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अनुसूचित जातियों का उप-वर्गीकरण (Sub-classification of Scheduled Castes)

संदर्भ:

अनुसूचित जातियों का उप-वर्गीकरण (Sub-classification of Scheduled Castes) : आंध्र प्रदेश मंत्रिमंडल ने अनुसूचित जातियों (SCs) के उपवर्गीकरण पर एकसदस्यीय आयोग की सिफारिशों को मंजूरी दी, जिससे लाभों का समान वितरण सुनिश्चित किया जा सके।

अनुसूचित जातियों का उप-वर्गीकरण (Sub-classification of Scheduled Castes) :

उप-वर्गीकरण का मतलब है, अनुसूचित जाति (SCs), अनुसूचित जनजाति (STs) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBCs) जैसी बड़ी श्रेणियों के भीतर छोटे-छोटे उप-समूह बनाना, ताकि असमानताओं को दूर किया जा सके और लाभ और अवसरों का समान वितरण सुनिश्चित किया जा सके।

उपवर्गीकरण का उद्देश्य:

  • श्रेणी के भीतर असमानताओं को दूर करना: इसका मुख्य उद्देश्य इन बड़ी श्रेणियों के भीतर मौजूद असमानताओं को खत्म करना है।
  • समान वितरण सुनिश्चित करना: यह सुनिश्चित करना कि सकारात्मक कार्रवाई के लाभ सबसे अधिक वंचित उप-समूहों तक पहुंचें।

संबंधित सुप्रीम कोर्ट के फैसले:

  1. 1975 (पंजाब सरकार का नोटिफिकेशन): पंजाब सरकार ने अनुसूचित जातियों (SC) के आरक्षण में सबसे पिछड़े समुदायों, बाल्मीकि और मजहबी सिख समुदायों, को प्राथमिकता देने के लिए एक नोटिफिकेशन जारी किया।
  2. 2004 (E.V. Chinnaiah मामला):
    • सुप्रीम कोर्ट ने आंध्र प्रदेश में इसी तरह के कानून को रद्द कर दिया।
    • अदालत ने माना कि अनुच्छेद 341/342 के तहत राष्ट्रपति की सूची में शामिल होने के बाद अनुसूचित जाति (SCs) और अनुसूचित जनजाति (STs) एकल और अविभाज्य वर्ग बन जाते हैं।
    • राज्यों को SC/ST आरक्षण में उप-वर्गीकरण या कोटा बनाने की अनुमति नहीं थी।
  3. 2020 (पुनर्विचार की आवश्यकता):
    • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 2004 के V. Chinnaiah के फैसले की दोबारा समीक्षा होनी चाहिए।
    • अदालत ने स्वीकार किया कि अनुसूचित जाति की सूची में भी असमानताएं मौजूद हैं।
    • Jarnail Singh बनाम लक्ष्मी नारायण गुप्ता (2018) के फैसले में यह स्पष्ट किया गया कि अनुसूचित जातियों (SCs) पर भी अब ‘क्रीमी लेयर’ का सिद्धांत लागू होता है।
  4. 2024 (उपवर्गीकरण की अनुमति):
    • सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जातियों (SCs) और अनुसूचित जनजातियों (STs) में उप-वर्गीकरण की अनुमति दी, ताकि सकारात्मक कार्रवाई का लाभ समान रूप से वितरित किया जा सके।
    • इसके लिए सख्त दिशानिर्देश निर्धारित किए गए।
    • अदालत ने स्पष्ट किया कि अनुच्छेद 341 केवल राष्ट्रपति के अधिकार को सीमित करता है कि वे SC समूहों को सूची में जोड़ या हटाने का कार्य करें, लेकिन यह उप-वर्गीकरण को प्रतिबंधित नहीं करता।

उपवर्गीकरण के पक्ष में तर्क

  • अपर्याप्त प्रतिनिधित्व का समाधान:राज्यों का तर्क है कि कुछ अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के समूह आरक्षण के बावजूद भी कम प्रतिनिधित्व पाते हैं।
  • SC/ST समूहों में असमानता:सभी SC/ST समान रूप से पिछड़े नहीं होते; कुछ समूह अधिक गंभीर सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों का सामना करते हैं।
  • वास्तविक समानता की प्राप्ति:संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुसार, आंतरिक असमानताओं को दूर करने के लिए उप-वर्गीकरण करना वास्तविक समानता प्राप्त करने में सहायक हो सकता है।
  • जाति जनगणना की आवश्यकता:उप-वर्गीकरण लागू करने से जाति जनगणना करने की आवश्यकता को प्रोत्साहन मिल सकता है, जिससे आरक्षण वितरण में असमानताओं का सही आकलन और समाधान किया जा सके।

उपवर्गीकरण के विरोध में तर्क:

  • राजनीतिक लाभ के लिए दुरुपयोग का खतरा:आलोचकों का कहना है कि उप-वर्गीकरण का राजनीतिक लाभ के लिए दुरुपयोग किया जा सकता है, जिससे आरक्षण के मूल उद्देश्य को क्षति पहुंच सकती है।
  • संवैधानिक उल्लंघन: यह तर्क दिया जाता है कि राष्ट्रपति की SC सूची में बदलाव करना, जो केवल संसद का अधिकार है, संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन है।

 

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