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2026 से आर्थिक संकेतकों GDP, CPI और IIP के आधार वर्ष में संशोधन (Revision of Base Year for Economic Indicators GDP, CPI, and IIP from 2026) | UPSC Preparation

Revision of Base Year for Economic Indicators GDP, CPI, and IIP from 2026

सामान्य अध्ययन पेपर III: वृद्धि एवं विकास 

चर्चा में क्यों (Revision of Base Year for Economic Indicators GDP, CPI, and IIP from 2026)? 

हाल ही में सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) ने आर्थिक आंकड़ों की व्यापकता बढ़ाने और अद्यतन करने की प्रक्रिया शुरू की है। इस पहल के तहत अगले वर्ष से GDP, IIP और CPI जैसे प्रमुख आंकड़ों का नया आधार वर्ष लागू किया जाएगा, जिससे डेटा विश्लेषण और नीति निर्माण अधिक सटीक होंगे।

आधार वर्ष क्या होता है?

  • परिचय:
      • आधार वर्ष (Base Year) वह संदर्भ वर्ष होता है जिसके मूल्य स्तर को स्थिर मानते हुए अन्य वर्षों के आर्थिक आंकड़ों की तुलना की जाती है। 
      • यह वर्ष एक मानक बिंदु के रूप में कार्य करता है, जिससे आर्थिक प्रगति या गिरावट का वास्तविक मूल्यांकन किया जा सकता है। 
      • उदाहरण के लिए, यदि जीडीपी की तुलना की जा रही हो, तो विभिन्न वर्षों के उत्पादन मूल्य को एक समान आधार (आधार वर्ष) पर लाकर मुद्रास्फीति जैसी कीमतों में उतार-चढ़ाव को हटाकर वास्तविक वृद्धि मापी जाती है।
      • आधार वर्ष का प्रयोग जीडीपी (GDP), उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI), औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP), और थोक मूल्य सूचकांक (WPI) जैसे महत्वपूर्ण आर्थिक संकेतकों की गणना में इसका प्रयोग किया जाता है।
      • राष्ट्रीय खातों को अद्यतन बनाए रखने के लिए आधार वर्ष को हर 5 से 10 वर्ष में संशोधित किया जाना उपयुक्त होता है।
  • उद्देश्य:
      • इसका मूल उद्देश्य विभिन्न वर्षों की आर्थिक स्थितियों की तुलना एक समान और निष्पक्ष फ्रेमवर्क में किया जाना है, ताकि नीति निर्माण और बजट निर्धारण जैसे क्षेत्रों में सटीक निर्णय लिए जा सकें।
  • चयन:
      • आधार वर्ष का चयन करते समय कुछ विशिष्ट मानदंडों का पालन किया जाता है:
        • यह एक “सामान्य” वर्ष होना चाहिए, जिसमें कोई बड़ी आर्थिक या प्राकृतिक आपदा न घटी हो।
        • उस वर्ष के आँकड़े उपलब्ध और विश्वसनीय होने चाहिएं।
        • इसमें देश की अर्थव्यवस्था का वास्तविक प्रतिनिधित्व होना चाहिए, अर्थात विभिन्न क्षेत्रों, वर्गों और उद्योगों की भागीदारी संतुलित होनी चाहिए।
  • महत्व:
    • मुद्रास्फीति को समायोजित करना: आधार वर्ष मुद्रास्फीति के प्रभाव को हटाने में मदद करता है। इससे यह जाना जा सकता है कि किसी अवधि में वस्तुतः कितना उत्पादन बढ़ा या घटा, न कि केवल मूल्य वृद्धि के कारण।
    • तुलनात्मक विश्लेषण की सुविधा: विभिन्न वर्षों के आंकड़ों की तुलना संभव हो पाती है क्योंकि सभी को एक सामान्य मूल्य स्तर पर समायोजित किया गया होता है।
    • आर्थिक संरचना का प्रतिबिंब: एक समय के बाद अर्थव्यवस्था की संरचना, उपभोग के पैटर्न, और उत्पादन के साधनों में बदलाव आता है। नया आधार वर्ष इन परिवर्तनों को आँकड़ों में परिलक्षित करता है।

आर्थिक आंकड़ों में आधार वर्ष का उपयोग

सकल घरेलू उत्पाद (GDP), उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI), थोक मूल्य सूचकांक (WPI) और औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) जैसे प्रमुख सूचकांक, आधार वर्ष पर आधारित होते हैं ताकि मुद्रास्फीति, मूल्य उतार-चढ़ाव और अन्य आर्थिक कारकों के प्रभावों को समायोजित किया जा सके।

  • GDP (सकल घरेलू उत्पाद)
      • GDP वह संकेतक है जो किसी देश के अंदर एक विशेष अवधि में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं के कुल मौद्रिक मूल्य को दर्शाता है। 
      • यह देश की आर्थिक क्षमता और उत्पादन के स्तर को मापने का प्रमुख पैमाना है। चूंकि कीमतें हर साल बदलती रहती हैं, अतः GDP को मूल्य परिवर्तन से मुक्त करने के लिए आधार वर्ष की आवश्यकता होती है।
      • GDP का मौजूदा आधार वर्ष 2011–12 रखा गया है।
  • IIP (औद्योगिक उत्पादन सूचकांक):
      • IIP एक मात्रात्मक संकेतक है जो खनन, निर्माण और विद्युत क्षेत्रों में औद्योगिक उत्पादन की मात्रा को दर्शाता है। 
      • यह सूचकांक GDP के विपरीत, मूल्य आधारित नहीं होता, बल्कि उत्पादन की वास्तविक मात्रा पर आधारित होता है।
      • इसका मौजूदा आधार वर्ष 2011–12 रखा गया है। 
      • IIP के माध्यम से सरकार यह समझ सकती है कि किस क्षेत्र में उत्पादन में गिरावट या तेज़ी हो रही है, जिससे अल्पकालिक नीति फैसले लिए जा सकते हैं।
  • CPI (उपभोक्ता मूल्य सूचकांक):
      • CPI वह संकेतक है जो समय के साथ उपभोक्ताओं द्वारा खरीदे जाने वाले वस्त्र, भोजन, परिवहन, आवास आदि की कीमतों में बदलाव को मापता है। 
      • यह खुदरा मुद्रास्फीति को समझने का सबसे सटीक पैमाना है।
      • इसका मौजूदा आधार वर्ष 2012 है।
  • डेटा तुलनात्मकता:
    • आधार वर्ष के बिना किसी भी आर्थिक आंकड़े को समय के साथ तुलनात्मक रूप से नहीं देखा जा सकता। यह वर्ष एक स्थिर फ्रेम प्रदान करता है, जिससे सभी आगामी और पूर्ववर्ती आँकड़ों को एक ही मूल्य स्तर पर समायोजित किया जा सके।
    • वित्तीय अनुपातों में, यदि किसी वर्ष को आधार माना जाए, तो हम बाद के वर्षों में वृद्धि की दिशा और गति का विश्लेषण कर सकते हैं।
    • उदाहरण के लिए: यदि किसी कंपनी की 2010 में बिक्री ₹1,00,000 थी और 2024 में ₹1,50,000, तो 50% वृद्धि दिखेगी। लेकिन यदि उसी अवधि में मुद्रास्फीति 40% रही हो, तो वास्तविक वृद्धि सिर्फ 10% होगी — यह केवल आधार वर्ष के उपयोग से ज्ञात हो पाता है।

आधार वर्ष में संशोधन की आवश्यकता क्यों पड़ती है?

  • आर्थिक संरचना में बदलाव: समय के साथ किसी देश की आर्थिक संरचना में परिवर्तन होता है। नए उद्योग पनपते हैं, पुरानी व्यवस्थाएं समाप्त होती हैं, और सेवा क्षेत्र की भूमिका बढ़ जाती है। यदि आधार वर्ष बहुत पुराना होता है, तो यह नई आर्थिक गतिविधियों को प्रतिबिंबित नहीं कर पाता। 
  • उपभोक्ता व्यवहार में बदलाव: लोग क्या खरीदते हैं, कैसे खरीदते हैं और किन चीज़ों पर अधिक खर्च करते हैं — ये प्रवृत्तियाँ समय के साथ बदलती हैं। पुराने आधार वर्ष में शामिल खपत में वे वस्तुएँ हो सकती हैं जो अब आम उपभोग में नहीं हैं, या जिनका महत्व कम हो गया है। यदि उपभोक्ता प्रवृत्तियों को CPI में अद्यतन नहीं किया गया, तो मुद्रास्फीति की गणना ग़लत या अपूर्ण हो सकती है।
  • डेटा संग्रहण में नवाचार: आधुनिक तकनीक ने डेटा संकलन के तरीकों को अधिक वैज्ञानिक और विश्वसनीय बना दिया है। अब रीयल-टाइम डेटा, सैटेलाइट डेटा, और डिजिटल ट्रैकिंग का उपयोग करके बारीक विश्लेषण संभव हो गया है। पुराने आधार वर्ष की गणना प्रणाली में यह सुविधा नहीं होती। इसलिए, जैसे-जैसे डेटा संग्रहण के तरीके बदलते हैं, इससे आंकड़ों की गुणवत्ता में सुधार होता है।
  • अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप: विश्व स्तर पर संयुक्त राष्ट्र की राष्ट्रीय लेखा प्रणाली (SNA-1993/2008) जैसे मानक यह सलाह देते हैं कि देश समय-समय पर आर्थिक संकेतकों के आधार वर्ष को संशोधित करें। यह प्रक्रिया यह सुनिश्चित करती है कि सभी देशों के आर्थिक आंकड़े तुलनीय और वैज्ञानिक आधार पर अद्यतन हों।
  • बजट प्रबंधन: सरकार की आर्थिक नीतियाँ, बजट प्रावधान, सब्सिडी योजनाएँ, और कराधान निर्णय GDP और अन्य आर्थिक संकेतकों के आंकड़ों पर आधारित होती हैं। यदि ये आंकड़े पुराने आधार वर्ष के कारण भ्रामक या असंगत हैं, तो नीतियाँ वास्तविक जरूरतों से भटक सकती हैं।

भारत में आधार वर्ष में हुए प्रमुख संशोधन

  • ऐतिहासिक क्रम:
      • भारत में पहली बार 1949-50 को आधार वर्ष मानते हुए राष्ट्रीय आय का अनुमान वर्ष 1956 में जारी किया गया था। 
      • इसके पश्चात् देश में 1952-53, 1960-61, 1970-71, 1980-81, 1993-94, 2004-05, और 2011-12 को क्रमशः नए आधार वर्ष के रूप में अपनाया गया। 
      • हर संशोधन देश की विकसित होती आर्थिक संरचना, बदलते उपभोक्ता व्यवहार, और तकनीकी उन्नति को ध्यान में रखकर किया गया।
  • वर्तमान प्रयास:
      • 2024 में MoSPI द्वारा गठित की गई 26-सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का उद्देश्य था कि वह राष्ट्रीय खातों की गणना के लिए उपयुक्त नवीन आधार वर्ष का निर्धारण कर सके।
  • इस समिति के अध्यक्ष बिस्वनाथ गोल्डर नियुक्त किए गए हैं। 
  • समिति द्वारा सुझाए गए प्रस्तावों के अनुसार, GDP आंकड़ों को अब 2022-23 की कीमतों पर आधारित कर नई श्रृंखला के रूप में पुनर्गठित किया जाएगा। 
  • औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (IIP) के लिए भी 2022-23 को संभावित नया आधार वर्ष तय किया गया है। 
      • उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) को अद्यतन करने के लिए 2023-24 में NSO द्वारा किए गए उपभोक्ता व्यय सर्वेक्षण (HCES) के परिणामों का उपयोग किया जाएगा। इसमें 2024 को आधार वर्ष माना गया है।
  • इनकी आधिकारिक घोषणा वर्ष 2026 में की जाएगी।

निष्कर्ष:

आधार वर्ष का समय-समय पर संशोधन भारत की आर्थिक संरचना, उपभोक्ता व्यवहार और उत्पादन प्रक्रियाओं में हो रहे बदलावों को आंकड़ों में बेहतर तरीके से दर्शाने का माध्यम है। वर्तमान में प्रस्तावित संशोधन यह सुनिश्चित करते हैं कि भारत के आंकड़े अंतरराष्ट्रीय मानकों और वर्तमान वास्तविकताओं के अनुरूप रहें, जिससे विश्वसनीय और प्रासंगिक आर्थिक नीतियाँ तैयार की जा सकें।

 

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