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वित्त मंत्रालय ने हाल ही में बताया कि 2024 के वित्तीय वर्ष में यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) से संबंधित धोखाधड़ी के मामलों में 85% की वृद्धि हुई है। वर्ष 2022-23 से लेकर अब तक UPI धोखाधड़ी की 2.7 मिलियन घटनाओं के माध्यम से लगभग 2,100 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। यह वृद्धि UPI के उपयोगकर्ताओं की संख्या और कुल लेन-देन में बढ़ोतरी के साथ मेल खाती है।
यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफ़ेस (UPI) के बारे में:
यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफ़ेस (UPI) एक ऐसी प्रणाली है जो भारत में डिजिटल भुगतान को सरल और सुगम बनाती है। यह प्रणाली विभिन्न बैंक खातों को एक ही मोबाइल एप्लिकेशन में जोड़ती है, जिससे उपयोगकर्ता किसी भी सहभागी बैंक का उपयोग करके आसानी से लेन-देन कर सकते हैं। UPI के माध्यम से बैंकिंग सेवाएं, फंड ट्रांसफर, मर्चेंट भुगतान और “पीयर टू पीयर” संग्रह अनुरोध एक ही ऐप पर उपलब्ध होते हैं।
UPI धोखाधड़ी के प्रकार:
- फ़िशिंग हमले: यह सबसे आम धोखाधड़ी का तरीका है, जिसमें साइबर अपराधी उपयोगकर्ताओं को धोखा देने के लिए फ़िशिंग ईमेल और संदेश का इस्तेमाल करते हैं।
- मैलवेयर हमले: स्मार्टफोन पर दुर्भावनापूर्ण सॉफ़्टवेयर के माध्यम से UPI लेन-देन को खतरे में डालने वाले हमले।
- सोशल इंजीनियरिंग धोखाधड़ी: धोखेबाज उपयोगकर्ता के विश्वास का फायदा उठाते हैं और उन्हें जल्दी या भय के आधार पर संवेदनशील जानकारी साझा करने के लिए प्रेरित करते हैं।
- विशिंग/वॉयस फ़िशिंग: यहां धोखेबाज बैंक अधिकारी या UPI सेवा प्रदाता होने का दिखावा करते हुए नकली कॉल करते हैं।
UPI और डिजिटल लेनदेन की वृद्धि :
- वित्त वर्ष 2024 में, UPI ने 200 ट्रिलियन रुपये के कुल मूल्य के साथ 12 बिलियन लेन-देन संसाधित किए हैं। वर्तमान में, UPI का उपयोग 400 मिलियन से अधिक अद्वितीय उपयोगकर्ताओं द्वारा किया जाता है।
- आरबीआई की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, 2023-24 में वित्तीय धोखाधड़ी में 166% की वृद्धि हो सकती है।
डिजिटल लेन-देन और वित्तीय धोखाधड़ी की चुनौतियाँ:
- साइबर सुरक्षा: भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र के अनुसार, पिछले तीन वर्षों में डिजिटल वित्तीय धोखाधड़ी का मूल्य 1.25 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच चुका है।
- तृतीय पक्ष जोखिम: इंटरनेट प्लेटफार्मों या डिजिटल बैंकिंग समाधानों से उत्पन्न होने वाले जोखिम।
- डिजिटल निरक्षरता: भारत में शहरी क्षेत्रों में 37.1% लोग इंटरनेट का उपयोग करने में सक्षम हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह संख्या सिर्फ 13% है।
- अन्य चुनौतियाँ: सीमित डिजिटल अवसंरचना और अंतर-संचालन समस्याएँ भी एक बड़ी चुनौती बनती हैं।
साइबर धोखाधड़ी रोकने के लिए पहल:
- भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C): गृह मंत्रालय के तहत यह केंद्र साइबर अपराध से निपटने के लिए काम करता है।
- CERT-In: कंप्यूटर सुरक्षा घटनाओं पर प्रतिक्रिया देने के लिए राष्ट्रीय नोडल एजेंसी।
- PMGidisha: यह पहल ग्रामीण भारत में डिजिटल साक्षरता बढ़ाने के लिए काम कर रही है।
- साइबर स्वच्छता केंद्र: यह बॉटनेट संक्रमण का पता लगाकर साइबर स्पेस को सुरक्षित बनाने का कार्य करता है।
निष्कर्ष:
UPI और डिजिटल लेन-देन में वृद्धि के साथ साइबर धोखाधड़ी के मामले भी बढ़े हैं। इन धोखाधड़ी से निपटने के लिए सरकार और विभिन्न एजेंसियां साइबर सुरक्षा को मजबूती देने के प्रयासों में लगी हुई हैं।