हाल ही में भारतीय विदेश मंत्रालय ने घोषणा की है कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर 15-16 अक्टूबर को पाकिस्तान की यात्रा करेंगे। वे इस्लामाबाद में Shanghai Cooperation Organization (SCO) के हेड्स ऑफ गवर्नमेंट (CHG) की बैठक में भाग लेंगे। यह पिछले 9 वर्षों में पहली बार होगा जब भारत का कोई मंत्री पाकिस्तान का दौरा करेगा। इससे पहले दिसंबर 2015 में भारत की तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज भी पाकिस्तान दौरे पर गई थीं। यह यात्रा भारत और पाकिस्तान के बीच उच्च स्तरीय संवाद की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम मानी जा रही है।
Shanghai Cooperation Organization (SCO) का परिचय:
Shanghai Cooperation Organization (SCO) एक अंतर-सरकारी संगठन है जिसे 2001 में कजाकिस्तान, चीन, किर्गिस्तान, रूस, उज्बेकिस्तान और ताजिकिस्तान द्वारा स्थापित किया गया। इसका पहला शिखर सम्मेलन शंघाई, चीन में आयोजित हुआ था। यह संगठन वाणिज्य, निवेश, ऊर्जा, परिवहन और सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में आपसी सहायता और सहयोग को बढ़ावा देना चाहता है।
SCO के सिद्धांत और लक्ष्य: SCO का मूल सिद्धांत “शंघाई भावना” है, जिसमें शामिल हैं:
- आपसी विश्वास और लाभ
- समानता
- परामर्श
- सांस्कृतिक विविधता के लिए सहिष्णुता
- साझा प्रगति का लक्ष्य
प्राथमिक लक्ष्य:
- सदस्य देशों के बीच संबंधों में सुधार करना।
- विज्ञान, प्रौद्योगिकी, शिक्षा, ऊर्जा, पर्यटन, व्यापार और पर्यावरण संरक्षण में सहयोग को प्रोत्साहित करना।
- क्षेत्र में स्थिरता, सुरक्षा और शांति बनाए रखना।
- एक निष्पक्ष और लोकतांत्रिक वैश्विक राजनीतिक और आर्थिक प्रणाली की स्थापना करना।
SCO के सदस्य और संगठनात्मक संरचना:
वर्षों के अनुसार सदस्यता:
- 1996: कजाकिस्तान, चीन, किर्गिस्तान, रूस, और ताजिकिस्तान ने “शंघाई फाइव” का गठन किया।
- 2001: उज्बेकिस्तान के शामिल होने पर इसे SCO नाम दिया गया।
- 2015: भारत और पाकिस्तान को पूर्ण सदस्य के रूप में स्वीकार किया गया।
- 2016: भारत और पाकिस्तान ने औपचारिक रूप से सदस्यता की प्रक्रिया शुरू की।
- 2021: ईरान को पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल किया गया।
- 2024: हाल ही में बेलारूस को सदस्यता दी गई हैं।
वर्तमान सदस्य:
- बेलारूस, चीन, भारत, ईरान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, रूस, पाकिस्तान, ताजिकिस्तान, और उज्बेकिस्तान।
पर्यवेक्षक:
- अफगानिस्तान (निष्क्रिय) और मंगोलिया।
संवाद सहयोगी:
- अज़रबैजान, आर्मेनिया, कंबोडिया, श्रीलंका, मिस्र, नेपाल, कतर, सऊदी अरब, और तुर्की।
SCO की संगठनात्मक संरचना
- राज्य प्रमुखों की परिषद: यह परिषद सदस्य राष्ट्रों के राष्ट्राध्यक्षों द्वारा बनाई गई है, जो सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय है और हर साल बैठक करती है।
- गवर्नर्स काउंसिल: यह बहुपक्षीय सहयोग के मामलों पर चर्चा करने के लिए वार्षिक शिखर सम्मेलन आयोजित करती है।
- विदेश मामलों की मंत्रिपरिषद: यह परिषद संगठन की विदेश नीति का आयोजन करती है और प्रत्येक सदस्य राष्ट्र के विदेश मंत्रियों से मिलकर बनी होती है।
- राष्ट्रीय समन्वयक परिषद: यह परिषद SCO की गतिविधियों का समन्वय और प्रबंधन करती है।
- सचिवालय: बीजिंग में स्थित, यह SCO का प्राथमिक स्थायी कार्यकारी निकाय है और संगठन के निर्णयों का समन्वयन एवं कार्यान्वयन करता है।
- क्षेत्रीय आतंकवाद विरोधी संरचना (आरएटीएस): इसका मुख्यालय ताशकंद में है और यह आतंकवाद, अलगाववाद, और उग्रवाद का विरोध करने में सदस्य देशों के प्रयासों का समन्वय करती है।
- SCO व्यापार परिषद: इसका कार्य सदस्य देशों के बीच निवेश और आर्थिक सहयोग को प्रोत्साहित करना है।
- SCO इंटरबैंक कंसोर्टियम: इसमें सदस्य देशों के केंद्रीय बैंक शामिल होते हैं, जो वित्तीय सहयोग को बढ़ावा देते हैं।
शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का महत्व:
- सहयोग का क्षेत्र: एससीओ ने मुख्य रूप से क्षेत्रीय सुरक्षा, जातीय या धार्मिक प्रकृति के अलगाववादी आंदोलनों से लड़ने और क्षेत्रीय विकास को आगे बढ़ाने की चिंताओं को संबोधित किया है।
- एक बड़ी आबादी और विश्वव्यापी सकल घरेलू उत्पाद का समर्थन: इसमें विश्व के 22% भूमि क्षेत्र, 40% आबादी और वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 20% से अधिक शामिल है।
- सामरिक महत्व: एससीओ एशिया में क्षेत्रीय एकीकरण और सीमा पार स्थिरता को बढ़ावा देने में एक प्रेरक शक्ति हो सकता है।
- मादक पदार्थों की तस्करी और आतंकवाद के खिलाफ मजबूत रक्षा: एससीओ ने आतंकवाद, आर्थिक सहयोग, सैन्य सहयोग और मादक पदार्थों की तस्करी को प्राथमिकता दी है।
- क्वाड से तुलना: एससीओ ने सभी सदस्यों के “शांति मिशन” अभ्यासों के माध्यम से आम सैन्य और सुरक्षा उद्देश्यों को बढ़ावा देने की क्षमता प्रदर्शित की है।
भारत के लिए एससीओ का महत्व
- आतंकवाद का मुकाबला: भारत आतंकवाद का मुकाबला करने और सुरक्षा सहयोग को उच्च प्राथमिकता देता है, जिस पर एससीओ का जोर है।
- क्षेत्र में स्थिरता: एससीओ सदस्य के रूप में, भारत क्षेत्र में सुरक्षा और स्थिरता के संरक्षण का समर्थन कर सकता है।
- कनेक्टिविटी: एससीओ ने बुनियादी ढांचे के विकास और कनेक्टिविटी पर विशेष जोर दिया है, जो भारत के लक्ष्यों के अनुरूप है।
- आर्थिक सहयोग: सदस्य देशों के साथ आर्थिक सहयोग बढ़ने से नए बाजार, तकनीकी रास्ते और निवेश के अवसर खुलेंगे।
- बहुपक्षीय कूटनीति: भारत एससीओ को बहुपक्षीय कूटनीति में संलग्न होने का एक मंच के रूप में उपयोग कर सकता है।
- मध्य एशिया के साथ संबंधों को मजबूत करना: भारत की मध्य एशिया से जुड़ने की नीति को एससीओ के माध्यम से आगे बढ़ाया जा सकता है।
एससीओ में भारत के लिए चुनौतियाँ:
- चीन और रूस के साथ संबंधों में संतुलन बनाए रखना: भारत को इन देशों के साथ संतुलन बनाना चाहिए, क्योंकि उनके क्षेत्रीय और वैश्विक एजेंडे अलग हैं।
- क्षेत्रीय सुरक्षा संबंधी चिंताओं से निपटना: सुरक्षा चुनौतियों को हल करने में अन्य सदस्यों के साथ मिलकर काम करना चुनौती हो सकती है।
- पाकिस्तान के साथ संबंधों को संभालना: भारत को पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों को संभालने में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा।
- आर्थिक लाभ सुनिश्चित करना: भारत को बाजार पहुंच, बुनियादी ढांचे और कनेक्टिविटी सहित चिंताओं का समाधान करना होगा।
- भारत की सामरिक स्वायत्तता को संरक्षित करना: भारत को अपनी सामरिक स्वायत्तता और विदेश नीति के बीच संतुलन बनाना होगा।
- संप्रभुता का मुद्दा: भारत ने बेल्ट एंड रोड पहल पर अपनी अस्वीकृति व्यक्त की है, जबकि अन्य एससीओ देशों ने इसका स्वागत किया है।
- सीमित द्विपक्षीय व्यापार: भारत का रूस और मध्य एशिया के साथ व्यापार अत्यंत न्यूनतम है।
भारत एससीओ में महत्वपूर्ण योगदान कैसे दे सकता है?
- व्यापार निपटान के लिए राष्ट्रीय मुद्राओं को प्राथमिकता देना: भारत को द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय मुद्राओं में व्यापार निपटान की वकालत करनी चाहिए।
- एशियाई शताब्दी की ओर: एससीओ इस क्षेत्र में भारत के व्यापार संबंधों के लिए एक अनुकूल अवसर प्रस्तुत करता है।
- संवाद प्रक्रिया का पालन करना: स्वतंत्र और कूटनीतिक बातचीत तनावों को हल करने का बेहतर तरीका है।
- आतंकवाद का मुकाबला: एससीओ के साथ सहयोग से विभिन्न प्रकार के खतरों के विरुद्ध प्रयासों को बल मिलेगा।
- पर्यटन: साझा संस्कृतियों की समझ बढ़ने से यात्रा में वृद्धि हो सकती है।
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