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श्रीकृष्ण जन्माष्टमी

इस वर्ष (2024) जन्माष्टमी (Janmashtami), भगवान श्रीकृष्ण का 5251वां जन्मोत्सव, 26 अगस्त, सोमवार को मनाया जाएगा। यह पावन पर्व भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को पड़ता है, जो भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के समय के अनुसार है। इस वर्ष भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव ब्रज भूमि में 2 दिन मनाया जाएगा। यहां श्री कृष्ण जन्माष्टमी उत्सव 26 और 27 अगस्त को मनाई जाएगी। भगवान श्री कृष्ण की जन्मस्थली पर 26 अगस्त को तो उनकी लीला स्थली वृंदावन में 27 अगस्त को कान्हा का अभिषेक किया जाएगा।

परिचय :

जन्माष्टमी, जिसे श्रीकृष्ण जन्माष्टमी या गोकुलाष्टमी भी कहा जाता है, हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह पर्व भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, जो कि हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं। इस दिन का महत्व इसलिए भी है क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण ने अधर्म के नाश और धर्म की स्थापना के लिए धरती पर अवतार लिया था। उनका जन्म दिनांक भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को हुआ था, और इस दिन को उनकी लीलाओं की याद में पूरे देश में मनाया जाता है।

इतिहास –

भगवान श्री कृष्ण के जीवन की जानकारी महाभारत, पुराणों और भगवत पुराण में मिलती है। भगवान श्री कृष्ण देवकी (माँ) और वासुदेव (पिता) के आठवें पुत्र थे। उनके जन्म के समय अत्यधिक उत्पीड़न हो रहा था, स्वतंत्रता की कमी थी, और राजा कंस की जान को खतरा था। भगवान श्री कृष्ण का जन्म मथुरा, भारत के एक कारागार में हुआ, जहां उनके माता-पिता को उनके चाचा कंस ने बंदी बना रखा था। देवकी की शादी के दौरान, कंस को एक दिव्य आवाज़ ने चेतावनी दी थी कि देवकी के आठवें पुत्र के हाथों उसकी मृत्यु होगी। इस भविष्यवाणी को विफल करने के लिए, कंस ने देवकी और उसके पति को जेल में डाल दिया और उनके जन्मे पहले छह बच्चों को मार डाला।

भगवान श्री कृष्ण के जन्म के समय, माता देवकी की कोठरी के सैनिक सो गए और कोठरी का दरवाजा चमत्कारी तरीके से खुल गया। इस घटना ने वासुदेव को भगवान श्री कृष्ण को यमुना नदी पार करके अपने पालन-पोषण माता-पिता यशोदा (माँ) और नंद (पिता) के पास भेजने का अवसर दिया। इस किंवदंती का उत्सव जन्माष्टमी के दिन मनाया जाता है, जिसमें लोग उपवासी रहते हैं, भगवान श्री कृष्ण के प्रति भक्ति गीत गाते हैं और रातभर जागते हैं।

धार्मिक दृष्टिकोण से, भगवान श्री कृष्ण को एक दिव्य स्वरूप माना जाता है जिन्होंने महाभारत जैसे हिंदू महाकाव्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी शिक्षाएँ, कर्म, और जीवन की कहानी विभिन्न प्राचीन हिंदू ग्रंथों में वर्णित हैं, विशेष रूप से भगवद गीता में, जहां उन्होंने योद्धा अर्जुन को आध्यात्मिक ज्ञान और मार्गदर्शन प्रदान किया।

जन्माष्टमी (Janmashtami) का धार्मिक महत्व :

भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा नगरी के कारागार में हुआ था, जब उनकी माता देवकी और पिता वासुदेव को मथुरा के राजा कंस ने बंदी बना रखा था। माना जाता है कि श्रीकृष्ण का जन्म अधर्म के विनाश और धर्म की पुनः स्थापना के लिए हुआ था। गीता में दिए गए उनके उपदेश, जैसे ‘कर्म करो, फल की चिंता मत करो’, आज भी जीवन के हर पहलू में मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।

जन्माष्टमी (Janmashtami) की परंपराएं :

  • व्रत और उपवास:
  • जन्माष्टमी के दिन भक्त व्रत रखते हैं और रात में भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के समय (मध्यरात्रि) उनका अभिषेक करके व्रत खोलते हैं।
  • उपवास का यह रूप आध्यात्मिक शुद्धि और भक्ति का प्रतीक है।
  • इस दौरान भक्त केवल फलाहार करते हैं और दिनभर भजन-कीर्तन करते हैं।
  • झांकी और नाटक:
  • मंदिरों और घरों में भगवान श्रीकृष्ण की झांकी सजाई जाती है, जिसमें उनके जीवन की विभिन्न लीलाओं का चित्रण किया जाता है।
  • विशेषकर मथुरा, वृंदावन, और द्वारका में, जहां श्रीकृष्ण ने अपना जीवन बिताया, वहां बड़े पैमाने पर झांकियों का आयोजन किया जाता है।
  • श्रीकृष्ण लीला के नाट्य मंचन भी इस दिन का विशेष आकर्षण होते हैं।
  • मटकी फोड़ (दही-हांडी):
  • महाराष्ट्र और गुजरात में जन्माष्टमी के अवसर पर मटकी फोड़ (दही-हांडी) प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है।
  • इसमें श्रीकृष्ण के बाल रूप का अनुकरण करते हुए ऊंचाई पर लटकी मटकी फोड़ने की परंपरा है, जो उनके माखन चोरी की लीला से जुड़ी है।
  • यह आयोजन एकता, साहस और सहयोग का प्रतीक है।
  • भजन-कीर्तन और रात्रि जागरण:
  • जन्माष्टमी के अवसर पर मंदिरों में रात भर भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण के विभिन्न नामों और लीलाओं का गुणगान किया जाता है।
  • रात्रि जागरण के दौरान भगवान के जन्म के समय विशेष आरती और पूजा का आयोजन होता है।

विभिन्न राज्यों में जन्माष्टमी (Janmashtami) के आयोजन :

भारत में जन्माष्टमी विभिन्न राज्यों में अलग-अलग तरीकों से मनाई जाती है, जो कि उस क्षेत्र की परंपराओं और सांस्कृतिक धरोहरों को दर्शाती है।

  • उत्तर प्रदेश:
  • उत्तर प्रदेश में मथुरा और वृंदावन जन्माष्टमी के सबसे प्रमुख केंद्र हैं।
  • मथुरा, जहां भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, और वृंदावन, जहां उन्होंने अपना बाल्यकाल बिताया, में जन्माष्टमी विशेष रूप से धूमधाम से मनाई जाती है।
  • यहां पूरे दिन मंदिरों में पूजा, आरती, और झांकियों का आयोजन होता है।
  • मथुरा के कृष्ण जन्मभूमि मंदिर में हजारों भक्त एकत्रित होते हैं, और रात में श्रीकृष्ण के जन्म के समय विशेष पूजा और आरती होती है।
  • महाराष्ट्र:
  • महाराष्ट्र में जन्माष्टमी का प्रमुख आकर्षण दही-हांडी होता है। मुंबई और पुणे में इस आयोजन को बड़े पैमाने पर मनाया जाता है।
  • युवाओं के समूह (गोविंदा पथक) ऊंची मटकी को फोड़ने के लिए एक मानव पिरामिड बनाते हैं।
  • यह आयोजन बहुत ही जोश और उत्साह के साथ होता है, और इसमें अनेक पुरस्कार भी दिए जाते हैं।
  • गुजरात:
  • गुजरात में द्वारका, जो कि भगवान श्रीकृष्ण की नगरी मानी जाती है, जन्माष्टमी का प्रमुख केंद्र है।
  • यहां पूरे राज्य में मंदिरों को सजाया जाता है और भक्त भगवान के जन्मदिन का उत्सव मनाते हैं।
  • द्वारकाधीश मंदिर में विशेष पूजा, आरती, और भजन-कीर्तन का आयोजन होता है, जिसमें हजारों की संख्या में भक्त शामिल होते हैं।
  • राजस्थान:
  • राजस्थान में भी जन्माष्टमी को बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है।
  • जयपुर, उदयपुर, और जोधपुर जैसे शहरों में मंदिरों को विशेष रूप से सजाया जाता है।
  • यहां के मंदिरों में भगवान श्रीकृष्ण की झांकियां सजाई जाती हैं, और रात्रि जागरण के साथ-साथ भव्य कृष्णलीला का आयोजन होता है।
  • जम्मू क्षेत्र:
  • जम्मू क्षेत्र में जन्माष्टमी को “ठोकर/ठाकुरे दा व्रत” कहा जाता है, जिसका मतलब है श्री कृष्ण के लिए किया गया व्रत। इस दिन लोग एक दिन का फलाहारी व्रत करते हैं और जम्मू के प्रमुख शहरों की सड़कों पर भंडारे (सामाजिक भोजन) होते हैं।
  • जन्माष्टमी के दिन जम्मू में पतंग उड़ाने का मौसम शुरू होता है। लोग अपने घरों की छतों से सजाई हुई पतंगें उड़ाते हैं। दूसरी ओर, लड़कियाँ और महिलाएँ अपने हाथों को तीरा (एक खास पौधे के रंग) से सजाती हैं।
  • एक और परंपरा “दिया परना” है, जिसमें लोग अपने पूर्वजों और कुलदेवताओं के नाम पर अनाज का दान करते हैं। इस दिन महिलाएँ एक पवित्र पेड़, जिसे जंद कहते हैं, की पूजा करती हैं और विशेष रोटियाँ बनाकर गायों और देवताओं को अर्पित करती हैं।
  • कश्मीर:
  • कश्मीर में जन्माष्टमी को ज़राम सातम (जन्म सप्तमी) कहा जाता है।
  • कश्मीरी पंडित इस दिन व्रत रखते हैं और आधी रात को कृष्ण मंदिर जाते हैं। रात में, मंदिरों में भगवान श्री कृष्ण की पूजा की जाती है, जिसमें उनका अभिषेक (पवित्र स्नान) और भजन (भक्तिगीत) शामिल होते हैं।
  • इस दिन उपवास के लिए गेर या सिंघाड़ा लापसी (जलChestnut के आटे से बनी) फल और सूखे मेवे खाए जाते हैं।
  • उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में जन्माष्टमी
  • पूर्वी राज्य उड़ीसा, विशेष रूप से पुरी और पश्चिम बंगाल के नबाद्वीप क्षेत्र में, जन्माष्टमी को श्री कृष्ण जन्माष्टमी या केवल श्री जन्माष्टमी के रूप में भी जाना जाता है।
  • इस त्योहार को मनाने के लिए लोग उपवासी रहते हैं और आधी रात तक पूजा करते हैं। भागवतम पुराण के दसवें अध्याय का पाठ किया जाता है, जो भगवान श्री कृष्ण के जीवन को समर्पित है।
  • अगले दिन को “नंदा उत्सव” कहा जाता है, जो भगवान श्री कृष्ण के पालन-पोषण माता-पिता नंद और यशोदा की खुशी का उत्सव होता है।
  • भक्त जन्माष्टमी के पूरे दिन उपवासी रहते हैं और गंगा से पानी लाकर राधा माधब का अभिषेक करते हैं। आधी रात को राधा माधब का भव्य अभिषेक किया जाता है।
  • उड़ीसा में पुरी का जगन्नाथ मंदिर, जो अपनी भव्य रथ यात्रा के लिए प्रसिद्ध है, जन्माष्टमी के दौरान भी रथ यात्रा आयोजित करता है।
  • दक्षिण भारत:
  • दक्षिण भारत में जन्माष्टमी को ‘गोकुलाष्टमी’ के नाम से जाना जाता है।
  • तमिलनाडु, कर्नाटक, और आंध्र प्रदेश में इस दिन विशेष पूजा का आयोजन होता है।
  • यहां के मंदिरों में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्तियों को स्नान कराकर, उन्हें नए वस्त्र पहनाए जाते हैं और विशेष प्रसाद तैयार किया जाता है।
  • कर्नाटक में उरियाडी नामक एक पारंपरिक खेल का आयोजन होता है, जो मटकी फोड़ से मिलता-जुलता है।
  • पूर्वी और उत्तर-पूर्वी भारत में जन्माष्टमी:
  • जन्माष्टमी पूर्वी और उत्तर-पूर्वी भारत में हिंदू वैष्णव समुदायों द्वारा बहुत धूमधाम से मनाई जाती है। इस परंपरा की शुरुआत 15वीं और 16वीं सदी के संत संकर्देव और चैतन्य महाप्रभु के प्रयासों से हुई। संकर्देव ने संगीत और नृत्य-नाटक की शैलियाँ पेश कीं, जैसे कि बorgeet और सत्रिया, जो अब पश्चिम बंगाल और असम में लोकप्रिय हैं। मणिपुर में रासलीला नामक पारंपरिक नृत्य भगवान श्री कृष्ण, राधा और गोपियों के प्रेम को दर्शाता है।
  • जन्माष्टमी पर, माता-पिता अपने बच्चों को भगवान श्री कृष्ण या गोपियों के रूप में सजाते हैं। मंदिरों और सामुदायिक केंद्रों को फूलों और पत्तियों से सजाया जाता है। लोग भागवतम पुराण और भगवद गीता के दसवें अध्याय का पाठ करते हैं या सुनते हैं।
  • मणिपुर में जन्माष्टमी का त्योहार उपवास, जागरण, शास्त्रों का पाठ और भगवान श्री कृष्ण की प्रार्थनाओं के साथ मनाया जाता है। मथुरा और वृंदावन में रासलीला नृत्य एक प्रमुख परंपरा है। मीतेई वैष्णव समुदाय में बच्चे Likol Sannaba खेलते हैं।
  • श्री गोविंदजी मंदिर और ISKCON मंदिर विशेष रूप से जन्माष्टमी का त्योहार मनाते हैं। असम में जन्माष्टमी घरों और नामघर नामक सामुदायिक केंद्रों में मनाई जाती है। भक्त नाम गाते हैं, पूजा करते हैं, और भोजन तथा प्रसाद बाँटते हैं।

विदेशों में श्री कृष्ण जन्माष्टमी (Janmashtami): भारतीय संस्कृति का वैश्विक उत्सव

भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव, जन्माष्टमी, केवल भारत तक ही सीमित नहीं है। यह पावन पर्व विश्व के विभिन्न कोनों में बसे भारतीय समुदाय द्वारा बड़े ही उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। आइए, देखें विदेशों में जन्माष्टमी के रंग कैसे बिखरते हैं:

उत्तरी अमेरिका:

  • संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा: यहाँ बड़े शहरों में इस्कॉन मंदिरों में भव्य आयोजन होते हैं। भक्त रात्रि जागरण करते हैं, कीर्तन करते हैं, और कृष्ण लीला का मंचन करते हैं। कई स्थानों पर दही हांडी प्रतियोगिताएँ भी आयोजित की जाती हैं।
  • कैरिबियन द्वीप समूह: त्रिनिदाद और टोबैगो, गुयाना, और जमैका में बसे भारतीय मूल के लोग जन्माष्टमी को पारंपरिक तरीके से मनाते हैं। यहाँ मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना होती है और भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है।

यूरोप:

  • यूनाइटेड किंगडम: लंदन और अन्य शहरों में इस्कॉन मंदिरों में जन्माष्टमी का उत्सव बड़े पैमाने पर होता है। यहाँ भारतीय समुदाय के लोग एकत्रित होकर भजन-कीर्तन करते हैं और कृष्ण लीला का आनंद लेते हैं।
  • अन्य यूरोपीय देश: जर्मनी, फ्रांस, और नीदरलैंड जैसे देशों में भी भारतीय समुदाय के लोग जन्माष्टमी मनाते हैं। यहाँ छोटे समूहों में एकत्रित होकर भजन-कीर्तन और पूजा-अर्चना की जाती है।

दक्षिण पूर्व एशिया:

  • नेपाल: नेपाल में जन्माष्टमी एक राष्ट्रीय त्योहार है। यहाँ के मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना होती है और भक्त रात्रि जागरण करते हैं।
  • मलेशिया और सिंगापुर: यहाँ बसे भारतीय समुदाय के लोग जन्माष्टमी को अपने घरों और मंदिरों में मनाते हैं।

ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड:

  • ऑस्ट्रेलिया: सिडनी, मेलबर्न, और ब्रिस्बेन जैसे शहरों में इस्कॉन मंदिरों में जन्माष्टमी का उत्सव होता है।
  • न्यूजीलैंड: ऑकलैंड और वेलिंगटन में भारतीय समुदाय के लोग जन्माष्टमी मनाते हैं।

अफ्रीका:

  • दक्षिण अफ्रीका और मॉरीशस: यहाँ बसे भारतीय मूल के लोग जन्माष्टमी को अपने घरों और मंदिरों में मनाते हैं।

विदेशों में जन्माष्टमी का महत्व

विदेशों में जन्माष्टमी मनाने का महत्व केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक भी है। यह त्योहार भारतीय समुदाय को अपनी जड़ों से जोड़े रखता है और उन्हें अपनी संस्कृति और परंपराओं पर गर्व करने का अवसर देता है। यह त्योहार विभिन्न संस्कृतियों के लोगों को एक साथ लाता है और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देता है।

निष्कर्ष

जन्माष्टमी का त्योहार न केवल धार्मिक भावना का प्रतीक है, बल्कि यह जीवन में धर्म, न्याय, और प्रेम की स्थापना का संदेश भी देता है। यह पर्व विभिन्न राज्यों में अपनी विशिष्ट परंपराओं और रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है, जो भारतीय संस्कृति की विविधता को दर्शाता है। इस दिन को मनाकर हम भगवान श्रीकृष्ण के आदर्शों को अपने जीवन में अपनाने का संकल्प लेते हैं और उनके उपदेशों का पालन करने की प्रेरणा पाते हैं।

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