्वाड (QUAD) साझेदारी को मजबूत करने की दिशा में कई कदम उठाए हैं। क्वाड के चार सदस्य देशों—भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया—ने अंतर्राष्ट्रीय कानून, सुशासन, और समुद्री विवादों के शांतिपूर्ण समाधान की वकालत की है। 
    • भारत और अमेरिका ने मध्य पूर्व में सुरक्षा, कूटनीतिक परामर्श और ठोस सहयोग आने वाले समय में, भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कॉरिडोर और I2U2 समूह के माध्यम से नई पहल की योजना बनाई जा रही है।
    • भारत ने संयुक्त समुद्री सेना टास्क फोर्स में नेतृत्व की भूमिका निभाने के लिए अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त की है।

F-35 लाइटनिंग II

  • F-35 लाइटनिंग II पांचवीं पीढ़ी का अत्याधुनिक स्टील्थ लड़ाकू विमान है, जो ध्वनि से तेज गति, उन्नत सेंसर, और इलेक्ट्रॉनिक युद्ध प्रणाली जैसी विशेषताओं से लैस है।
  • रडार से बचाव के लिए F-35 अपने हथियारों को आंतरिक रूप से ले जाने में सक्षम है, जिससे इसका रडार संकेत न्यूनतम रहता है।
  • यह Mach 1.6 (ध्वनि की गति से 1.6 गुना तेज) उड़ सकता है, चाहे इसके भीतर हथियार और ईंधन पूरी तरह से भरे हों।
  • कम जोखिम वाले वातावरण में, यह बाहरी पेलोड के साथ अधिक शक्तिशाली हमला कर सकता है।
  • यह दुनिया का पहला लड़ाकू विमान है जो सबसे अधिक डेटा इकट्ठा कर, उसे जोड़कर विश्लेषण कर सकता है, जिससे इसे युद्धक्षेत्र में बड़ा सामरिक लाभ मिलता है।
  • यह दुश्मन की सेना को खोजने और ट्रैक करने, रडार को जाम करने और हमलों को बाधित करने की क्षमता रखता है।
  • इसमें Pratt & Whitney F135 इंजन लगा है, जो दुनिया का सबसे शक्तिशाली लड़ाकू इंजन है।
  • संस्करण
    • F-35A – पारंपरिक टेक-ऑफ और लैंडिंग (CTOL)।
    • F-35Bछोटे रनवे से उड़ान भरने (STOVL) और ऊर्ध्वाधर लैंडिंग की क्षमता।
    • F-35C – विमानवाहक पोतों से संचालन के लिए विशेष रूप से डिजाइन किया गया।

भारत-अमेरिका के बीच महत्त्वपूर्ण समझौते

भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक, रक्षा, परमाणु, ऊर्जा और साइबर सुरक्षा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में कई महत्त्वपूर्ण समझौते हुए हैं। ये समझौते दोनों देशों की सुरक्षा साझेदारी को मजबूत करने के साथ-साथ वैश्विक स्थिरता और विकास में भी योगदान देते हैं।

  • सैन्य सूचना समझौते की सामान्य सुरक्षा (GSOMIA) – वर्ष 2002: यह समझौता भारत और अमेरिका के बीच सैन्य सूचनाओं की सुरक्षा और गोपनीयता सुनिश्चित करता है। इसका मुख्य उद्देश्य, दोनों देशों की सेनाओं के बीच संवेदनशील सैन्य सूचनाओं के आदान-प्रदान को सुरक्षित बनाना और खुफिया जानकारी साझा करने के लिए एक सुरक्षित ढांचा तैयार करना है।
  • भारत-अमेरिका परमाणु समझौता – वर्ष 2008: यह समझौता भारत की परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में विकास और रणनीतिक सहयोग को नई दिशा देने वाला था। इसके अंतर्गत, अमेरिका ने भारत को असैन्य परमाणु तकनीक और ईंधन प्रदान करने की अनुमति दी। इस समझौते के बाद भारत को न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (NSG) से विशेष छूट मिली, जिससे वह अन्य देशों से भी परमाणु सामग्री आयात कर सकता है। भारत और अमेरिका के बीच परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना में सहयोग बढ़ा।
  • लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरैंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA) – वर्ष 2016: LEMOA भारत और अमेरिका के बीच सैन्य आपूर्ति और लॉजिस्टिक सहयोग को बढ़ाने वाला समझौता है। इसका मुख्य उद्देश्य, दोनों देशों की सेनाओं को एक-दूसरे के सैन्य ठिकानों और सुविधाओं का उपयोग करने की अनुमति, ईंधन भरने, मरम्मत और अन्य रसद आवश्यकताओं में सहयोग और इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में संयुक्त सैन्य अभियानों और मानवीय सहायता अभियानों में समन्वय को बढ़ावा देना है।
  • भारत-अमेरिका सामरिक ऊर्जा भागीदारी – वर्ष 2017: इस समझौते का उद्देश्य भारत और अमेरिका के बीच ऊर्जा सुरक्षा, स्वच्छ ऊर्जा और सतत विकास में सहयोग को बढ़ाना है। इसका मुख्य उद्देश्य, तेल और प्राकृतिक गैस के क्षेत्र में निवेश – व्यापार बढ़ाना और नवीकरणीय ऊर्जा (सौर, पवन) और परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में तकनीकी सहयोग करना है।
  • संचार संगतता और सुरक्षा समझौता (COMCASA) – वर्ष 2018: COMCASA भारत और अमेरिका की सेनाओं के बीच सुरक्षित संचार और डेटा साझा करने की सुविधा प्रदान करता है। इससे भारत को अमेरिका के उच्च-स्तरीय सैन्य संचार उपकरण तक पहुंच मिलती है। युद्धक विमानों, ड्रोन और अन्य सैन्य उपकरणों के लिए सीधे अमेरिकी सैन्य नेटवर्क से जोड़ने की सुविधा भी मिलती हैं।

भारत-अमेरिका संबंधों की प्रमुख चुनौतियाँ

भारत और अमेरिका के बीच घनिष्ठ होते रणनीतिक, सैन्य और आर्थिक संबंधों के बावजूद कई प्रमुख मुद्दों पर मतभेद और चुनौतियाँ बनी हुई हैं। ये चुनौतियाँ न केवल द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित करती हैं, बल्कि वैश्विक कूटनीति और व्यापार पर भी प्रभाव डालती हैं।

  • पाकिस्तान को लेकर भिन्न दृष्टिकोण: भारत हमेशा से पाकिस्तान द्वारा आतंकवाद को समर्थन देने के मुद्दे को उजागर करता रहा है और पाकिस्तान के प्रति सख्त नीति अपनाने की वकालत करता है। वहीं, अमेरिका ने ऐतिहासिक रूप से पाकिस्तान को आर्थिक और सैन्य सहायता प्रदान की है। हालांकि हाल के वर्षों में अमेरिका का रुख बदला है, लेकिन पाकिस्तान को लेकर अमेरिका का नरम रवैया भारत के लिए चिंता का विषय बना हुआ है।
  • अफगानिस्तान संकट: अमेरिका ने 2021 में अफगानिस्तान से अपनी सेनाएँ वापस बुलाने के बाद तालिबान शासन को स्वीकार करने की दिशा में नरम रुख अपनाया, जबकि भारत शुरू से ही लोकतांत्रिक सरकार, शिक्षा और बुनियादी सुविधाओं के समर्थन के माध्यम से अफगानिस्तान में स्थिरता लाने का पक्षधर रहा है। भारत मानता है कि तालिबान के साथ बातचीत केवल सीमित मामलों में होनी चाहिए, जबकि अमेरिका इसे एक कूटनीतिक आवश्यकता मानता है।
  • ईरान और अमेरिका के बीच संतुलन: भारत के लिए ईरान एक महत्वपूर्ण ऊर्जा आपूर्तिकर्ता और रणनीतिक साझेदार है, विशेषकर चाबहार बंदरगाह परियोजना के कारण। लेकिन अमेरिका की ईरान विरोधी नीतियाँ और प्रतिबंध भारत के लिए एक चुनौती बन जाती हैं। भारत को अमेरिका और ईरान के बीच संतुलन बनाना पड़ता है, जिससे कई बार उसके ऊर्जा आपूर्ति और रणनीतिक परियोजनाओं पर असर पड़ता है।
  • रूस पर अमेरिकी प्रतिबंध: भारत और रूस के बीच दशकों से रक्षा, ऊर्जा और व्यापार के मजबूत संबंध रहे हैं। भारत ने रूस से S-400 मिसाइल प्रणाली खरीदी, जिस पर अमेरिका की CAATSA (Countering America’s Adversaries Through Sanctions Act) प्रतिबंध नीति लागू हो सकती है। भारत के लिए रूस और अमेरिका के बीच संतुलन बनाए रखना कठिन होता जा रहा है क्योंकि अमेरिका रूस पर लगातार प्रतिबंध लगा रहा है।

UPSC पिछले वर्ष का प्रश्न (PYQ)

प्रश्न (2019): ‘भारत और यूनाइटेड स्टेट्स के बीच संबंधों में खटास के प्रवेश का कारण  वाशिंगटन का अपनी वैश्विक रणनीति में अभी तक भी भारत के लिये किसी ऐसे स्थान की खोज़ करने में विफलता है,  जो भारत के आत्म-समादर और महत्त्वाकांक्षा को संतुष्ट  कर सके।’ उपयुक्त उदाहरणों के साथ स्पष्ट कीजिये।

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