Prelims GS- महत्वपूर्ण भूभौतिकीय घटनाएँ, भौतिक भूगोल Mains GS II – राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन और योजना |
चर्चा में क्यों?
सुपर टाइफून यागी इस समय चर्चा का विषय बना हुआ है क्योंकि चीन के दक्षिणी तट पर प्रशांत महासागर से उठे सुपर टाइफून (Typhoon) यागी ने अपना प्रचंड रूप दिखाया है। यह इस दशक का सबसे शक्तिशाली तूफान माना जा रहा है, जिस कारण इसे सुपर टाइफून कहा गया। जिसने चीन के हैनान प्रांत में जबरदस्त तबाही मचाई। इस तूफान की वजह से 250 किमी/घंटा की रफ्तार से हवाएं चली। इसकी प्रचंडता और चीन जैसे बड़े देश पर इसका असर इसे अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में ला रहा है।
टाइफून (Typhoon) या तूफान क्या है?
- टाइफून एक शक्तिशाली उष्णकटिबंधीय चक्रवात है, जो मुख्य रूप से उत्तर-पश्चिमी प्रशांत महासागर में उत्पन्न होता है। यह चक्रवात 180 डिग्री और 100 डिग्री पूर्वी देशांतर के बीच बनने वाले तूफानों को संदर्भित करता है।
- जब समुद्र की सतह का तापमान काफी बढ़ जाता है और हवा में उच्च आर्द्रता होती है, तो एक कम दबाव क्षेत्र का निर्माण होता है, जो इस प्रकार के चक्रवातों को जन्म देता है। टाइफून तब और अधिक शक्तिशाली हो जाता है जब इसकी हवाएं कम से कम 119 किलोमीटर प्रति घंटे (74 मील प्रति घंटे) की गति से चलने लगती हैं।
- इन चक्रवातों को दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में विभिन्न नामों से जाना जाता है। उदाहरण के लिए, उत्तर अटलांटिक महासागर और पूर्वी प्रशांत महासागर में इन्हें ‘हेरिकेन’ या तूफान कहा जाता है, जबकि उत्तर-पश्चिमी प्रशांत में इन्हें ‘टाइफून’ कहा जाता है।
- टाइफून समुद्री क्षेत्रों और तटीय इलाकों में भारी तबाही मचा सकता है, जिससे तेज हवाओं के साथ-साथ मूसलधार बारिश, बाढ़ और भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।
- टाइफून से प्रभावित देशों में मुख्य रूप से चीन, जापान, फिलीपींस, ताइवान और वियतनाम जैसे देश शामिल हैं, जहां हर साल इन चक्रवातों से भारी नुकसान होने की आशंका बनी रहती है।
- इन क्षेत्रों में Typhoonका मौसम जून से नवंबर के बीच होता है, जब यह तूफान अपने चरम पर होते हैं।
टाइफून (Typhoon) के निर्माण की आवश्यक परिस्थितियां और प्रक्रिया
टाइफून के निर्माण के लिए कुछ विशेष परिस्थितियों और आवश्यकताओं की जरूरत होती है। इन आवश्यकताओं की पूर्ति से ही उष्णकटिबंधीय चक्रवात का विकास होता है, जो बाद में टाइफून का रूप धारण कर लेता है।
- गर्म समुद्री सतह का तापमान: टाइफून के बनने के लिए समुद्री सतह का तापमान 26.5°C (80°F) या उससे अधिक होना चाहिए। यह गर्म पानी वाष्पीकरण की प्रक्रिया को तेज करता है, जिससे अधिक मात्रा में नमी हवा में मिल जाती है। जब यह नमी ऊंचाई पर जाकर संघनित होती है, तो गर्मी (गुप्त ऊष्मा) उत्पन्न होती है, जो निम्न दबाव क्षेत्र को और भी अधिक शक्तिशाली बनाती है। समुद्र के गर्म पानी को टाइफून का “ईंधन” माना जाता है, जो इसे ऊर्जा प्रदान करता है।
- वायुमंडलीय अस्थिरता: जब निचली सतह से गर्म हवा ऊपर उठती है, तो वहां कम दबाव का क्षेत्र बनता है। इसी अस्थिरता के कारण चक्रवाती प्रणाली बनती है, जो लगातार तेज हवाओं और भारी वर्षा के रूप में विकसित होती जाती है।
- उच्च आर्द्रता: क्षोभमंडल के निचले और मध्य स्तर में आर्द्रता का स्तर उच्च होना चाहिए। अधिक आर्द्रता के कारण वाष्पीकरण और संघनन की प्रक्रिया में तेजी आती है, जो गर्मी पैदा करती है और टाइफून को मजबूत करने में सहायक होती है।
- कम ऊर्ध्वाधर पवन कतरनी: टाइफून के बनने के लिए ऊर्ध्वाधर पवन कतरनी (विभिन्न ऊंचाइयों पर हवा की गति और दिशा में अंतर) का कम होना जरूरी होता है। कम पवन कतरनी होने पर चक्रवात को बिना किसी रुकावट के संगठित होने का अवसर मिलता है, जिससे यह और भी ज्यादा शक्तिशाली हो सकता है।
- कोरिओलिस प्रभाव: कोरिओलिस प्रभाव पृथ्वी के घूर्णन के कारण होता है और यह वायु के बहाव को प्रभावित करता है। यह प्रभाव उष्णकटिबंधीय चक्रवातों में घुमावदार गति पैदा करता है और निम्न दबाव के केंद्र के चारों ओर हवा को चक्राकार रूप से घुमने में मदद करता है।
- निम्न दबाव क्षेत्र: जब समुद्र की सतह पर गर्मी के कारण हवा उठती है, तो वहां कम दबाव का क्षेत्र बनता है। यह निम्न दबाव क्षेत्र आस-पास की ठंडी और उच्च दबाव वाली हवाओं को अपनी ओर खींचता है, जिससे चक्रवात का निर्माण शुरू होता है।
- परिसंचरण का विकास: जैसे-जैसे नमी वाली हवा ऊंचाई की ओर उठती है, उसकी जगह लेने के लिए और अधिक हवा नीचे से ऊपर की ओर खींची जाती है। यह प्रक्रिया चक्रवात की घूर्णी गति को बढ़ाती है और धीरे-धीरे इसे एक शक्तिशाली टाइफून में बदल देती है।
- टाइफून का निर्माण एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें समुद्री सतह का उच्च तापमान, वायुमंडलीय अस्थिरता, और उच्च आर्द्रता की आवश्यकता होती है। गर्म समुद्री पानी से वाष्पित नमी जब ऊँचाई पर संघनित होती है, तो ऊर्जा उत्पन्न होती है, जो निम्न दबाव क्षेत्र को सुदृढ़ करती है। कम ऊर्ध्वाधर पवन कतरनी और कोरिओलिस प्रभाव इस प्रणाली को चक्रवात में विकसित करने में मदद करते हैं, जिससे टाइफून का निर्माण होता है।
टाइफून (Typhoon) की नामपद्धति
- टाइफून का नामकरण विभिन्न देशों के सहयोग से किया जाता है, जिनके क्षेत्र हर साल इन चक्रवातों से प्रभावित होते हैं। एशिया के विभिन्न मौसम विज्ञान केंद्रों द्वारा नामों की एक सूची तैयार की जाती है। इस सूची में नामों की एक श्रृंखला होती है, जो बार-बार उपयोग में लाए जाते हैं, ताकि चक्रवातों को पहचानना आसान हो सके।
- नामों की सूची विभिन्न देशों की सांस्कृतिक और भाषाई विविधताओं को ध्यान में रखते हुए तैयार की जाती है। प्रत्येक सूची में आमतौर पर 140 नाम होते हैं, जो चक्रवात के खत्म होने के बाद उपयोग किए जाते हैं। सूची में जिस देश द्वारा दिया गया नाम पहले आता है, उस तूफान को वह नाम दे दिया जाता हैं।
टाइफून (Typhoon) के प्रकार (तीव्रता के आधार पर)
टाइफून की तीव्रता को उसकी हवाओं की गति और प्रभाव के आधार पर विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है। सामान्यत: इन श्रेणियों में शामिल होते हैं:
- उष्णकटिबंधीय अवसाद: यह सबसे कम तीव्रता का वर्ग है। इसमें हवाओं की गति 38 समुद्री मील (61 किमी/घंटा) से कम होती है। यह एक प्रारंभिक चरण होता है जिसमें चक्रवात के विकास की संभावना होती है लेकिन यह अभी टाइफून के स्तर तक नहीं पहुंचा होता।
- उष्णकटिबंधीय तूफान: इस श्रेणी में हवाओं की गति 34 समुद्री मील (63 किमी/घंटा) होती है। यह चरण टाइफून के विकास की शुरुआत को दर्शाता है, लेकिन अभी इसे पूर्ण रूप से ‘टाइफून’ नहीं माना जाता है।
- टाइफून: जब चक्रवात की हवाओं की निरंतर गति 64 समुद्री मील (119 किमी/घंटा) से अधिक होती है, तब इसे ‘टाइफून’ कहा जाता है। यह श्रेणी विभिन्न प्रकार के टाइफून की पहचान के लिए महत्वपूर्ण होती है और यह दर्शाती है कि तूफान की तीव्रता और प्रभाव अधिक है।
- सुपर टाइफून: जब हवाओं की गति 130 समुद्री मील (241 किमी/घंटा) से अधिक हो जाती है, तो उसे ‘सुपर टाइफून’ की श्रेणी में रखा जाता है। यह श्रेणी सबसे अधिक तीव्रता वाले चक्रवातों को दर्शाती है और इनमें भारी बर्फबारी, अत्यधिक वर्षा और विशाल लहरें शामिल होती हैं।
टाइफून (Typhoon) के नाम का उद्गम
टाइफून का नामकरण विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों से जुड़ा हुआ है, जिसमें चीनी और फारसी-हिंदुस्तानी भाषाओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। टाइफून शब्द का प्रारंभिक उद्गम चीनी भाषा से जुड़ा हुआ है। चीनी शब्द ‘होंग ताइ’ का अर्थ होता है ‘वृहत तूफान’ या ‘भयंकर तूफान’। कुछ विशेषज्ञ ‘टाइफून’ शब्द की उत्पत्ति को फारसी और हिंदी शब्द ‘तूफ़ान’ से भी जोड़ते हैं। طوفان शब्द का उपयोग फारसी और हिंदी भाषाओं में तूफान के लिए किया जाता है और इसका अर्थ भी ‘भयंकर तूफान’ होता है।
टाइफून (Typhoon) के प्रमुख उदाहरण:
- टाइफून हैटो (Hato) – 2017: टाइफून हैटो ने मकाऊ और हांगकांग में गंभीर बाढ़ और विनाशकारी हवाएँ उत्पन्न कीं। इसने मकाऊ में सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया।
- टाइफून यूतू (Yutu) – 2018: टाइफून यूतू एक शक्तिशाली सुपर टाइफून था जिसने उत्तरी मारियाना द्वीपसमूह पर भारी प्रभाव डाला।
- टाइफून नोरू (Noru) – 2022: फिलीपींस और वियतनाम में टाइफून नोरू ने तबाही मचाई थी।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर टाइफून (Typhoon) निगरानी
- वैश्विक चेतावनी और निगरानी प्रणालियाँ
- वैश्विक मौसम विज्ञान संगठन (WMO): WMO चक्रवातों की निगरानी और चेतावनी प्रणाली को समन्वित करता है। इसके अंतर्गत विभिन्न क्षेत्रीय मौसम विज्ञान केंद्र (RSMC) काम करते हैं, जो चक्रवातों के पूर्वानुमान और निगरानी के लिए जिम्मेदार हैं।
- उपग्रह प्रणाली और रडार: अत्याधुनिक उपग्रह और रडार तकनीक चक्रवात की निगरानी और डेटा संग्रहण के लिए उपयोग की जाती है, जिससे सटीक पूर्वानुमान प्रदान किए जा सकें।
- अंतरराष्ट्रीय आपदा राहत और पुनर्निर्माण
- संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठन: संयुक्त राष्ट्र (UN) और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों जैसे रेड क्रॉस और विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) आपदा के बाद राहत और पुनर्निर्माण कार्यों में सहायता प्रदान करते हैं।
- आपदा प्रतिक्रिया योजनाएँ: देशों के बीच सहयोग से आपातकालीन प्रतिक्रिया योजनाओं को विकसित किया जाता है, जो आपदा के समय त्वरित और प्रभावी राहत प्रदान करती हैं।
- वैज्ञानिक अनुसंधान और डेटा साझाकरण
- चक्रवात अनुसंधान केंद्र: विभिन्न अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान केंद्र जैसे नेशनल हरीकेन सेंटर (NHC) और अन्य मौसम विज्ञान संस्थान चक्रवात के निर्माण, प्रवृत्तियों और प्रभावों पर अनुसंधान करते हैं।
- डेटा और अनुसंधान साझा करना: वैश्विक और क्षेत्रीय अनुसंधान डेटा को साझा करने के प्रयास किए जाते हैं, जिससे चक्रवात की भविष्यवाणी और तैयारी में सुधार हो सके।
इस प्रकार के तूफान से निपटने की भारत सरकार की तैयारी
- राष्ट्रीय चक्रवात जोखिम शमन परियोजना (National Cyclone Risk Mitigation Project): भारत ने चक्रवात के प्रभावों को कम करने के लिए इस परियोजना की शुरुआत की है। इसका उद्देश्य चक्रवातों और अन्य जल-मौसम संबंधी आपदाओं के प्रभाव से संवेदनशील स्थानीय समुदायों की रक्षा करना है।
- एकीकृत तटीय क्षेत्र प्रबंधन (Integrated Coastal Zone Management – ICZM) परियोजना: ICZM का उद्देश्य तटीय समुदायों की आजीविका में सुधार करना और तटीय पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण करना है। इसके अंतर्गत तटीय जिलों में अवसंरचनात्मक आवश्यकताओं और आजीविका सुधार के साधनों की पहचान की जाती है।
- तटीय विनियमन क्षेत्र (Coastal Regulation Zones – CRZ): तटीय विनियमन क्षेत्र (CRZ) उन तटीय क्षेत्रों को संदर्भित करता है जो उच्च ज्वार रेखा (High Tide Line – HTL) से 500 मीटर तक के समुद्रों, खाड़ियों, सँकरी खाड़ियों, नदियों और बैकवाटर के तटीय क्षेत्र में आते हैं। 1991 में इन क्षेत्रों को CRZ घोषित किया गया।
टाइफून (Typhoon) की तैयारी से संबद्ध प्रमुख चुनौतियाँ
- अपर्याप्त पूर्वानुमान और चेतावनी प्रणाली: कुछ क्षेत्रों में टाइफून की पूर्वानुमान और चेतावनी प्रणाली अत्यधिक परिष्कृत नहीं होती, जिससे सटीक पूर्वानुमान और चेतावनी की कमी हो जाती है। इससे लोगों को समय पर तैयार होने का अवसर नहीं मिलता और वे चक्रवात के प्रभाव से अधिक प्रभावित होते हैं।
- संरचनात्मक कमजोरियां: कई तटीय क्षेत्रों में, बुनियादी ढांचे और भवन संरचनाओं की स्थिति मजबूत नहीं होती। पुराने या खराब निर्माण की वजह से टाइफून की उच्च हवाओं और बाढ़ के प्रभाव को सहन करना मुश्किल होता है, जिससे बड़े पैमाने पर नुकसान होता है।
- आर्थिक और संसाधन संबंधी सीमाएं: कई गरीब और विकासशील क्षेत्रों में सीमित संसाधन और वित्तीय प्रतिबंध होते हैं, जो चक्रवात की तैयारी और प्रतिक्रिया को प्रभावित करते हैं। इन क्षेत्रों में प्रभावी आपातकालीन उपायों के लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध नहीं होते हैं।
- जलवायु परिवर्तन के प्रभाव: जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्री सतह का तापमान बढ़ रहा है, जो Typhoon की तीव्रता और आवृत्ति को बढ़ा रहा है। इससे चक्रवात की तैयारी और शमन प्रयासों को अधिक चुनौतीपूर्ण बना दिया है।
UPSC Previous year PYQ
प्रश्न: उष्णकटिबंधीय चक्रवात बड़े पैमाने पर दक्षिण चीन सागर, बंगाल की खाड़ी और मैक्सिको की खाड़ी तक ही सीमित हैं। क्यों? (2014)
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