नीति आयोग ने “Automotive Industry: Powering India’s Participation in Global Value Chains” शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है। यह रिपोर्ट भारत के ऑटोमोबाइल क्षेत्र का व्यापक विश्लेषण प्रस्तुत करती है, जिसमें इस क्षेत्र में मौजूद संभावनाओं और चुनौतियों को उजागर किया गया है। साथ ही, यह रिपोर्ट भारत को वैश्विक ऑटोमोबाइल बाजारों में एक प्रमुख भागीदार के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक स्पष्ट मार्ग भी प्रदान करती है।
वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में भारत की भागीदारी को सशक्त बनाने संबंधी रिपोर्ट: प्रमुख विशेषताएँ:
- वैश्विक परिप्रेक्ष्य और रुझान (Global Perspective and Trends):
- यूरोप और अमेरिका जैसे क्षेत्रों में उभरते बैटरी निर्माण केंद्र पारंपरिक आपूर्ति श्रृंखलाओं को बदल रहे हैं और नए सहयोग के अवसर पैदा कर रहे हैं।
- इंडस्ट्री 4.0 (Industry 4.0) के आगमन से ऑटोमोबाइल उत्पादन में क्रांति आ रही है, जिसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), मशीन लर्निंग (ML), इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT), और रोबोटिक्स जैसी तकनीकें शामिल हैं।
- ये तकनीकी प्रगति स्मार्ट फैक्ट्रियों और कनेक्टेड वाहनों पर आधारित नए व्यापार मॉडल को जन्म दे रही हैं।
- एक वाहन में सेमीकंडक्टर चिप्स की लागत 2030 तक $600 से बढ़कर $1,200 तक होने का अनुमान है।
- वैश्विक ऑटो कंपोनेंट बाजार:
- वर्ष 2022 में इसका मूल्य लगभग $2 ट्रिलियन था।
- वैश्विक व्यापार में इसकी भागीदारी लगभग $700 बिलियन रही।
- वैश्विक ऑटोमोबाइल उत्पादन:
- विश्वभर में लगभग 94 मिलियन यूनिट वाहनों का उत्पादन हुआ।
- यह वैश्विक बाजार 4–6% वार्षिक दर से बढ़ रहा है, जो बढ़ती मांग को दर्शाता है।
- भारत की स्थिति:
- भारत अब दुनिया का चौथा सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल उत्पादक बन चुका है — चीन, अमेरिका और जापान के बाद।
- भारत की वार्षिक उत्पादन क्षमता लगभग 6 मिलियन वाहन है।
- छोटे कार और यूटिलिटी व्हीकल क्षेत्र में भारत का घरेलू और निर्यात बाजार मजबूत हुआ है।
- ‘मेक इन इंडिया‘ पहल के तहत भारत निर्माण और निर्यात केंद्र बनने की दिशा में अग्रसर है।
2030 के लिए दृष्टिकोण (Vision for 2030)
- नीति आयोग का विज़न: नीति आयोग ने2030 तक भारत के ऑटोमोटिव क्षेत्र के लिए एक महत्त्वाकांक्षी लेकिन व्यवहारिक लक्ष्य रखा है।
- इसके अनुसार, भारत का ऑटोमोटिव कंपोनेंट उत्पादनबढ़कर $145 बिलियन तक पहुँचने की संभावना है।
- निर्यात में तीन गुना वृद्धिका लक्ष्य रखा गया है — $20 बिलियन से $60 बिलियन तक।
- व्यापार अधिशेष: इस विकास के चलते भारत को लगभग$25 बिलियन का व्यापार अधिशेष (trade surplus) प्राप्त हो सकता है।
- वैश्विक ऑटोमोटिव वैल्यू चेनमें भारत की हिस्सेदारी 3% से बढ़कर 8% हो सकती है।
- रोज़गार सृजन: इस तेज़ विकास के माध्यम से20 से 25 लाख नई नौकरियाँ उत्पन्न होंगी।
- कुल प्रत्यक्ष रोज़गार बढ़कर 30 से 40 लाख तक पहुँचने की संभावना है।
भारत के ऑटोमोटिव क्षेत्र की चुनौतियाँ:
- वैश्विक ऑटोमोटिव कंपोनेंट व्यापार में भारत की हिस्सेदारी: भारतदुनिया का चौथा सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल उत्पादक है, लेकिन इसके बावजूद भारत की वैश्विक ऑटोमोटिव कंपोनेंट व्यापार में सिर्फ 3% हिस्सेदारी है, जो करीब $20 बिलियन के बराबर है।
- वैश्विक व्यापार में मुख्य रूप सेइंजन कंपोनेंट्स, ड्राइव ट्रांसमिशन और स्टीयरिंग सिस्टम्स का योगदान है, लेकिन इन उच्च-परिशुद्धता वाले क्षेत्रों में भारत की हिस्सेदारी केवल 2-4% है।
- ऑपरेशनल लागत और संरचनात्मक खामियाँ: ऑटोमोटिव क्षेत्र को ऑपरेशनल लागत और इन्फ्रास्ट्रक्चरल खामियों का सामना करना पड़ रहा है।
- वैश्विक मूल्य श्रृंखला (GVC) में सीमित एकीकरण: भारत कावैश्विक मूल्य श्रृंखला में एकीकरण अभी भी मध्यम है, जो देश के प्रतिस्पर्धी बनने की प्रक्रिया को धीमा करता है।