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भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा (Rath Yatra of Lord Jagannath) | Apni Pathshala

Rath Yatra of Lord Jagannath

Rath Yatra of Lord Jagannath

संदर्भ:

ओडिशा के पुरी शहर में आयोजित होने वाली जगन्नाथ यात्रा 27 जून से शुरू हो चुकी है, और 5 जून तक चलेगी।

(Rath Yatra of Lord Jagannath) रथ यात्रा:

परिचय: रथ यात्रा एक वार्षिक हिंदू रथ उत्सव है, जो पुरी (ओडिशा) में भगवान जगन्नाथ (भगवान विष्णु के रूप) के सम्मान में मनाया जाता है।

पौराणिक मान्यता: यह उत्सव भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा की जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा मंदिर (उनका जन्मस्थान) तक की यात्रा की स्मृति में मनाया जाता है।

समय: यह यात्रा आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि (जून–जुलाई) को होती है, जो ओड़िया पंचांग के अनुसार निर्धारित होती है।

रथ यात्रा की प्रक्रिया:

  • तीनों देवी-देवताओं को विशाल लकड़ी के रथों में विराजित किया जाता है।
  • इन रथों को भक्तों द्वारा खींचा जाता है, जो लगभग 3 किलोमीटर लंबा बड़ा दंडा‘ (Grand Road) तय करता है।

महत्त्व:

  • यह यात्रा हिंदू धर्म के चार धामों में से एक मानी जाती है।
  • यह एकमात्र ऐसा अवसर है जब गैर-हिंदू भी भगवान जगन्नाथ के दर्शन कर सकते हैं, जबकि मंदिर में सामान्यतः उनका प्रवेश वर्जित होता है।

रथ यात्रा से जुड़ी धार्मिक मान्यताएँ:

  • पुण्य और मोक्ष: ऐसा विश्वास है कि रथों पर विराजमान भगवान के दर्शन करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
  • बामदेव संहिता का उल्लेख: बामदेव संहिता के अनुसार, जो भक्त गुंडिचा मंदिर में एक सप्ताह तक भगवान के दर्शन करते हैं, वे अपने पितरों सहित बैकुंठ (स्वर्ग) को प्राप्त करते हैं।
  • गैरहिंदुओं के लिए विशेष अवसर: चूँकि जगन्नाथ मंदिर में गैर-हिंदुओं का प्रवेश वर्जित है, इसलिए रथ यात्रा उन्हें भगवान के दर्शन का दुर्लभ अवसर प्रदान करती है।
  • सर्वसमावेशिता का प्रतीक: मान्यता है कि रथ यात्रा के दौरान भगवान स्वयं अपने गर्भगृह से बाहर आते हैं ताकि वे सभी भक्तों से मिल सकें, जो सर्वसमावेशिता और करुणा का प्रतीक है।

रथ यात्रा के प्रमुख आयोजन और अनुष्ठान

पहंडी बीजे (Pahandi Bije): एक विशेष जुलूस, जिसमें भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा को मंदिर से रथों तक ले जाया जाता है।

छेरा पहनरा (Chhera Panhara): पुरी के राजा द्वारा रथों की स्वर्ण झाड़ू से सफाई की जाती है, जो विनम्रता और समानता का प्रतीक है।

तीनों रथों का खींचना (Three Chariot Pulling): भक्तगण तीन अलग-अलग रथों को गुंडिचा मंदिर की ओर खींचते हैं:

  • नंदीघोष (भगवान जगन्नाथ)
  • तालध्वज (भगवान बलभद्र)
  • दर्पदलन (देवी सुभद्रा)

बहुड़ा यात्रा (Bahuda Yatra): आषाढ़ शुक्ल दशमी को देवताओं की जगन्नाथ मंदिर वापसी यात्रा

पोड़ा पीठा भोग (Poda Pitha Offering): वापसी के दौरान मौसीमा मंदिर में देवताओं को पारंपरिक ओड़िया पकवान ‘पोड़ा पीठा’ अर्पित किया जाता है।

सुनाबेशा (Suna Besha): लौटते समय भगवानों को रथों पर स्वर्ण आभूषणों से अलंकृत किया जाता है।

नीलाद्रि बीजे (Niladri Bije): अंतिम अनुष्ठान जिसमें देवता पुनः मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करते हैं; यह रथ यात्रा का समापन है।

रसगोला दिवस (Rasagola Divas): देवी लक्ष्मी को मनाने के लिए रसगोला का भोग अर्पित किया जाता है, क्योंकि वे इस यात्रा में सम्मिलित नहीं होतीं।

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