Mains ● GS II- विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिए सरकारी नीतियां, स्वास्थ्य। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में स्वीडिश स्वास्थ्य (Swedish Health) प्राधिकरण ने एक नई रिपोर्ट जारी की है जिसमें स्क्रीन टाइम के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभावों को लेकर गंभीर चेतावनी दी गई है। इस रिपोर्ट के अनुसार, स्वीडन में बच्चों और किशोरों के लिए स्क्रीन के उपयोग पर नए दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं जो उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के उद्देश्य से हैं। इस रिपोर्ट से भारत में भी बच्चो के स्क्रीन टाइम को लेकर चिन्ता बढ़ गई है। भारत में भी वर्तमान समय में डिजिटल मीडिया का तेजी से उपयोग बढ़ रहा है, विशेषकर बच्चों और किशोरों के बीच।
स्वीडिश स्वास्थ्य (Swedish Health) प्राधिकरण द्वारा जारी रिपोर्ट के मुख्य बिंदु
- दो वर्ष से कम उम्र के बच्चों को किसी भी प्रकार की स्क्रीन के संपर्क में नहीं आने देना चाहिए।
- दो से पांच वर्ष तक स्क्रीन का उपयोग एक घंटे तक सीमित होना चाहिए।
- छह से 12 वर्ष तक स्क्रीन का उपयोग दो घंटे से अधिक नहीं होना चाहिए।
- 13 से 18 वर्ष तक स्क्रीन का उपयोग तीन घंटे से अधिक नहीं होना चाहिए।
- बच्चों को सोने से कम से कम एक घंटे पहले स्क्रीन का उपयोग बंद कर देना चाहिए और बेडरूम में स्क्रीन रखने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
- रिपोर्ट ने बच्चों और युवाओं के लिए स्क्रीन और डिजिटल मीडिया के अधिक स्वस्थ, जागरूक और जिम्मेदार उपयोग के लिए आयु-उपयुक्त अनुशंसाएँ प्रदान की हैं।
क्या होता है स्क्रीन टाइम (Screen Time)?
स्क्रीन टाइम उस समय को संदर्भित करता है जो व्यक्ति इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की स्क्रीन पर बिताता है, जैसे कि स्मार्टफोन, टैबलेट, कंप्यूटर, टीवी, और गेमिंग कंसोल्स। यह समय विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इसका उपयोग व्यक्ति के लिए सकारात्मक और नकारात्मक कुछ भी हो सकता है। जो व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है।
वर्तमान समय में स्क्रीन टाइम का चलन (बच्चो के परिप्रेक्ष्य में)
वर्तमान समय में बच्चों के स्क्रीन टाइम का चलन तेजी से बढ़ रहा है, खासकर उनकी पढ़ाई और परीक्षा की तैयारी के संदर्भ में। कोविड 19 के बाद से ऑनलाइन शिक्षा और डिजिटल लर्निंग टूल्स के प्रचलन के कारण, बच्चे अब अपनी पढ़ाई के लिए स्मार्टफोन, टैबलेट और कंप्यूटर का व्यापक उपयोग कर रहे हैं। इसके चलते बच्चो में गेमिंग का प्रचलन भी खूब हुआ है। इसी के साथ छोटी आयु में कार्टून और मनोरंजन साधनों को देखना भी आम हो गया है। हालांकि, इस बढ़ते स्क्रीन टाइम से जुड़ी समस्याओं को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
स्क्रीन टाइम का स्वास्थ्य पर व्यापक प्रभाव
आज के डिजिटल युग में, स्मार्टफोन, कंप्यूटर, और टीवी का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है। इसका परिणाम यह है कि लोग दिन के अधिकांश समय स्क्रीन के सामने बिता रहे हैं। स्क्रीन टाइम के बढ़ने के साथ ही विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं में भी वृद्धि हो रही है, जो शारीरिक, मानसिक, और सामाजिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रही हैं।
- शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रभाव:
- लंबे समय तक स्क्रीन के सामने रहने से आंखों की नमी कम होती है, जिससे ड्राई आई की समस्या उत्पन्न होती है। अत्यधिक स्क्रीन टाइम से बच्चों और वयस्कों में मोतियाबिंद का खतरा बढ़ जाता है।
- स्क्रीन से निकलने वाली नीली रोशनी आंखों में तनाव पैदा करती है और मेलाटोनिन हार्मोन को प्रभावित कर नींद में बाधा डालती है।
- अधिक स्क्रीन टाइम के कारण शारीरिक गतिविधियों में कमी आती है, जिससे कैलोरी मोटापा बढ़ता है। स्क्रीन के सामने लंबे समय तक बैठे रहने से अस्वस्थ खान-पान की आदतें बढ़ती हैं, जो मधुमेह जैसी समस्याओं को जन्म देती हैं।
- स्क्रीन के सामने गलत मुद्रा में बैठने से मांसपेशियों में तनाव और दर्द होता है, जो दीर्घकालिक समस्याएं पैदा करता है।
- मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव:
- सोशल मीडिया पर लगातार तुलना और अप्राकृतिक जीवनशैली के प्रदर्शन से मानसिक तनाव और चिंता बढ़ जाती है।
- स्क्रीन टाइम के बढ़ने से नींद की गुणवत्ता प्रभावित होती है, जिससे चिड़चिड़ापन और तनाव की स्थिति उत्पन्न होती है।
- डिजिटल इंटरैक्शन के कारण वास्तविक संबंधों में कमी आती है, जिससे अकेलापन और सामाजिक अलगाव महसूस होता है।
विभिन्न आयु समूहों पर स्क्रीन टाइम के प्रभाव
- शिशु और बच्चे (0-5 वर्ष):
- शुरुआती वर्षों में मस्तिष्क तेजी से विकास करता है, लेकिन अधिक स्क्रीन टाइम से संज्ञानात्मक विकास में बाधा उत्पन्न होती है।
- स्क्रीन के सामने ज्यादा समय बिताने से शिशुओं और छोटे बच्चों की नींद प्रभावित होती है, जिससे उनके समग्र विकास पर असर पड़ता है।
- बाल्यावस्था (6-12 वर्ष):
- इस आयु वर्ग में बच्चों के लिए शारीरिक गतिविधियाँ बहुत जरूरी होती हैं, लेकिन स्क्रीन टाइम की अधिकता से मोटापा और शारीरिक समस्याएं जैसे आंखों का तनाव और पीठ दर्द बढ़ सकते हैं।
- अधिक स्क्रीन टाइम के कारण बच्चों में ध्यान केंद्रित करने की क्षमता कम होती है, जिससे उनके शैक्षणिक प्रदर्शन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
- किशोरावस्था (13-19 वर्ष):
- किशोरों में स्क्रीन टाइम के कारण तनाव, चिंता, और अवसाद जैसी समस्याओं का खतरा बढ़ जाता है।
- इस आयु में मोटापा, आंखों में तनाव, और नींद की कमी जैसी समस्याएं अधिक होती हैं, जो आगे चलकर गंभीर हो सकती हैं।
विश्व और भारत में बढ़ता औसत स्क्रीन समय: सांख्यिकी(आंकड़े)
- दुनिया भर में लोग औसतन 6 घंटे 40 मिनट प्रतिदिन स्क्रीन पर बिताते हैं। 2013 से अब तक स्क्रीन टाइम में 30 मिनट से अधिक की वृद्धि देखी गई है।
- 2013 से 2024 तक, स्क्रीन टाइम में लगातार वृद्धि देखी गई है। यह दिखाता है कि स्क्रीन टाइम में 8.4% (31 मिनट) की वृद्धि हुई है।
- 0-2 वर्ष उम्र के बच्चों में 49% बच्चे स्मार्टफोन का उपयोग करते हैं। 3-4 वर्ष के 62% स्मार्टफोन का उपयोग करते हैं।
- 5-8 वर्ष तक 59% स्मार्टफोन का उपयोग करते हैं। और 9-11 वर्ष तक 67% स्मार्टफोन का उपयोग करते हैं।
- एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार 12 साल तक के 42% बच्चे प्रतिदिन औसतन 4 घंटे मोबाइल या टैबलेट की स्क्रीन से चिपके रहते हैं। इससे भी अधिक उम्र के बच्चे तो दिन के लगभग 10 घंटे स्क्रीन के सामने बिता रहे हैं।
- भारत में अन्य देशों के मुकाबले बच्चों को सबसे कम उम्र में स्मार्टफोन मिल जाते हैं, जिससे वे साइबर बुलीइंग, डेटा प्राइवेसी और अन्य ऑनलाइन खतरों की चपेट में ज्यादा आते हैं।
- भारत में सोते समय लगभग 24% बच्चे, मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं। उम्र के बढ़ने के साथ साथ यह टाइम लिमिट भी बढ़ जाती हैं।
- भारत विश्व में सबसे अधिक बच्चो द्वारा मोबाइल देखे जाने की सूची में चौथे नम्बर है, जो एक चिंता का विषय है।
- 37 प्रतिशत बच्चो में स्क्रीन टाइम की वजह से एकाग्रता में कमी देखी गई है।
- पांच साल से कम उम्र के बच्चों के लिए, एक अध्ययन के मुताबिक, स्क्रीन टाइम प्रति दिन 0.1 से 5 घंटे के बीच पाया गया।
- एक सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक, 89% भारतीय मांएं बच्चों के स्क्रीन टाइम को लेकर चिंतित हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा जारी दिशा निर्देश
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने छोटे बच्चों के स्वास्थ्य को सुधारने के लिए नए दिशानिर्देश जारी किए हैं। इन दिशानिर्देशों के तहत, 1 वर्ष से छोटे बच्चों को प्रतिदिन कम से कम 180 मिनट की शारीरिक गतिविधि करने की सिफारिश की गई है।
- 2 वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिए स्क्रीन आधारित गतिविधियों की अनुशंसा नहीं की गई है, जबकि 2-4 वर्ष के बच्चों के लिए प्रति दिन एक घंटे की स्क्रीन समय की सीमा निर्धारित की गई है। यह पहला अवसर है जब WHO ने 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए शारीरिक गतिविधि और स्क्रीन टाइम पर दिशा-निर्देश जारी किए हैं।
- इन दिशानिर्देशों के अनुसार, 1-2 वर्ष के बच्चों को दिन भर में विभिन्न प्रकार की शारीरिक गतिविधियों में कम से कम 180 मिनट का समय बिताना चाहिए, जिससे उनकी शारीरिक और मानसिक सेहत बेहतर हो सके।
भारत सरकार के कदम
भारत सरकार ने मानसिक स्वास्थ्य और सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं:
- मनोदर्पण पहल: शिक्षा मंत्रालय द्वारा शुरू की गई इस पहल का उद्देश्य छात्रों को मानसिक स्वास्थ्य और भावनात्मक कल्याण में सहायता प्रदान करना है। यह कार्यक्रम मनोसामाजिक समर्थन, काउंसलिंग और मानसिक स्वास्थ्य संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित करता है।
- सीसीपीडब्ल्यूसी (महिलाओं और बच्चों के खिलाफ साइबर अपराध रोकथाम) योजना: गृह मंत्रालय की यह योजना महिलाओं और बच्चों के खिलाफ साइबर अपराध को रोकने के लिए कार्यरत है। इसका उद्देश्य एक सुरक्षित ऑनलाइन वातावरण का निर्माण करना और साइबर अपराधों से बचाव सुनिश्चित करना है।
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प्रश्न : बच्चे को दुलारने की जगह अब मोबाइल फोन ने ले ली है। बच्चों के समाजीकरण पर इसके प्रभाव की चर्चा कीजिये। (150 शब्द)
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