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डेब्रिस इन-ऑर्बिट सर्विसिंग (RISE) मिशन, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी का पहला इन-ऑर्बिट सर्विसिंग मिशन है, जो 2028 में लॉन्च किया जाएगा। यह मिशन भूस्थिर उपग्रहों के लिए ईंधन भरने, नवीनीकरण और कक्षा में संयोजन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
RISE का मुख्य उद्देश्य:
- RISE मिशन का उद्देश्य लगभग 100 किमी की ऊंचाई पर स्थित भूस्थिर कब्रिस्तान तक पहुंचना है, जहां उपग्रहों को उनके मिशन के अंत पर ‘पार्क’ किया जाता है।
- यह मिशन अंतरिक्ष में एक वृत्ताकार अर्थव्यवस्था बनाने के लिए आवश्यक तत्वों की पूर्ति करेगा, जैसे उपग्रहों की मरम्मत और संसाधनों का पुनर्चक्रण।
वृत्ताकार अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था
संक्षेप में: वृत्ताकार अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था, संसाधनों के अधिकतम उपयोग और अपशिष्ट के न्यूनतमकरण पर केंद्रित है। इसमें निम्नलिखित प्रमुख पहलुओं का समावेश है:
- उपग्रह नवीनीकरण और मरम्मत
- अंतरिक्ष मलबे का प्रबंधन
- संसाधनों का उपयोग (जैसे क्षुद्रग्रहों या चंद्रमा से निकाली गई सामग्री)
महत्व
- मलबे में कमी: इससे टकराव और मलबे के निर्माण के जोखिम को कम करने में मदद मिलती है।
- संसाधनों का संरक्षण: सामग्रियों के पुनः उपयोग और पुनर्चक्रण से संसाधनों की बचत होती है।
- लागत में कमी: उपग्रहों की आयु बढ़ाकर लागत को कम किया जा सकता है।
- तेजी से विकास: अंतरिक्ष प्रणालियों का कक्षा में संयोजन और निर्माण करने से विकास में तेजी आती है।
चुनौतियाँ
- तकनीकी सीमाएँ: कक्षा में सर्विसिंग, पुनर्चक्रण और क्षुद्रग्रह खनन के लिए आवश्यक प्रौद्योगिकियों का विकास करना।
- वित्तपोषण: अनुसंधान एवं विकास और विशेष उपकरणों के लिए महत्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता।
- नियामक चुनौतियाँ: अंतरिक्ष स्थिरता के लिए वैश्विक मानक और विनियमन स्थापित करना।
वैश्विक प्रयास:
- ईएसए का लक्ष्य: 2050 तक अंतरिक्ष में चक्राकार अर्थव्यवस्था और 2030 तक मलबा तटस्थता प्राप्त करना।
- नासा का कंसोर्टियम (COSMIC): अंतरिक्ष गतिशीलता और ISAM क्षमताओं के लिए।
भारतीय प्रयास:
- ISRO का पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान कार्यक्रम: पुन: प्रयोज्य रॉकेट विकसित करने का प्रयास।
- 2030 तक मलबा-मुक्त अंतरिक्ष मिशन: सभी भारतीय अंतरिक्ष कर्ताओं द्वारा।
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