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संदर्भ:
दक्षिण-पूर्व एशिया निगरानी नेटवर्क: भारत ने महामारी और स्वास्थ्य आपात स्थितियों की बेहतर प्रतिक्रिया के लिए दक्षिण–पूर्व एशिया निगरानी नेटवर्क बनाने का प्रस्ताव दिया है, जिससे बहु-स्रोत सहयोगी निगरानी को मजबूत किया जा सके। इस प्रस्ताव पर इस वर्ष के अंत में WHO दक्षिण–पूर्व एशिया क्षेत्र (SEARO) के 11 सदस्य देशों के साथ चर्चा की जाएगी।
दक्षिण-पूर्व एशिया निगरानी नेटवर्क का प्रस्ताव:
- प्रस्ताव की प्रस्तुति: यह प्रस्ताव WHO दक्षिण–पूर्व एशिया क्षेत्र (SEARO) द्वारा आयोजित मल्टीसोर्स सहयोगात्मक निगरानी पर क्षेत्रीय बैठक में प्रस्तुत किया गया।
- उद्देश्य: मल्टी–सोर्स निगरानी (Multi-source Surveillance) को बढ़ावा देना और 11 SEARO सदस्य देशों के बीच सीमा–पार सहयोग (Cross-border Collaboration) को सशक्त बनाना।
- लक्ष्य:
- वास्तविक समय में स्वास्थ्य डेटा साझा करना (Real-time Health Data Sharing) और क्षेत्र में बहु–क्षेत्रीय सहयोग (Multi-sectoral Collaboration) को मजबूत करना।
- बीमारियों की पहचान, निगरानी और महामारी व आपदाओं के प्रति प्रतिक्रिया (Disease Detection, Monitoring, and Response) को बेहतर बनाना।
- जटिल स्वास्थ्य आपात स्थितियों में तथ्यों पर आधारित निर्णय लेना (Evidence-based Decision-Making)।
- कार्यान्वयन ढाँचा (Implementation Framework):
- WHO के क्षेत्रीय मैनुअल ऑन पब्लिक हेल्थ डिसीजन–मेकिंग विद मल्टीसोर्स कोलैबोरेटिव सर्विलांस का उपयोग करना, जिसमें स्टेप–बाय–स्टेप एप्रोच शामिल है।
- इंडोनेशिया और नेपाल जैसे देशों ने पहले ही इसका कार्यान्वयन शुरू कर दिया है।
- प्रयोगशाला प्रणालियों को सुदृढ़ करना (Strengthen Laboratory Systems) और स्वास्थ्य सुरक्षा में सुधार के लिए क्रॉस–सेक्टोरल पार्टनरशिप को सशक्त बनाना।
मुख्य फोकस क्षेत्र (Key Focus Areas):
- महामारी और आपदा तैयारी: संक्रामक बीमारियों और उभरते स्वास्थ्य खतरों का सामना करने के लिए प्रतिक्रियाओं में सुधार करना।
- जूनोटिक और खाद्यजनित रोग : मानव-पशु-पारिस्थितिकी तंत्र के इंटरफेस पर खतरों का समाधान करना।
- जलवायु–जनित स्वास्थ्य आपातकाल: जलवायु परिवर्तन से जुड़ी वेक्टर-जनित और जलजनित बीमारियों का सामना करना।
- एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध (AMR): दवा-प्रतिरोधी संक्रमणों का मुकाबला करने के लिए क्षेत्रीय प्रयासों को सशक्त बनाना
दक्षिण–पूर्व एशिया निगरानी नेटवर्क को लागू करने में चुनौतियाँ:
- डेटा साझाकरण की समस्याएँ: गोपनीयता की चिंताओं और भू-राजनीतिक तनावों के कारण देश संवेदनशील स्वास्थ्य डेटा साझा करने से हिचकिचा सकते हैं।
- मानकीकृत प्रणालियों की कमी: विभिन्न देशों में निगरानी ढाँचों (Surveillance Frameworks) में भिन्नता के कारण डेटा असंगतता और रिपोर्टिंग में देरी हो सकती है।
- वित्तपोषण और बुनियादी ढाँचे की कमी: उन्नत प्रयोगशालाओं, निदान सुविधाओं और डिजिटल स्वास्थ्य उपकरणों का विकास करने के लिए निरंतर वित्तीय निवेश की आवश्यकता होती है।
- सीमित बहु–क्षेत्रीय समन्वय: प्रभावी निगरानी के लिए स्वास्थ्य, पर्यावरण, कृषि और प्रौद्योगिकी क्षेत्रों के बीच सहयोग आवश्यक है, जो अक्सर कमज़ोर होता है।
- नियमात्मक और कानूनी बाधाएँ: अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियमों (IHR) (2005) में संशोधन को समान रूप से अपनाना आवश्यक है ताकि क्षेत्रीय एकीकरण में कोई बाधा न आए।