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अंतर्राष्ट्रीय अक्षय ऊर्जा एजेंसी (IRENA) की 2024 की वार्षिक समीक्षा के अनुसार, भारत का अक्षय ऊर्जा क्षेत्र 2023 में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की हैं। इस साल भारत में अक्षय ऊर्जा से जुड़े लगभग 10 लाख 20 हजार रोजगार सृजित किए गए, जो वैश्विक स्तर पर भारत के बढ़ते योगदान को दर्शाता है। वैश्विक अक्षय ऊर्जा कार्यबल 2022 में 1.37 करोड़ से बढ़कर 2023 में 1.62 करोड़ हो गया, जिसमें भारत की प्रमुख भागीदारी रही।
इस रिपोर्ट को अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के सहयोग से तैयार किया गया है, जो भारत के स्वच्छ ऊर्जा नेतृत्व और पर्यावरण-अनुकूल नौकरियों के सृजन की दिशा में इसके प्रयासों को रेखांकित करती है। भारत में नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में वृद्धि न केवल आर्थिक विकास को बढ़ावा दे रहा है, बल्कि लाखों लोगों के लिए स्थायी आजीविका के अवसर भी पैदा कर रहा है। यह क्षेत्र भारत के हरित भविष्य की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, ऊर्जा स्वतंत्रता और पर्यावरणीय स्थिरता की ओर बढ़ने में मदद करता है, और देश भर में रोजगार के नए अवसरों को जन्म देता है।
इरेना की रोजगार और अक्षय ऊर्जा श्रृंखला:
- IRENA की अक्षय ऊर्जा और रोजगार श्रृंखला अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में रोजगार प्रवृत्तियों का व्यापक अवलोकन प्रदान करती है।
- यह श्रृंखला वैश्विक स्तर पर अक्षय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के परिदृश्य की जांच करती है और विभिन्न देशों, विशेषकर भारत, में रोजगार के प्रभाव का विश्लेषण करती है।
- रिपोर्ट में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की नीतियों का भी आकलन किया जाता है, जैसे अक्षय ऊर्जा का परिनियोजन, औद्योगिक विकास, कौशल विकास और श्रम बाजार के उपायों से संबंधित नीतियां।
- हालांकि अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में शिक्षा, कौशल आवश्यकताओं और कार्यबल विशिष्टताओं की विस्तृत जानकारी का अभाव है, फिर भी श्रृंखला एक निष्पक्ष और समावेशी ऊर्जा परिवर्तन सुनिश्चित करने के लिए कार्य करने की आवश्यकता पर जोर देती है।
- यह श्रृंखला 2011 से लगातार प्रस्तुत की जा रही है और हर संस्करण में नवीनतम डेटा के साथ रोजगार सृजन, कार्यबल में लैंगिक समानता और न्यायपूर्ण परिवर्तन जैसे पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करती है।
- यह रिपोर्ट 2050 तक अक्षय ऊर्जा से उत्पन्न नौकरियों, सकल घरेलू उत्पाद (GDP), और मानव कल्याण पर इसके प्रभावों का भी आकलन करती है, जिससे अक्षय ऊर्जा के आर्थिक और सामाजिक लाभों का भविष्य का अनुमान प्रस्तुत किया जा सके।
नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र, 2024 की रिपोर्ट के प्रमुख निष्कर्ष:
2023 में भारत में नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति हुई, जिससे रोजगार के कई अवसर सृजित हुए। रिपोर्ट के अनुसार:
- रोजगार के अवसर: भारत में नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र ने करीब 10 लाख 20 हजार रोजगार के अवसर सृजित किए।
- हाइड्रोपावर: हाइड्रोपावर क्षेत्र में सबसे ज्यादा रोजगार मिले, जहां करीब 453,000 लोगों को रोजगार मिला। यह क्षेत्र वैश्विक रोजगार के 20% हिस्से के साथ दूसरे स्थान पर था, जो चीन के बाद सबसे बड़ा था।
- सौर ऊर्जा:
- सौर पीवी क्षेत्र में (ऑन-ग्रिड और ऑफ-ग्रिड दोनों) लगभग 318,600 रोजगार के अवसर सृजित हुए।
- भारत ने 9.7 गीगावॉट सौर पीवी क्षमता जोड़ी, जिससे वह नई संस्थापनाओं और संचयी क्षमता में वैश्विक स्तर पर पाँचवें स्थान पर रहा।
- 72.7 गीगावॉट की कुल सौर पीवी क्षमता वर्ष के अंत तक स्थापित की गई।
- मॉड्यूल और सेल निर्माण:
- भारत की मॉड्यूल निर्माण क्षमता 2023 में 46 गीगावॉट थी, जो 2024 में 58 गीगावॉट तक पहुंचने की उम्मीद है।
- सेल निर्माण क्षमता 2023 में 26 गीगावॉट थी और 2024 में इसके 32 गीगावॉट तक पहुंचने का अनुमान है।
इससे भारत, चीन के बाद, दूसरा सबसे बड़ा पीवी निर्माता बन जाएगा।
- सौर पीवी रोजगार:
- ग्रिड से जुड़े सौर पीवी में 2023 में 238,000 रोजगार के अवसर मिले, जो 2022 से 18% की वृद्धि है।
- ऑफ-ग्रिड सौर क्षेत्र में 80,000 लोग कार्यरत थे।
- पवन ऊर्जा:
- 2023 में भारत की 44.7 गीगावॉट संचयी स्थापित पवन ऊर्जा क्षमता थी, जिससे वह वैश्विक स्तर पर चौथे स्थान पर रहा।
- इस वर्ष, भारत ने 2.8 गीगावॉट पवन ऊर्जा क्षमता जोड़ी, जो पाँच वर्षों की धीमी वृद्धि के बाद एक महत्वपूर्ण प्रगति थी।
- भारतीय पवन ऊर्जा क्षेत्र ने 52,200 लोगों को रोजगार प्रदान किया, जिसमें से 40% लोग परिचालन और रखरखाव में और 35% लोग निर्माण और स्थापना में कार्यरत थे।
भारत में अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में रोजगार के अवसर (2023)
2023 में भारत के अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में लगभग 10.2 लाख लोगों को रोजगार मिला। इसमें प्रमुख योगदानकर्ता हाइड्रोपावर और सोलर फोटोवोल्टिक थे, जो सबसे अधिक रोजगार प्रदान करने वाले क्षेत्र थे।
- हाइड्रोपावर: 4,53,000 रोजगार
- सोलर फोटोवोल्टिक (पीवी): 3,18,600 रोजगार
- पवन ऊर्जा: 52,200 रोजगार
- तरल जैव ईंधन: 35,000 रोजगार
- ठोस बायोमास: 58,000 रोजगार
- सौर ताप और शीतलन: 17,000 रोजगार
- बायोगैस: 85,000 रोजगार
यह आंकड़े इस बात को रेखांकित करते हैं कि भारत का अक्षय ऊर्जा क्षेत्र एक विविध रोजगार परिदृश्य प्रस्तुत करता है, जो विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार के अवसर प्रदान कर रहा है।
नवीकरणीय स्रोतों से वार्षिक बिजली उत्पादन:
भारत का नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन लगातार बढ़ रहा है, जो कुल बिजली उत्पादन में नवीकरणीय ऊर्जा की प्रतिशत हिस्सेदारी में परिलक्षित होता है। पिछले चार वर्षों के आंकड़ों के अनुसार:
- 2021-22: 19.19%
- 2022-23: 20.96%
- 2023-24: 22.12%
- 2024-25 (मई 2024 तक): 22.92%
ये आंकड़े दर्शाते हैं कि नवीकरणीय ऊर्जा का योगदान भारत के कुल बिजली उत्पादन में निरंतर बढ़ रहा है।
प्रमुख सरकारी प्रयास:
भारत सरकार कई नीतियों और कार्यक्रमों के माध्यम से अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में तेजी से परिवर्तन कर रही है। इनमें प्रमुख रूप से:
- राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन: स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों का उपयोग बढ़ाने के लिए।
- पीएम-कुसुम योजना: ग्रामीण क्षेत्रों में सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए।
- पीएम सूर्य घर योजना: घरों में सौर ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए।
- सोलर पीवी मॉड्यूल के लिए पीएलआई योजना: सौर पैनलों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए।
राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन : को भारत सरकार द्वारा 4 जनवरी, 2023 को मंजूरी दी गई थी, जिसमें 19,744 करोड़ रुपये का वित्तीय परिव्यय शामिल है। इस मिशन का प्रमुख उद्देश्य भारत को हरित हाइड्रोजन और इसके डेरिवेटिव के उत्पादन, उपयोग, और निर्यात के लिए एक वैश्विक केंद्र के रूप में स्थापित करना है।
इस मिशन के कुछ प्रमुख उद्देश्य और लाभ निम्नलिखित हैं:
- डीकार्बोनाइजेशन: यह मिशन उद्योग, गतिशीलता और ऊर्जा जैसे प्रमुख क्षेत्रों में कार्बन उत्सर्जन को कम करने में सहायक होगा। इससे व्यापक आर्थिक लाभ भी प्राप्त होंगे।
- जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता में कमी: भारत की आयातित जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करना इस मिशन का एक और महत्वपूर्ण लक्ष्य है।
- स्वदेशी विनिर्माण क्षमता: इस मिशन के माध्यम से भारत में स्वदेशी उत्पादन क्षमताओं को बढ़ावा मिलेगा, जिससे आयात पर निर्भरता कम होगी और स्थानीय उत्पादन में वृद्धि होगी।
- रोजगार के अवसर: यह मिशन मूल्य श्रृंखला में रोजगार के अनेक अवसर प्रदान करेगा, विशेषकर अत्याधुनिक तकनीकों के विकास और नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र के माध्यम से।
- हरित हाइड्रोजन उत्पादन: 2030 तक हर साल कम से कम 50 लाख मीट्रिक टन (एमटी) हरित हाइड्रोजन का उत्पादन करने का लक्ष्य है। साथ ही निर्यात बाजारों के विस्तार के साथ इसे 1 करोड़ मीट्रिक टन तक बढ़ाने का भी प्रयास किया जा रहा है।
- तकनीकी नवाचार: यह मिशन अत्याधुनिक तकनीकों के विकास को प्रोत्साहित करेगा, जिससे हरित हाइड्रोजन की उत्पादन प्रक्रियाओं में नवाचार बढ़ेगा।
यह मिशन न केवल भारत के ऊर्जा परिवर्तन को गति देने में सहायक होगा, बल्कि अक्षय ऊर्जा कार्यबल के विकास में भी योगदान देगा, जिससे स्थायी रोजगार की वृद्धि होगी।
पीएम-कुसुम योजना (प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान) की शुरुआत भारत सरकार ने मार्च 2019 में की थी, और इसे जनवरी 2024 में किसानों को ऊर्जा और जल सुरक्षा प्रदान करने, उनकी आय बढ़ाने, कृषि क्षेत्र को डीजल-मुक्त करने, और पर्यावरण प्रदूषण को कम करने के उद्देश्य से बढ़ाया गया था। इस योजना के तीन प्रमुख घटक हैं:
- घटक ‘क‘ किसानों द्वारा अपनी भूमि पर 10,000 मेगावाट के विकेन्द्रीकृत ग्राउंड स्टिल्ट माउंटेड ग्रिड कनेक्टेड सौर या अन्य नवीकरणीय ऊर्जा आधारित बिजली संयंत्रों की स्थापना।
- घटक ‘ख‘ 14 लाख स्टैंड-अलोन सोलर कृषि पंपों की स्थापना, जिससे किसानों को सिंचाई के लिए सौर ऊर्जा का उपयोग करने की सुविधा मिलेगी।
- घटक ‘ग‘: फीडर लेवल सौर ऊर्जाकरण सहित 35 लाख ग्रिड कनेक्टेड कृषि पंपों का सौर ऊर्जाकरण, जिससे किसानों की बिजली आवश्यकताओं को सौर ऊर्जा से पूरा किया जा सकेगा।
योजना के उद्देश्य:
- किसानों को स्वच्छ ऊर्जा और जल सुरक्षा प्रदान करना।
- कृषि क्षेत्र को डीजल-मुक्त करना, जिससे पर्यावरण प्रदूषण कम हो।
- किसानों की आय में वृद्धि।
कुल सौर क्षमता जोड़ने का लक्ष्य: योजना का उद्देश्य मार्च 2026 तक लगभग 34,800 मेगावाट सौर ऊर्जा की क्षमता जोड़ना है।
वित्तीय सहायता: योजना के तीनों घटकों को पूरा करने के लिए 34,422 करोड़ रुपये की केंद्रीय वित्तीय सहायता दी जा रही है।
रोजगार के अवसर: इस योजना से प्रत्यक्ष रूप से रोजगार सृजन की भी संभावना है। अध्ययनों के अनुसार, कम क्षमता वाले सौर संयंत्रों के प्रति मेगावाट 24.50 रोजगार-वर्ष सृजित होते हैं। इसके आधार पर, इस योजना के तहत लगभग 7.55 लाख रोजगार-वर्ष के बराबर रोजगार के अवसर पैदा होने की उम्मीद है, जिससे कुशल और अकुशल श्रमिकों को लाभ होगा।
पीएम-कुसुम योजना न केवल किसानों की आर्थिक स्थिति को सुधारने में सहायक है, बल्कि यह देश में स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ावा देने और पर्यावरण संरक्षण के लिए भी महत्वपूर्ण कदम है।
पीएम सूर्य घर : मुफ्त बिजली योजना :
पीएम सूर्य घर : मुफ्त बिजली योजना एक ऐतिहासिक पहल है, जिसका शुभारंभ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 15 फरवरी, 2024 को किया। इस योजना का उद्देश्य भारत के ऊर्जा परिदृश्य को बदलते हुए घरों को मुफ्त बिजली प्रदान करना है। योजना के तहत, घरों में सोलर पैनल लगाने की लागत का 40% तक सब्सिडी दी जाएगी, जिससे अधिक से अधिक लोग सौर ऊर्जा का उपयोग कर सकें।
योजना के प्रमुख लाभ:
- मुफ्त बिजली:
- योजना के तहत छतों पर सब्सिडी वाले सौर पैनल लगाकर घरों को मुफ्त बिजली मिलेगी। इससे घरों की बिजली लागत में भारी कमी आएगी।
- सरकार की बिजली लागत में कमी:
- सरकार को बिजली की लागत में सालाना ₹75,000 करोड़ की बचत होने का अनुमान है, जिससे सरकारी खर्चों में कटौती होगी।
- नवीकरणीय ऊर्जा का बढ़ता उपयोग:
- यह योजना नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को अपनाने को प्रोत्साहित करती है, जिससे भारत का ऊर्जा मिश्रण अधिक टिकाऊ और पर्यावरण के अनुकूल बनेगा।
- कार्बन उत्सर्जन में कमी:
- सौर ऊर्जा के उपयोग से कार्बन उत्सर्जन में कमी आएगी, जिससे भारत की कार्बन फुटप्रिंट को कम करने की प्रतिबद्धता पूरी होगी।
रोजगार के अवसर:
- इस योजना से विनिर्माण, रसद, सप्लाई चेन, बिक्री, स्थापना, संचालन और रखरखाव (O&M) जैसे विभिन्न क्षेत्रों में लगभग 17 लाख प्रत्यक्ष रोजगार सृजित होने की संभावना है, जो देश में आर्थिक विकास और रोजगार सृजन को बढ़ावा देगा।
पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना भारत के स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो घरों को आर्थिक रूप से सशक्त करेगा और पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान देगा।
पीएलआई योजनाः उच्च दक्षता वाले सौर पीवी मॉड्यूल संबंधी राष्ट्रीय कार्यक्रम:
पीएलआई योजनाः उच्च दक्षता वाले सौर पीवी मॉड्यूल संबंधी राष्ट्रीय कार्यक्रम भारत सरकार की एक महत्वाकांक्षी पहल है, जिसे नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय द्वारा लागू किया जा रहा है। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजना के माध्यम से सौर पीवी मॉड्यूल के विनिर्माण को बढ़ावा देना है। इस योजना के तहत ₹24,000 करोड़ के बजट के साथ गीगा वाट (GW) पैमाने पर विनिर्माण क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य है।
प्रमुख बिंदु:
- उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजना:
- इस योजना के तहत सौर पीवी मॉड्यूल निर्माताओं का चयन एक पारदर्शी प्रक्रिया के माध्यम से किया जाएगा।
- चयनित निर्माताओं को पांच वर्षों तक उनके उत्पादन और बिक्री के आधार पर प्रोत्साहन प्रदान किया जाएगा, जो कि संयंत्र की कमीशनिंग के बाद लागू होगा।
- उद्देश्य:
- भारत में उच्च दक्षता वाले सौर पीवी मॉड्यूल के लिए एक सशक्त पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करना, जिससे आयात निर्भरता कम हो।
- उच्च दक्षता वाले मॉड्यूल के उत्पादन के लिए अत्याधुनिक तकनीकों को आकर्षित करना, ताकि बेहतर प्रदर्शन करने वाली प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा मिल सके।
- गुणवत्ता नियंत्रण और प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाने के लिए एकीकृत संयंत्रों की स्थापना को प्रोत्साहित करना।
- सौर विनिर्माण में स्थानीय सामग्रियों का उपयोग करने के लिए एक मजबूत पारिस्थितिकी तंत्र का विकास करना।
- रोजगार के अवसर पैदा करना और सौर क्षेत्र में तकनीकी आत्मनिर्भरता हासिल करना।
रोजगार और आत्मनिर्भरता: इस योजना के माध्यम से सौर पीवी मॉड्यूल निर्माण में स्थानीय सामग्री और संसाधनों का उपयोग किया जाएगा, जिससे रोजगार के नए अवसर उत्पन्न होंगे। इसके साथ ही, भारत को तकनीकी आत्मनिर्भरता हासिल करने में मदद मिलेगी, जिससे देश की नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में स्थिति और मजबूत होगी।
हरित ऊर्जा गलियारा (Green Energy Corridor – GEC) पहल:
हरित ऊर्जा गलियारा (Green Energy Corridor – GEC) पहल का उद्देश्य भारत में अक्षय ऊर्जा के उत्पादन और वितरण को सुदृढ़ करना है। इसका मुख्य लक्ष्य देश भर में अंतर-राज्यीय पारेषण प्रणाली स्थापित करना है, जिससे अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं द्वारा उत्पन्न बिजली का कुशल निकास और उपभोक्ताओं तक प्रभावी रूप से पहुंचाना सुनिश्चित किया जा सके।
हरित ऊर्जा गलियारा के प्रमुख चरण:
- हरित ऊर्जा गलियारा चरण-1:
- यह चरण आठ अक्षय ऊर्जा समृद्ध राज्यों में लागू किया जा रहा है, जिनमें आंध्र प्रदेश, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, और तमिलनाडु शामिल हैं।
- संबंधित राज्यों की पारेषण संस्थाएं (STU) इस चरण को कार्यान्वित करती हैं। इसका उद्देश्य इन राज्यों के भीतर उत्पादित अक्षय ऊर्जा का निर्वाध हस्तांतरण सुनिश्चित करना और पारेषण नेटवर्क को सुदृढ़ करना है।
- हरित ऊर्जा गलियारा चरण-2:
- इस चरण में गुजरात, हिमाचल प्रदेश, कर्नाटक, केरल, राजस्थान, तमिलनाडु, और उत्तर प्रदेश शामिल हैं।
- इस चरण के तहत अक्षय ऊर्जा की बढ़ती उत्पादन क्षमता को ध्यान में रखते हुए ट्रांसमिशन क्षमताओं को और मजबूत किया जाएगा। साथ ही, यह पहल राष्ट्रीय ग्रिड में अक्षय ऊर्जा के एकीकरण को बढ़ावा देने और ग्रिड स्थिरता में सुधार लाने के लिए की जा रही है।
उद्देश्य:
- राष्ट्रीय ग्रिड में अक्षय ऊर्जा का एकीकरण: हरित ऊर्जा गलियारे के माध्यम से अक्षय ऊर्जा के उत्पादन और उपयोग को सुगम बनाया जाएगा, जिससे देश के ऊर्जा मिश्रण में स्थिरता आएगी।
- पर्यावरणीय लक्ष्यों में योगदान: अक्षय ऊर्जा का अधिकाधिक उपयोग भारत की ऊर्जा सुरक्षा और पर्यावरणीय लक्ष्यों को पूरा करने में मदद करेगा।
मानव संसाधन विकास (HRD) योजना:
भारत के नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र के लिए मानव संसाधन विकास (HRD) योजना 2021-22 से 2025-26 तक की अवधि के लिए जारी की गई है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में कुशल और योग्य जनशक्ति की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करना है।
प्रमुख विशेषताएं:
- अल्पकालिक प्रशिक्षण और कौशल विकास: नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में अल्पकालिक प्रशिक्षण और कौशल विकास को बढ़ावा देना।
- उच्च अध्ययन और अनुसंधान के लिए फेलोशिप: नवीकरणीय ऊर्जा में अनुसंधान और उच्च अध्ययन के लिए छात्रवृत्तियों का प्रावधान।
- शैक्षणिक संस्थानों में नवीकरणीय ऊर्जा पीठों की स्थापना: विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों में नवीकरणीय ऊर्जा से संबंधित शोध और प्रशिक्षण के लिए केंद्रों की स्थापना।
- राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा इंटर्नशिप कार्यक्रम: नए युवाओं और छात्रों को नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में इंटर्नशिप के अवसर प्रदान करना।
नवीकरणीय ऊर्जा प्रमाणपत्र (REC) तंत्र:
नवीकरणीय ऊर्जा प्रमाणपत्र (REC) तंत्र एक महत्वपूर्ण बाजार-आधारित साधन है, जिसका उद्देश्य नवीकरणीय ऊर्जा के उत्पादन और उपयोग को बढ़ावा देना और नवीकरणीय खरीद दायित्वों (RPO) के अनुपालन को सुनिश्चित करना है। इस तंत्र को इस प्रकार डिज़ाइन किया गया है कि यह उन राज्यों में भी नवीकरणीय ऊर्जा का प्रसार कर सके, जहां नवीकरणीय ऊर्जा संसाधनों की उपलब्धता कम है।
आरईसी तंत्र के प्रमुख पहलू:
- नवीकरणीय ऊर्जा और आरपीओ का संतुलन: कई राज्यों में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की उपलब्धता असमान होती है, जबकि सभी राज्यों के पास आरपीओ का पालन करने की जिम्मेदारी होती है। आरईसी तंत्र इस असमानता को दूर करने के लिए तैयार किया गया है।
- प्रमाणपत्र के माध्यम से लाभ: नवीकरणीय ऊर्जा जनरेटर दो प्रकार के राजस्व उत्पन्न कर सकते हैं: एक, उत्पादित बिजली की बिक्री से, और दूसरा, पर्यावरणीय लाभों को आरईसी के रूप में बेचने से।
- पात्रता: नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन केंद्र, कैप्टिव उत्पादन केंद्र जो नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग करते हैं, वितरण लाइसेंसधारी, और ओपन एक्सेस उपभोक्ता आरईसी जारी करने के लिए पात्र हैं।
आरईसी का प्रभाव: यह तंत्र नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देने के साथ-साथ टिकाऊ ऊर्जा को राष्ट्रीय ग्रिड में एकीकृत करने का काम करता है। इससे अक्षय ऊर्जा उत्पादकों और उपभोक्ताओं दोनों को लाभ मिलता है, साथ ही यह भारत के स्वच्छ ऊर्जा लक्ष्यों को पूरा करने में सहायक होता है।
निष्कर्ष: भारत का नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र 2023 में लगभग 10.2 लाख रोजगार के अवसर पैदा करके एक बड़ी सफलता प्राप्त कर चुका है। IRENA रिपोर्ट ने इसे न केवल आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण माना है, बल्कि यह टिकाऊ आजीविका प्रदान करने के लिए भी आवश्यक है।
प्रमुख पहलें:
- राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन,
- पीएम-कुसुम,
- पीएम सूर्य घर,
- सौर पीवी मॉड्यूल के लिए पीएलआई योजना।
इन योजनाओं का उद्देश्य न केवल अक्षय ऊर्जा प्रौद्योगिकी का विस्तार करना है, बल्कि कार्यबल के कौशल को भी उन्नत करना है।
ऊर्जा संक्रमण और रोजगार:
भारत ने ऊर्जा क्षेत्र में बदलाव करते हुए रोजगार सृजन को प्राथमिकता दी है, जिससे यह न केवल पर्यावरणीय लक्ष्यों की ओर बढ़ रहा है बल्कि अपनी अर्थव्यवस्था को भी सशक्त बना रहा है। यह स्थिरता और रोजगार पर केंद्रित दृष्टिकोण भारत को अक्षय ऊर्जा में वैश्विक नेता के रूप में स्थापित करता है, जो एक स्वच्छ और हरित भविष्य की ओर अग्रसर है।
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