25 अगस्त, 2024 को चामराजनगर जिले (कर्नाटक) के बीआर हिल्स में दक्षिण भारत की पहली आदिवासी लाइब्रेरी ‘कानू’ (Kanu) का उद्घाटन किया जाएगा। ‘कानू’ का सोलीगा भाषा में अर्थ होता है ‘सदाबहार जंगल’, और यह आदिवासी ज्ञान का एक नया केंद्र होगा।
“कानू” (Kanu) स्थापना का उद्देश्य और प्रेरणा –
- जनजातीय समुदायों के विद्वानों ने बीआर हिल्स के चिकित्सा चिकित्सक और सार्वजनिक स्वास्थ्य शोधकर्ता डॉ. प्रशांत एन श्रीनिवास और जर्मनी के व्रानर के साथ बातचीत के बाद ‘कानू’ की स्थापना का निर्णय लिया।
- इस पुस्तकालय का उद्देश्य जेनु कुरुबा, कडु कुरुबा, बेट्टा कुरुबा, सोलीगा और अन्य वन-आधारित जनजातियों पर किए गए शोधों को प्रदर्शित करना और इसके माध्यम से अनुसंधान को बढ़ावा देना है।
पुस्तकालय के लाभ और प्रोत्साहन –
- ‘कानू’ (Kanu) में जंगल में रहने वाले आदिवासी लोगों पर शोध करने वाले छात्र और विद्वान आ सकते हैं और वहां की सुविधाओं का लाभ उठा सकते हैं।
- आदिवासियों को उनके रीति-रिवाजों, परंपराओं, भाषाओं, कला और संस्कृति के बारे में लिखने के लिए प्रोत्साहित करने का उद्देश्य रखा है।
- जिले में 250 आदिवासी डिग्री और पीजी कोर्स कर रहे हैं, लेकिन उनके समुदायों से संबंधित जानकारी प्रदान करने वाला कोई पुस्तकालय नहीं था।
आदिवासी कौन हैं?· आदिवासी शब्द दो भागों ‘आदि’ और ‘वासी’ से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है ‘प्रारंभिक काल से इस देश में निवास करने वाले लोग’। · 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत की जनसंख्या का 8.6% आदिवासियों का है। भारतीय संविधान में इन्हें ‘अनुसूचित जनजाति’ के रूप में संदर्भित किया गया है। · भारत के प्रमुख आदिवासी समुदायों में गोंड, हल्बा, मुण्डा, मीणा, खड़िया, बोडो, कोल, भील, नायक, सहरिया, संथाल, भूमिज, हो, उरांव, बिरहोर, पारधी, असुर, भिलाला आदि शामिल हैं। · भारत में आदिवासियों को आमतौर पर ‘जनजातीय लोग’ के रूप में जाना जाता है। · आदिवासी मुख्यतः भारतीय राज्यों ओडिशा, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, झारखंड, अंडमान-निकोबार, सिक्किम, त्रिपुरा, मणिपुर, मिज़ोरम, मेघालय, नागालैंड और असम में बहुसंख्यक हैं, जबकि गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, बिहार, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल में वे अल्पसंख्यक हैं। · भारत सरकार ने इन्हें संविधान की पांचवी अनुसूची के तहत “अनुसूचित जनजाति” के रूप में मान्यता दी है। |
निष्कर्ष :
‘कानू’ (Kanu) का उद्घाटन आदिवासी संस्कृति और अनुसंधान के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम होगा। यह पुस्तकालय आदिवासी समुदायों के ज्ञान को संरक्षित करने और उनके सांस्कृतिक धरोहर को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
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