Presidential Reference
संदर्भ:
हाल ही में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने एक महत्वपूर्ण संवैधानिक मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय की परामर्शात्मक क्षेत्राधिकार (advisory jurisdiction) को आमंत्रित किया है। यह मुद्दा राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों (Bills) पर राष्ट्रपति और राज्यपालों द्वारा कार्रवाई करने की समयसीमा निर्धारित किए जाने से संबंधित है।
राज्य विधेयकों पर राज्यपालों के निर्णय के लिए समय सीमा: सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय
पृष्ठभूमि:
- हाल ही में, सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य विधेयकों पर निर्णय लेने के लिए राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए समय सीमा तय की है।
- हालांकि, राज्यपाल किसी भी विधेयक पर कार्रवाई करने के लिए किसी समय सीमा से बंधे नहीं हैं।
- इससे ऐसी स्थिति उत्पन्न होती है जहां राज्यपाल विधेयक पर अनिश्चितकाल तक कार्रवाई न करें। इसे “पॉकेट वीटो“ कहा जाता है, हालांकि यह शब्द संविधान में औपचारिक रूप से उपयोग नहीं किया गया है।
सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:
- न्यायालय ने कहा कि राज्यपाल विधेयकों पर अनिश्चितकाल तक निर्णय में देरी या स्वीकृति रोक नहीं सकते।
- यदि विधानसभा द्वारा विधेयक पारित या पुन: पारित किया गया है, तो राज्यपाल को उस पर निर्णय लेना अनिवार्य है।
समय सीमा:
- पुन: पारित विधेयक: निर्णय लेने के लिए एक माह।
- मंत्रिमंडल की सलाह के विपरीत विधेयक को रोकना: निर्णय लेने के लिए तीन माह।
संवैधानिक प्रश्न:
- यह निर्णय अनुच्छेद 142 के तहत न्यायिक प्राधिकरण की सीमा पर सवाल उठाता है।
- क्या न्यायालय राज्यपाल और राष्ट्रपति जैसे संवैधानिक पदाधिकारियों पर जवाबदेही लागू कर सकते हैं?
- यह मुद्दा राज्यपालों के विधायी कर्तव्यों और न्यायपालिका के बीच संतुलन को लेकर भी चिंतन का विषय है।
राष्ट्रपति संदर्भ (Presidential Reference):
अनुच्छेद 143 – राष्ट्रपति का परामर्शाधिकार
- उद्देश्य: राष्ट्रपति किसी भी कानूनी या तथ्यात्मक प्रश्न पर सर्वोच्च न्यायालय से राय मांग सकते हैं।
- परामर्शाधिकार: यह सर्वोच्च न्यायालय के सलाहकार अधिकार क्षेत्र का हिस्सा है, जो विशेष रूप से भारत के राष्ट्रपति के लिए आरक्षित है।
प्रक्रिया और प्रावधान:
- अनुच्छेद 145(3):
- ऐसी किसी भी संदर्भ को पांच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा सुना जाना आवश्यक है।
- न्यायालय अपनी बहुमत राय के साथ राष्ट्रपति को संदर्भ लौटाता है।
- गैर–विरोधात्मक प्रकृति: यह सलाहात्मक प्रक्रिया है, न कि किसी पक्ष-विपक्ष विवाद का निपटारा।
- सुप्रीम कोर्ट का विवेकाधिकार:
- अनुच्छेद 143(2) के तहत, न्यायालय को केवल उन मुद्दों पर राय देने का दायित्व है जो अनुच्छेद 131 के प्रावधान में आते हैं।
- सर्वोच्च न्यायालय राय देने से इनकार भी कर सकता है।
- उदाहरण: अयोध्या मामले (1992) में सर्वोच्च न्यायालय ने राय देने से इनकार कर दिया क्योंकि वह कानूनी प्रश्न नहीं था।
राय की बाध्यता और प्रभाव:
- राष्ट्रपति पर बाध्यकारी नहीं: सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दी गई सलाह कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं होती।
- सलाहकारी लेकिन प्रभावशाली: हालांकि कानूनी बाध्यता नहीं है, लेकिन राय को उच्च नैतिक और कानूनी सम्मान के साथ माना जाता है।
- निपटाए गए प्रश्नों का अपवाद: राष्ट्रपति उन मामलों को संदर्भित नहीं कर सकते जो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पहले से ही निपटाए जा चुके हैं।
राष्ट्रपति संदर्भों का महत्व:
- संवैधानिक स्पष्टता
- कानूनी अनिश्चितता की रोकथाम
- कानून के शासन को सुदृढ़ करना
- कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच सेतु
- सरकार को मार्गदर्शन
संवैधानिक नैतिकता की रक्षा