सामान्य अध्ययन पेपर I: मध्यकालीन भारतीय इतिहास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राज्यसभा सांसद के वीर शासक राणा सांगा पर विवादित बयान से राजस्थान में भारी आक्रोश हो रहा है। राणा सांगा की बहादुरी और उदारता का सम्मान करते हुए विभिन्न राजनीतिक दलों ने इसे लेकर आपत्ति जताई है।
महाराणा सांगा का विस्तारपूर्वक परिचय
महाराणा संग्राम सिंह, जिन्हें इतिहास में राणा सांगा के नाम से जाना जाता है, 16वीं शताब्दी के उन महान राजपूत शासकों में से एक थे, जिन्होंने बहादुरी और नेतृत्व की एक अनोखी मिसाल कायम की। मेवाड़ के इस वीर राजा ने न केवल अपने राज्य की रक्षा की बल्कि विदेशी आक्रमणकारियों को कड़ी चुनौती भी दी। उनके शौर्य, वीरता और राजनीतिक कौशल की गूंज इतिहास में आज भी सुनाई देती है।
- जन्म: राणा सांगा का जन्म 12 अप्रैल 1484 को मेवाड़ के प्रसिद्ध सिसोदिया राजवंश में हुआ।
- परिवार: उनके पिता राणा रायमल मेवाड़ के शासक थे, जो अपनी बहादुरी और दृढ़ संकल्प के लिए जाने जाते थे।
- राणा सांगा के पिता राणा रायमल के चार पुत्र थे – पृथ्वीराज, जयमल, सेसां और राणा सांगा। पिता की मृत्यु के बाद सभी भाई मेवाड़ की गद्दी के लिए आपस में लड़ने लगे।
- पृथ्वीराज, जो सबसे बड़े थे, सत्ता के लिए इतने लालायित थे कि उन्होंने अपने ही छोटे भाई राणा सांगा को मारने का षड्यंत्र रचा। उन्हें एक आँख से अंधा और एक हाथ से अपंग बना दिया गया, जिससे वे युद्ध के लायक न रहें। जयमल और सेसां भी षड्यंत्र में शामिल थे। सत्ता के लिए संघर्ष में उनका परिवार शत्रु बन चुका था, पर उनके इरादे और भी मजबूत हो गए थे।
- निजी जीवन: राणा सांगा की पत्नी का नाम रानी कर्णावती था, जो अपने साहस और बुद्धिमत्ता के लिए जानी जाती थीं।
- उनके चार पुत्र थे — रतन सिंह द्वितीय, उदय सिंह द्वितीय, भोज राज और विक्रमादित्य सिंह।
- ऐतिहासिक संदर्भों में यह भी माना जाता है कि राणा सांगा की कुल मिलाकर 22 पत्नियाँ थीं।
- सत्ता में आगमन: राणा सांगा ने अपने अपमान और शारीरिक विकलांगता को कभी कमजोरी नहीं बनने दिया। अजमेर में शरण के दौरान उन्होंने मेवाड़ के शक्तिशाली राजपूत सरदारों को संगठित किया। उनकी वीरता और नेतृत्व क्षमता ने जल्द ही लोगों का विश्वास जीत लिया।
- 1509 में, जब उनके भाई पृथ्वीराज की मृत्यु हुई, तो मेवाड़ की गद्दी के लिए संघर्ष एक बार फिर शुरू हुआ। लेकिन इस बार स्थिति अलग थी। राणा सांगा न केवल युद्ध कौशल में निपुण हो चुके थे, बल्कि उनके पास वफादार सैनिकों और राजपूत सरदारों का समर्थन भी था।
- कर्मचंद पंवार, जो अजमेर में उनके करीबी समर्थक थे, ने इस संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके समर्थन से राणा सांगा ने मेवाड़ की गद्दी पर अधिकार किया और अपनी योग्यता से मेवाड़ को एक शक्तिशाली राज्य में बदल दिया।
- राजनीतिक कौशल: सत्ता हासिल करना एक बात थी, लेकिन उसे बनाए रखना राणा सांगा की असली चुनौती थी। उन्होंने कूटनीति और युद्ध को साथ लेकर चलने की कला में महारत हासिल की थी।
- राजपूताना में अलग-अलग राजपूत राजाओं को संगठित करना किसी असंभव कार्य से कम नहीं था। लेकिन राणा सांगा ने यह कर दिखाया। उन्होंने राजपूतों को विदेशी आक्रमणकारियों के विरुद्ध एकता का पाठ पढ़ाया।
- दिल्ली सल्तनत के लोधी वंश को हराना हो या मालवा और गुजरात के सुल्तानों को चुनौती देना, राणा सांगा ने हर बार अपनी ताकत का लोहा मनवाया।
- जब बाबर ने भारत में कदम रखा, तो राणा सांगा ने ही राजपूत एकता के बल पर उसका सामना किया।
- व्यक्तित्व: राणा सांगा सिर्फ एक योद्धा नहीं थे, वे एक ऐसे शासक थे जिनका व्यक्तित्व हर किसी को प्रेरित करता था।
- एक आँख से अंधे और एक हाथ से विकलांग होने के बावजूद वे युद्धभूमि में सबसे आगे रहते थे। उनकी वीरता का ऐसा प्रभाव था कि उनके दुश्मन भी उनकी प्रशंसा करते थे।
- राणा सांगा की वीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके शरीर पर 80 से अधिक घाव थे। युद्ध के दौरान उन्होंने एक हाथ, एक पैर और एक आँख खो दी, फिर भी उनका हौसला कभी नहीं टूटा।
- वे प्रजा के प्रति अत्यंत संवेदनशील थे। युद्धों के बावजूद उन्होंने अपने राज्य में शांति और समृद्धि कायम रखी। प्रजा उनके शासन में सुरक्षित महसूस करती थी।
- उन्होंने राजपूताना की आन-बान और शान को बनाए रखा। विदेशी आक्रमणकारियों के सामने घुटने टेकने की बजाय लड़कर वीरता प्राप्त करना पसंद किया।
राणा सांगा का शासनकाल
महाराणा संग्राम सिंह (राणा सांगा) ने मेवाड़ पर 1509-1528 तक शासन किया। इस दौरान उन्होंने कई सल्तनतों के साथ युद्ध किया और अधिकांश युद्धों में विजय प्राप्त की।
- उन्होंने सत्ता संभालते ही मेवाड़ को एक संगठित और सशक्त राज्य में बदल दिया। यह काल राजनीतिक अस्थिरता का था, जहां पड़ोसी सल्तनतें मेवाड़ को घेरने की फिराक में थीं। लेकिन राणा सांगा ने अपनी कूटनीति और युद्धनीति से उन्हें बार-बार हराकर अपनी शक्ति का लोहा मनवाया।
- राणा सांगा ने अपने शासनकाल में मेवाड़ के साम्राज्य को एक विशाल भूभाग में फैलाया।
- उत्तर में: पंजाब की सतलुज नदी तक।
- दक्षिण में: मालवा को जीतकर नर्मदा नदी तक।
- पश्चिम में: सिंधु नदी तक।
- पूर्व में: बयाना, भरतपुर और ग्वालियर तक।
- उन्होंने राजपूत संघ का गठन किया। राणा सांगा ने 7 राजाओं, 9 रावों और 104 सरदारों को एकजुट किया। उनकी सेना में 80,000 घुड़सवार, 500 युद्ध हाथी और 1 लाख सैनिक शामिल थे।
- राणा सांगा ने अपनी शक्ति की पहली परीक्षा मालवा सल्तनत के खिलाफ दी। उन्होंने राजपूत विद्रोहियों को अपने पक्ष में कर मालवा की सेना को निर्णायक रूप से परास्त किया। उन्होंने मालवा के शासक महमूद खिलजी को युद्ध में बंदी बना लिया।
- मालवा पर विजय के बाद, गुजरात सल्तनत भी उनकी शक्ति से अछूती नहीं रही। गुजरात के सुल्तान मुजफ्फर शाह के बढ़ते प्रभुत्व को उन्होंने चुनौती दी और गुजरात को मेवाड़ की ओर बढ़ने से रोक दिया।
- दिल्ली सल्तनत के शासक इब्राहिम लोदी ने भी कई बार मेवाड़ पर आक्रमण किया, लेकिन हर बार राणा सांगा ने अपने रणकौशल से उसे परास्त किया।
- उनकी सैन्य रणनीति में तेज घुड़सवारी, गुप्त हमले और शत्रु की कमजोरियों का लाभ उठाना शामिल था। उनके नेतृत्व में राजपूत सेना ने 100 से अधिक युद्ध लड़े, जिनमें से अधिकांश में वे विजयी रहे।
राणा सांगा द्वारा लड़े गए प्रमुख युद्ध
महाराणा सांगा, जिन्हें “हिंदुपत” की उपाधि से सम्मानित किया गया था, 16वीं शताब्दी के भारत में राजपूत वीरता के प्रतीक थे। अपने जीवनकाल में उन्होंने कई ऐतिहासिक युद्ध लड़े जो शक्ति, त्याग और समर्पण की अद्भुत मिसाल हैं।
- खतौली का युद्ध (1517): खतौली का युद्ध दिल्ली सल्तनत के सुल्तान इब्राहिम लोदी और राणा सांगा के बीच 1517 में लड़ा गया था। इब्राहिम लोदी, जो राजपूतों के बढ़ते प्रभुत्व से चिंतित था, ने मेवाड़ पर आक्रमण करने की योजना बनाई। लेकिन मेवाड़ की मिट्टी पर पहला कदम रखते ही लोदी की सेना को राजपूत योद्धाओं के अभूतपूर्व प्रतिरोध का सामना करना पड़ा।
- खतौली के मैदान में दोनों सेनाओं के बीच भीषण युद्ध हुआ। इस युद्ध में राणा सांगा की वीरता ने इब्राहिम लोदी की सेना को पूरी तरह पराजित कर दिया। हालाँकि इस युद्ध में राणा सांगा ने अपना एक हाथ और एक पैर खो दिया, लेकिन उनका जज्बा बरकरार रहा। इस विजय ने पूरे उत्तर भारत में राजपूत शक्ति की गूंज को और भी प्रबल कर दिया।
- धौलपुर का युद्ध (1519): खतौली की हार के बाद इब्राहिम लोदी ने एक बार फिर 1519 में मेवाड़ पर दो दिशाओं से आक्रमण किया। इस बार उसने मालवा के सुल्तान से भी संधि कर ली थी, ताकि राजपूत शक्ति को कुचला जा सके। लेकिन राणा सांगा की सैन्य रणनीति और बहादुरी के सामने यह गठबंधन टिक नहीं पाया।
- धौलपुर की भूमि पर हुए इस युद्ध में राणा सांगा ने इब्राहिम लोदी की सेना को न सिर्फ हराया बल्कि उसे आगरा तक भागने पर मजबूर कर दिया।
- इदर का युद्ध (1520): 1520 में गुजरात के सुल्तान मलिक हुसैन ने राजपूताना की सीमाओं पर हमला किया। इदर का युद्ध तब हुआ जब गुजरात की सेना ने मेवाड़ पर कब्जा जमाने की कोशिश की।
- राणा सांगा ने इस युद्ध में न केवल गुजरात की सेना को हराया, बल्कि उन्हें अहमदाबाद तक खदेड़ दिया। युद्ध में विजय के बाद उन्होंने गुजरात की संपत्ति पर कब्जा कर लिया।
- गागरोन का युद्ध (1520): गागरोन का युद्ध राणा सांगा और मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी द्वितीय के बीच लड़ा गया था। मालवा की सेना को गुजरात की सेना का समर्थन प्राप्त था। युद्ध के दौरान राजपूतों ने घातक हमले किए, जिससे गुजरात की सेना पूरी तरह से नष्ट हो गई।
- इस युद्ध में सुल्तान महमूद खिलजी को पकड़ लिया गया। हालांकि राणा सांगा ने सुल्तान के साथ सम्मानजनक व्यवहार किया और उसके राज्य को लौटा दिया, लेकिन अधीनता के प्रतीक के रूप में उन्होंने महमूद के पुत्र को चित्तौड़ में बंदी बनाकर रखा।
- बयाना का युद्ध (1527): 1527 में बयाना का युद्ध मुगल शासक बाबर और राणा सांगा के बीच हुआ था। बयाना किले के प्रभारी निजाम खान ने बाबर की सत्ता को मानने से इनकार कर दिया था। बाबर ने अपनी सेना भेजकर किले पर कब्जा करने की कोशिश की, लेकिन वह असफल रहा।
- राणा सांगा ने मौके का फायदा उठाते हुए बयाना पर हमला किया और बाबर की सेना को पराजित किया। इस युद्ध में सांगा की रणनीतिक कुशलता देखने को मिली, जहाँ उन्होंने छोटी-सी सेना के साथ बाबर की शक्तिशाली सेना को हराया।
- खानवा का युद्ध (1527): खानवा का युद्ध भारतीय इतिहास में एक निर्णायक युद्ध था जो बाबर और राणा सांगा के बीच 1527 में लड़ा गया। राणा सांगा का सपना भारत को एकजुट करना था। उनका मानना था कि बाबर भी तैमूर की तरह भारत को लूटकर वापस लौट जाएगा।
- हालाँकि, बाबर ने “जिहाद” का आह्वान करके अपनी सेना को प्रेरित किया और तोपखाने का प्रयोग किया। युद्ध में राणा सांगा ने बहादुरी से लड़ाई लड़ी लेकिन अंत में बाबर की तोपों के आगे उनकी सेना कमजोर पड़ गई। खानवा की हार ने राजपूत शक्ति को कमजोर कर दिया।
राणा सांगा की मृत्यु और उत्तराधिकार
- मृत्यु: खानवा के युद्ध में बाबर के साथ अंतिम संघर्ष के दौरान राणा सांगा को तीर लगने से वे गंभीर रूप से घायल हो गए। ऐसी मान्यता है कि उनके ही दरबार में उन्हें जहर दिया गया, जिसके कारण 30 जनवरी 1528 को उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु ने राजपूताना के गौरवशाली युग को गहरा आघात पहुँचाया।
- उत्तराधिकार: उनके उत्तराधिकारी के रूप में रतन सिंह द्वितीय ने गद्दी संभाली, लेकिन वह अपने पिता जैसी सैन्य क्षमता और नेतृत्व कौशल नहीं दिखा सके। राजपूताना के प्रमुख राजघराने आपस में बंट चुके थे, जिससे मुगल साम्राज्य को उत्तर और मध्य भारत में अपने पाँव जमाने का अवसर मिला।
खानवा की हार और सांगा की मृत्यु के बाद मुगलों ने भारत में स्थायी रूप से बसने का निर्णय किया। बाबर ने न केवल दिल्ली और आगरा पर अपना प्रभुत्व कायम किया, बल्कि पूरे उत्तरी भारत में अपनी पकड़ मजबूत की। सांगा की मृत्यु के साथ ही एक ऐसा युग समाप्त हो गया जो वीरता, त्याग और स्वतंत्रता की भावना का प्रतीक था।
UPSC पिछले वर्षों के प्रश्न (PYQs) प्रश्न (2023): मध्यकालीन गुजरात के निम्नलिखित शासकों में से किसने दीव को पुर्तगालियों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था? (क) अहमद शाह (b) महमूद बेगारहा (ग) बहादुर शाह (घ) मुहम्मद शाह उत्तर: (ग) बहादुर शाह प्रश्न (2021): निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
उपर्युक्त में से कौन सा/से कथन सही है/हैं? (a) केवल 1 (b) केवल 1 और 2 (c) केवल 3 (d) केवल 2 और 3 उत्तर: (a) केवल 1 |
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