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ग्रामीण भारतीय ‘अंतर्निहित भूख’ से पीड़ित

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संदर्भ:

ग्रामीण भारतीय ‘अंतर्निहित भूख’ से पीड़ित: एक नए अध्ययन में, जिसे अंतरराष्ट्रीय अर्धशुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान (ICRISAT), अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान (IFPRI), और आर्थिक एवं सामाजिक अध्ययन केंद्र (CESS) के वैज्ञानिकों ने किया है, जिसमे बताया गया की ग्रामीण भारत में बड़ी संख्या में लोग प्रोटीन की कमी से जूझ रहे हैं।

अंतर्निहित भूख (Hidden Hunger):

छिपी हुई भूख (अंतर्निहित भूख) या सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी एक प्रकार की कुपोषण की स्थिति है, जिसमें जिंक, आयोडीन, आयरन आदि आवश्यक पोषक तत्वों का सेवन या अवशोषण पर्याप्त नहीं होता, जिससे स्वास्थ्य और विकास प्रभावित होते हैं।

मुख्य बिंदु:

  • यह समस्या उन समुदायों में भी हो सकती है, जहां भोजन की उपलब्धता ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त होती है।
  • लोग यदि पोषक तत्वों से भरपूर फल, सब्जियां या पशु उत्पाद अपनी आर्थिक स्थिति के कारण नहीं खा पाते, तो सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी अनिवार्य हो जाती है।
  • यह कमी अक्सर समाज में बिना पहचान किए बनी रहती है, लेकिन इसके गंभीर प्रभाव होते हैं।
  • कम और मध्यम आय वाले देशों में यह स्वास्थ्य और सामाजिकआर्थिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव डालती है।

इसी कारण, सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी कोछिपी हुई भूखकहा जाता है

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष:

  1. प्रोटीन की अपर्याप्त खपत:
    • भारत के अर्धशुष्क उष्णकटिबंधीय (semi-arid tropics) क्षेत्रों में दो-तिहाई से अधिक परिवार अनुशंसित मात्रा से कम प्रोटीन का उपभोग कर रहे हैं।
    • यह समस्या प्रोटीन स्रोतों की उपलब्धता के बावजूद बनी हुई है
  2. मुख्य खाद्य पदार्थों पर निर्भरता: इन क्षेत्रों में लोग चावल और गेहूं जैसे प्रमुख अनाजों पर अत्यधिक निर्भर हैं।
    • ये अनाज रोज़ाना प्रोटीन खपत का 60-75% योगदान देते हैं।
  3. प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों का कम उपयोग:
    • दालें, डेयरी उत्पाद, अंडे और मांस का सेवन अपेक्षाकृत कम है।
    • इसका कारण केवल अभाव नहीं, बल्कि संस्कृतिक खाद्य प्राथमिकताएँ, पोषण संबंधी जागरूकता की कमी और आर्थिक सीमाएँ हैं।
  4. समृद्ध परिवारों में भी प्रोटीन की कमी: अधिक आय वाले परिवार, जो विविध आहार वहन कर सकते हैं, फिर भी अनुशंसित प्रोटीन स्तर तक नहीं पहुँच पाते
  5. महिलाओं की शिक्षा और संतुलित आहार: जिन घरों में महिलाएँ अधिक शिक्षित हैं, वहाँ संतुलित आहार का सेवन अधिक होता है।
  6. सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) की भूमिका: पीडीएस (PDS) ने कैलोरी सेवन बढ़ाने में मदद की है, लेकिन इसका मुख्य ध्यान अनाज पर रहा, जिससे प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों की आपूर्ति सीमित रही।
  7. आहार आदतों के पीछे के कारण:
    • गहरी जमी हुई आहार संबंधी आदतें।
    • प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों के महत्व की जानकारी की कमी।
    • आर्थिक सीमाएँ।

सिफारिशें (Recommendations):

  1. पोषण शिक्षा (Nutrition Education): जनस्वास्थ्य कार्यक्रमों और विद्यालय पाठ्यक्रम में पोषण शिक्षा को शामिल किया जाए।
  2. परिस्थितिविशेष दृष्टिकोण: एक ही नीति सभी के लिए उपयुक्त नहीं होती, इसलिए क्षेत्रीय आवश्यकताओं के अनुसार रणनीतियाँ अपनाई जाएँ।
  3. सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) में सुधार: प्रोटीन युक्त खाद्य पदार्थों को सरकारी राशन प्रणाली में शामिल किया जाए।
  4. कृषि प्रणाली में विविधता (Diversification of Farming Systems): सुपोषण युक्त फसलें जैसे बाजरा, दालें उगाने को प्रोत्साहित किया जाए और डेयरी पशुओं को कृषि में जोड़ा जाए।

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