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भारतीय रिजर्व बैंक ने जलवायु संबंधी जोखिमों को समझने और प्रबंधित करने के लिए एक महत्वपूर्ण पहल की है, जिसके अंतर्गत रिजर्व बैंक जलवायु जोखिम सूचना प्रणाली (RB-CRIS) का प्रस्ताव किया गया है। यह डेटा भंडार जलवायु संबंधी आंकड़ों को एकत्रित करने और व्यवस्थित करने का कार्य करेगा।
रिजर्व बैंक जलवायु जोखिम सूचना प्रणाली (RB-CRIS) की विशेषताएँ:
- डेटा की एकीकृत संरचना:
- RB-CRIS विभिन्न स्रोतों से जलवायु संबंधी आंकड़ों को एकत्रित करेगा, जो वर्तमान में खंडित और विविध रूप में उपलब्ध हैं।
- इसका उद्देश्य उन अंतरालों को पाटना है जो मौजूदा डेटा में देखे जाते हैं, जैसे विभिन्न प्रारूप, आवृत्तियाँ, और इकाइयाँ।
- दो भागों में विभाजन:
- वेब-आधारित निर्देशिका: यह एक निर्देशिका होगी जिसमें विभिन्न डेटा स्रोतों (जैसे मौसम विज्ञान, भू-स्थानिक डेटा आदि) को सूचीबद्ध किया जाएगा। यह डेटा आरबीआई की वेबसाइट पर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होगा।
- डेटा पोर्टल: इसमें डेटासेट होंगे, जो मानकीकृत प्रारूपों में संसाधित डेटा को शामिल करेंगे।
- चरणबद्ध कार्यान्वयन: आरबीआई वेब-आधारित निर्देशिका के साथ RB-CRIS को चरणबद्ध तरीके से शुरू करेगा। इसके बाद विनियमित संस्थाओं के लिए डेटा पोर्टल को धीरे-धीरे शुरू किया जाएगा ताकि एक सुचारू अनुकूलन सुनिश्चित किया जा सके।
- विनियमित संस्थाओं के लिए महत्व: विनियमित संस्थाओं के लिए जलवायु जोखिमों का आकलन करना महत्वपूर्ण है, ताकि वे अपनी बैलेंस शीट और वित्तीय प्रणाली की स्थिरता सुनिश्चित कर सकें।
जलवायु-संबंधित वित्तीय जोखिमों पर मसौदा दिशानिर्देश:
- 28 फरवरी, 2024 को आरबीआई ने ‘जलवायु-संबंधित वित्तीय जोखिमों पर प्रकटीकरण ढांचे’ के लिए मसौदा दिशानिर्देश जारी किए।
- इस ढांचे के तहत विनियमित संस्थाओं (आरई) को चार प्रमुख क्षेत्रों में जानकारी का खुलासा करने की आवश्यकता होगी:
- शासन: किस प्रकार का शासन ढांचा स्थापित किया गया है।
- रणनीति: जलवायु जोखिमों के प्रति उनकी रणनीति क्या है।
- जोखिम प्रबंधन: जोखिम प्रबंधन की प्रक्रियाएँ।
- मीट्रिक और लक्ष्य: जलवायु जोखिमों के लिए निर्धारित मीट्रिक और लक्ष्य।
उद्देश्य: इस ढांचे का उद्देश्य विभिन्न हितधारकों—जैसे नियामक, निवेशक और ग्राहक—को सूचित करना है कि नवीकरणीय ऊर्जा उद्यमों के समक्ष जलवायु-संबंधी जोखिमों का क्या प्रभाव है और इन मुद्दों के समाधान के लिए उनकी रणनीतियाँ क्या हैं।
निष्कर्ष: RB-CRIS की स्थापना से भारत में जलवायु संबंधी जोखिमों की पहचान, मूल्यांकन और प्रबंधन में एक नई दिशा मिलेगी। यह प्रणाली न केवल डेटा का एकीकृत भंडार प्रदान करेगी, बल्कि जलवायु जोखिमों के प्रति वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने में भी मददगार सिद्ध होगी।
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