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RBI के ड्राफ्ट गोल्ड लोन नियम 2025 (RBI’s Draft Gold Loan Regulations 2025) | Apni Pathshala

RBI’s Draft Gold Loan Regulations 2025

 

सामान्य अध्ययन पेपर III: राजकोषीय नीति, पूंजी बाज़ार 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सोने की कीमतों में तेज़ उछाल और गैर-निष्पादित स्वर्ण ऋणों (NPAs) की बढ़ती संख्या को देखते हुए भारतीय रिज़र्व बैंक ने गोल्ड लोन नियमों को सख्त करने का प्रस्ताव रखा है। इसका उद्देश्य विभिन्न विनियमित संस्थाओं के लिए एक समान नियामक ढांचा स्थापित करना है।

(RBI’s Draft Gold Loan Regulations 2025) RBI के ड्राफ्ट गोल्ड लोन नियम 2025
  • ऋण-मूल्य अनुपात (LTV) पर सीमा: किसी भी गोल्ड लोन पर ऋण की अधिकतम सीमा, सोने के मूल्य का 75% ही हो सकेगी। उदाहरण के लिए यदि आपने ₹1,00,000 मूल्य का सोना गिरवी रखा है, तो आपको अधिकतम ₹75,000 तक ही ऋण मिलेगा। 
  • महामारी के दौरान कुछ संस्थाएं 90% तक ऋण देती थीं, अब सभी के लिए एक समान सीमा तय कर दी गई है।
  • स्वर्ण स्वामित्व का प्रमाण आवश्यक: गिरवी रखे जाने वाले सोने के मालिकाना हक का स्पष्ट प्रमाण देना अब अनिवार्य होगा। यदि सोना खरीदा गया है, तो उसकी रसीद दिखाना अनिवार्य होगी। पारिवारिक या विरासत में मिले पुराने गहनों के मामले में एक सरल घोषणा पत्र देना होगा। इससे चोरी या अवैध सोने को गिरवी रखने की संभावनाएं कम होंगी।
  • स्वर्ण शुद्धता प्रमाण-पत्र की अनिवार्यता: हर ऋणदाता को ऋण लेने वाले को एक प्रमाण-पत्र देना होगा, जिसमें सोने की शुद्धता, वजन और मूल्य का विवरण होगा। यह प्रमाण-पत्र लिखित या डिजिटल रूप में जारी किया जाएगा, जिसमें क्लाइंट और बैंक दोनों के हस्ताक्षर होंगे। 
  • विशेष प्रकार के स्वर्ण की अनुमति: नए नियमों के तहत केवल गहनों, सोने के आभूषणों और बैंक द्वारा बेचे गए विशेष सिक्कों को ही गिरवी रखा जा सकेगा। सोने की ईंटें, बिस्किट, कच्चा सोना या फाइनेंशियल उत्पाद (जैसे ETF) अब स्वीकार नहीं किए जाएंगे। इससे गैर-मानकीकृत सोने की गिरवी प्रक्रिया को रोका जाएगा।
  • चांदी बनेगी ऋण की जमानत: नए प्रस्तावों में पहली बार चांदी को भी ऋण की जमानत के रूप में स्वीकार किया गया है। आप चांदी के गहने, आभूषण या बैंक द्वारा जारी 92.5% शुद्धता वाले चांदी के सिक्के गिरवी रख सकते हैं। लेकिन चांदी की ईंटें, स्लैब या ETF इकाइयां मान्य नहीं होंगी।
  • सिक्कों और आभूषणों की सीमा तय: प्रस्तावित नियमों के अनुसार एक व्यक्ति अधिकतम 1 किलोग्राम गहने और 50 ग्राम विशेष बैंक-सिक्के ही गिरवी रख सकता है। यह प्रावधान ऋणदाताओं के जोखिम को सीमित करने और अत्यधिक बड़े ऋणों से बचाव हेतु लाया गया है।
  • मूल्यांकन में एक समान पद्धति: सभी ऋणदाता 22 कैरेट के मानक मूल्य के अनुसार ही सोने का मूल्यांकन करेंगे। यदि आपके पास 18 कैरेट का सोना है, तो उसे 22 कैरेट समकक्ष में बदलकर मूल्य निर्धारण होगा। चांदी के लिए भी इसी तरह 99.9% शुद्धता के बाजार मूल्य पर मूल्यांकन अनिवार्य होगा। 
  • विस्तृत ऋण अनुबंध: गोल्ड लोन का पूरा विवरण लिखित ऋण अनुबंध में देना होगा। इसमें सोने की जानकारी, गिरवी प्रक्रिया, डिफॉल्ट होने पर नीलामी की प्रक्रिया, शुल्क, और ऋण चुकता होने पर गहनों की वापसी का समय आदि शामिल होंगे।
  • ऋण चुकता पर गहनों की वापसी: यदि ग्राहक ने अपना ऋण पूरा चुका दिया है, तो लोनदाता को 7 कार्य दिवस के भीतर गहने लौटाने होंगे। यदि विलंब हुआ, तो उसे हर दिन ₹5,000 का जुर्माना ग्राहक को देना होगा। 

RBI द्वारा गोल्ड लोन नियमों में बदलाव क्यों किया जा रहा है?

  • सोने की कीमतों में तेज़ी: हाल के महीनों में 24 कैरेट सोने की कीमत ₹95,760 प्रति 10 ग्राम और 22 कैरेट की कीमत ₹87,780 तक पहुंच गई है। इस जबरदस्त वृद्धि ने आम नागरिकों को अपनी ज़रूरतें पूरी करने के लिए सोने को गिरवी रख ऋण लेने के लिए प्रेरित किया है। 
  • एनपीए संकट: जैसे ही सोने के बदले ऋण लेने वालों की संख्या बढ़ी, वैसे ही ऋण न चुकाने की घटनाएं भी बढ़ने लगीं। आरबीआई की रिपोर्ट के अनुसार, गोल्ड लोन एनबीएफसी कंपनियों का कुल एनपीए ₹4,784 करोड़ तक पहुंच चुका है, जो पिछले वर्ष के ₹3,904 करोड़ से कहीं अधिक है। 
  • उधारकर्ता के लिए नुकसान: कई बार जब कोई उधारकर्ता गोल्ड लोन चुका नहीं पाता, तो उसकी गिरवी रखी हुई ज्वेलरी की नीलामी की जाती है। इससे सिर्फ उसकी क्रेडिट रेटिंग खराब नहीं होती, बल्कि वह अपना कीमती और भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ आभूषण भी खो देता है।
  • दिशा-निर्देशों का अभाव: अब तक गोल्ड लोन पर कोई एकसमान और स्पष्ट नीति नहीं थी। प्रत्येक बैंक या एनबीएफसी अपनी सुविधा से शर्तें तय करता था, जिससे उधारकर्ताओं के अधिकारों की अनदेखी होती थी। यही कारण है कि आरबीआई को अब इस क्षेत्र में सख्त और पारदर्शी नियम लागू करने की आवश्यकता महसूस हुई।

RBI के नए गोल्ड लोन नियम से होने वाले लाभ और सीमाएं

  • लाभ
  • पारदर्शिता: नए नियमों में स्वर्ण शुद्धता प्रमाण पत्र (Purity Certificate) और स्पष्ट ऋण समझौते को अनिवार्य किया गया है। इससे सोने की गुणवत्ता और ऋण की सभी शर्तों की पूरी जानकारी पहले ही दी जाएगी। इससे न केवल भ्रम की स्थिति खत्म होगी, बल्कि ऋणदाता और उधारकर्ता के बीच विश्वास की नींव और मजबूत होगी।
  • ऋण प्रस्तावों की तुलना: अब चाहे आप किसी बड़े बैंक से ऋण लें या छोटे एनबीएफसी से, नियमों की मूल संरचना एक जैसी रहेगी। इससे लोन टू वैल्यू (LTV) अनुपात, गिरवी के नियम, और अन्य शर्तें तयशुदा होंगी। इस बदलाव से उधारकर्ताओं को ऋण प्रस्तावों की तुलना करना आसान होगा, और वे ब्याज दरों व सेवा की गुणवत्ता के आधार पर सही विकल्प चुन सकेंगे।
  • संपत्ति की रक्षा: नए मसौदे में यह स्पष्ट किया गया है कि ऋण चुकता करने के 7 दिनों के भीतर आपका सोना वापस करना अनिवार्य होगा। यदि ऋणदाता इसमें विफल रहता है, तो उसे ₹5,000 प्रतिदिन के हिसाब से जुर्माना देना होगा। इससे उधारकर्ता को यह भरोसा मिलता है कि ऋण समाप्त होने के बाद भी उसे किसी संघर्ष का सामना नहीं करना पड़ेगा।
  • सीमाएं
  • सीमित ऋण राशि: नए नियमों के अनुसार LTV अनुपात को तक सीमित किया गया है। इससे अब उपभोक्ता सोने की कुल कीमत का सिर्फ तीन चौथाई हिस्सा ही ऋण के रूप में प्राप्त कर सकेंगे। अब सभी छूट समाप्त हो गई है, जिससे अब पहले से कम ऋण राशि मिल सकती है।
      • सख्त पात्रता: अब केवल वही सोना गिरवी रखने योग्य माना जाएगा जो मानकीकृत और प्रमाणित हो। यदि किसी के पास सोने की ईंटें, गहनों से अलग सिक्के या कच्चा सोना है, तो उसके बदले ऋण नहीं मिलेगा। 
  • स्वामित्व का प्रमाण: नए नियमों के अनुसार आपको यह साबित करना होगा कि गिरवी रखा गया सोना आपका ही है। हालाँकि लिखित घोषणा (Declaration) की अनुमति दी गई है, लेकिन जिन लोगों के पास परिवार से मिला या उपहार में प्राप्त गहना है, उनके लिए रसीद या स्वामित्व प्रमाण दिखाना कठिन हो सकता है। 

ऋण-से-मूल्य अनुपात (LTV Ratio)

  • ऋण-से-मूल्य अनुपात (Loan to Value Ratio) वह मापन है जो यह बताता है कि किस सीमा तक बैंक या वित्तीय संस्था किसी संपत्ति की कीमत पर ऋण देने को तैयार है। 
  • यह अनुपात इस बात का संकेतक है कि बैंक, संपत्ति की कुल मान्य कीमत में से कितना हिस्सा ऋण के रूप में देगा। 
  • एलटीवी अनुपात का सीधा प्रभाव होम लोन की मंज़ूरी पर भी पड़ता है।  
  • बैंक हमेशा कम एलटीवी अनुपात को प्राथमिकता देते हैं, जिससे यह सुनिश्चित हो कि उधारकर्ता की संपत्ति में स्वयं की भागीदारी हो और वह समय पर भुगतान करता रहे।

 

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