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तमिलनाडु अंतरिक्ष औद्योगिक नीति (Tamil Nadu Space Industrial Policy) | Apni Pathshala

Tamil Nadu Space Industrial Policy

सामान्य अध्ययन पेपर III: अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ

चर्चा में क्यों? 

तमिलनाडु सरकार ने हाल ही में एक नई अंतरिक्ष औद्योगिक नीति को मंजूरी दी है, जिसका उद्देश्य अंतरिक्ष तकनीक में राज्य को अग्रणी बनाना है। इस नीति में उपग्रह निर्माण सेवाओं के व्यापक विकास की रूपरेखा तैयार की गई है।

(Tamil Nadu Space Industrial Policy) तमिलनाडु अंतरिक्ष औद्योगिक नीति क्या हैं?
    • परिचय:
      • तमिलनाडु अंतरिक्ष औद्योगिक नीति राज्य सरकार द्वारा 2024 में लाई गई एक दूरदर्शी पहल है, जिसका उद्देश्य राज्य को भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र में अग्रणी केंद्र के रूप में स्थापित करना है। 
      • यह नीति अंतरिक्ष क्षेत्र से जुड़े निजी निवेश और रोजगार के अवसरों को बढ़ावा देने के लिए बनाई गई है। 
      • इसका खाका भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष नीति 2023 के अनुरूप तैयार किया गया है।
      • कर्नाटक (जहां बेंगलुरु ISRO और निजी स्टार्टअप्स का केंद्र है) और गुजरात (जहां अंतरिक्ष से जुड़ा बुनियादी ढाँचा विकसित किया गया है) के सफल उदाहरणों से प्रेरणा लेकर यह नीति तैयार की गई है।
  • उद्देश्य:
      • इस नीति का मूल उद्देश्य अंतरिक्ष क्षेत्र में समग्र विकास को बढ़ावा देना है। 
        • राज्य सरकार चाहती है कि निजी निवेश, तकनीकी नवाचार और स्टार्टअप गतिविधियाँ बढ़ें। 
      • नीति का उद्देश्य राज्य को उपग्रह निर्माण, प्रक्षेपण सेवाएँ और डेटा आधारित समाधान जैसे क्षेत्रों में वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करना है।
  • फोकस क्षेत्र:
    • उपग्रह निर्माण (Satellite Manufacturing): राज्य में निजी कंपनियों को छोटे और मध्यम आकार के उपग्रहों के निर्माण के लिए बुनियादी ढाँचा और तकनीकी सहायता मिलेगी।
    • लॉन्च सेवाएँ (Launch Services): नीति के अंतर्गत प्राइवेट लॉन्च सर्विस प्रोवाइडर्स को जरूरी सहयोग और लाइसेंसिंग समर्थन दिया जाएगा।
    • सैटेलाइट आधारित एप्लिकेशन: कृषि, आपदा प्रबंधन, संचार और शहरी नियोजन जैसे क्षेत्रों में उपग्रह डेटा के उपयोग को बढ़ावा मिलेगा।

तमिलनाडु अंतरिक्ष औद्योगिक नीति की प्रमुख विशेषताएँ

  • निवेश और रोजगार: तमिलनाडु की यह नीति अगले पाँच वर्षों के भीतर अंतरिक्ष क्षेत्र में ₹10,000 करोड़ तक के निवेश को आकर्षित करने की महत्वाकांक्षी योजना प्रस्तुत करती है। 
  • अनुमान है कि इस अवधि में 10,000 से अधिक प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार के अवसर पैदा होंगे, जिनमें तकनीकी विशेषज्ञ, निर्माण कार्यकर्ता, अनुसंधान वैज्ञानिक और प्रशासनिक कर्मी सम्मिलित होंगे।
  • यह नीति स्थानीय युवाओं और कुशल श्रमिकों के लिए प्रशिक्षण और पुनः कौशल विकास के अवसरों को भी प्रोत्साहित करेगी।
  • तकनीकी क्षमता: तमिलनाडु की गिनती भारत के तकनीकी रूप से समृद्ध राज्यों में होती है। इस नीति ने राज्य की इलेक्ट्रॉनिक्स, परिशुद्ध निर्माण (Precision Manufacturing), और सहयोगी क्षेत्रों में दक्षता को ध्यान में रखते हुए रणनीतिक योजना बनाई है।
      • नीति के माध्यम से अंतरिक्ष क्षेत्र में इन क्षमताओं का संधान, निर्माण और प्रणाली एकीकरण जैसे कार्यों में विस्तार किया जाएगा।
      • साथ ही, नीति के अंतर्गत अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का शासन व्यवस्था में एकीकरण किया जाएगा, जिससे राज्य की सार्वजनिक सेवाओं की गुणवत्ता बेहतर हो सके।
      • आपदा प्रबंधन में रीयल-टाइम डेटा और भू-स्थानिक जानकारी का उपयोग कर प्रभावी कार्रवाई संभव होगी।
      • कृषि और मत्स्य पालन के क्षेत्र में फसल की निगरानी, जल स्रोत विश्लेषण और उत्पादन अनुमान में सुधार किया जाएगा।
      • परिवहन और राजस्व विभाग में भूमि उपयोग परिवर्तन, अवैध अतिक्रमण और आधारभूत ढांचे की योजना में उपग्रह चित्रों का सहारा लिया जाएगा।
      • स्वास्थ्य और नगर प्रशासन में हॉटस्पॉट विश्लेषण, जनसंख्या वितरण और संसाधन प्रबंधन की प्रक्रिया अधिक वैज्ञानिक बनेगी।
  • वित्तीय प्रोत्साहन: राज्य सरकार ने अंतरिक्ष क्षेत्र में कार्यरत कंपनियों और निवेशकों को आकर्षित करने के लिए व्यापक वित्तीय सहायता की घोषणा की है। 
    • पेरोल सब्सिडी (Payroll Subsidy): वे कंपनियाँ जो अनुसंधान एवं विकास (R&D) में सक्रिय हैं या तमिलनाडु में ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर स्थापित कर रही हैं, उन्हें वेतन पर सब्सिडी प्रदान की जाएगी। इससे उच्च गुणवत्ता वाले मानव संसाधन को बनाए रखने में सहायता मिलेगी।
    • स्पेस बे क्षेत्र (Space Bays): राज्य के कुछ चयनित क्षेत्रों को ‘स्पेस बे’ के रूप में अधिसूचित किया जाएगा। इन क्षेत्रों में ₹300 करोड़ से कम निवेश करने वाली कंपनियों को संरचित प्रोत्साहन पैकेज मिलेगा, जिससे उनकी संचालन लागत में कमी आएगी।
    • औद्योगिक आवास प्रोत्साहन (Industrial Housing Incentive): स्पेस इंडस्ट्रियल पार्क विकसित करने वालों को आवासीय सुविधाओं के निर्माण की लागत पर 10% तक सब्सिडी दी जाएगी। यह सब्सिडी अधिकतम ₹10 करोड़ तक सीमित होगी और इसे 10 वर्षों की अवधि में वितरित किया जाएगा।
    • हरित पहल के लिए पूंजी सहायता (Green Initiative Support): वे परियोजनाएँ जो पर्यावरणीय दृष्टि से सतत और हरित प्रथाओं को अपनाएंगी, उन्हें 25% पूंजी सब्सिडी प्रदान की जाएगी। यह प्रोत्साहन अधिकतम ₹5 करोड़ तक सीमित रहेगा और ग्रीन निर्माण, ऊर्जा दक्षता और कचरा प्रबंधन जैसे प्रयासों को बढ़ावा देगा।

तमिलनाडु अंतरिक्ष औद्योगिक नीति के अंतर्गत संस्थागत भूमिकाएँ

  • अंतरिक्ष विभाग (Department of Space – DoS): अंतरिक्ष विभाग को इस नीति में केन्द्रीय नीति समन्वयक की भूमिका दी गई है। यह विभाग राज्य और केंद्र स्तर पर नीति निर्धारण, कार्यान्वयन और निगरानी के बीच सक्रिय सेतु की भूमिका निभाएगा। DoS अंतर्राष्ट्रीय संधियों, सहयोग कार्यक्रमों और वैश्विक मानकों के अनुरूप सभी गतिविधियों का संचालन सुनिश्चित करेगा।
  • IN-SPACe: IN-SPACe (भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन एवं प्राधिकरण केंद्र) को निजी और गैर-सरकारी संस्थाओं (NGE) के साथ जुड़ाव का सशक्त माध्यम बनाया गया है। यह संगठन निजी सहभागिता को संस्थागत रूप देने का कार्य करेगा।
      • IN-SPACe रिमोट सेंसिंग डेटा, लॉन्च मैनीफेस्ट और सुरक्षा नीतियों को विनियमित कर निजी गतिविधियों को प्रामाणिकता और वैधता प्रदान करता है।
  • ISRO: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) को इस नीति में एक वैज्ञानिक एवं तकनीकी मार्गदर्शक के रूप में चित्रित किया गया है। इसका कार्य नवीन अनुसंधान, वैज्ञानिक अन्वेषण, और मानव मिशन की दिशा में केंद्रित रहेगा। यह संगठन रिमोट सेंसिंग डेटा की खुली पहुँच सुनिश्चित करेगा, जिससे नीति-निर्माता, शोधकर्ता, और किसान जैसे हितधारकों को लाभ हो।
  • NSIL: न्यूस्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) इस नीति में वाणिज्यिक गतिविधियों के संचालनकर्ता के रूप में उभरा है। यह इकाई अंतरिक्ष विभाग की व्यावसायिक शाखा के रूप में ISRO द्वारा विकसित तकनीकों को बाजार में लाने का कार्य करेगी। NSIL अंतरिक्ष से संबंधित उपग्रह, लॉन्च सेवाएँ और अन्य संपत्तियाँ खरीदेगा और निर्मित करेगा।

तमिलनाडु द्वारा अंतरिक्ष क्षेत्र नीति अपनाने के पीछे कारण 

  • तमिलनाडु के तिरुनेलवेली ज़िले में स्थित ISRO प्रणोदन परिसर (IPRC), महेन्द्रगिरि, एक ऐसा तकनीकी केंद्र है जो भारत की अंतरिक्ष महत्वाकांक्षाओं को ज़मीन पर उतारने में प्रमुख भूमिका निभा रहा है। 
    • इस परिसर में क्रायोजेनिक इंजन, पृथ्वी-संग्रहणीय प्रणोदकों के परीक्षण और लॉन्च व्हीकल्स की तकनीकी उन्नति जैसे कार्य किए जाते हैं। यहीं पर अनुसंधान एवं विकास (R&D) कार्यक्रम भी संचालित होते हैं, जो तमिलनाडु को राष्ट्रीय अंतरिक्ष अभियानों का प्रायोगिक आधार बनाते हैं।
  • तमिलनाडु के तूतीकोरिन जिले के कुलसेकरपट्टिनम में भारत का दूसरा अंतरिक्ष बंदरगाह (स्पेसपोर्ट) स्थापित किया जा रहा है, जो राज्य की इस नीति को वास्तविक आधार प्रदान करता है। 
    • यह केंद्र भविष्य में उपग्रह प्रक्षेपण की राष्ट्रीय क्षमता को दोगुना करने में सहायक होगा, जिससे राज्य को वैश्विक वाणिज्यिक प्रक्षेपण सेवाओं में भागीदारी का अवसर मिलेगा।
  • राज्य में स्पेस स्टार्टअप्स का तीव्रता से उभरता हुआ पारिस्थितिकी तंत्र भी इस नीति के पक्ष में महत्वपूर्ण कारक रहा है। तमिलनाडु के विभिन्न नवाचार केंद्रों में कार्यरत स्टार्टअप्स रीयूजेबल लॉन्च टेक्नोलॉजी, इन-स्पेस रिफ्यूलिंग, इन-स्पेस मैन्युफैक्चरिंग और उपग्रह डेटा फ्यूजन जैसे जटिल तकनीकी क्षेत्रों में अग्रसर हो रहे हैं। 
  • राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (NIT), तिरुचिरापल्ली में स्थापित स्पेस टेक्नोलॉजी इनक्यूबेशन सेंटर (STIC), इस संपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र में एक प्रेरक शक्ति का कार्य कर रहा है। यह केंद्र न केवल छात्रों और शिक्षकों को ISRO के साथ मिलकर परियोजनाएँ विकसित करने का अवसर देता है, बल्कि इससे तमिलनाडु को शैक्षणिक और नवाचार आधारित तकनीकी नेतृत्व हासिल हो रहा है। 
  • तमिलनाडु की सप्लाई चेन क्षमताएँ भी अत्यंत परिपक्व और व्यापक हैं। वर्तमान में राज्य में 250 से अधिक वेंडर ISRO की आवश्यकताओं की पूर्ति कर रहे हैं। इन स्थानीय आपूर्तिकर्ताओं के पास आवश्यक तकनीकी विशेषज्ञता और गुणवत्ता नियंत्रण की योग्यता है।

वर्तमान अंतरिक्ष क्षेत्र की प्रमुख चुनौतियाँ और उनके समाधान की दिशा

  • बढ़ता व्यावसायीकरण: 
    • चुनौती: आज के समय में अंतरिक्ष गतिविधियाँ केवल सरकारी मिशनों तक सीमित नहीं रह गई हैं, बल्कि यह एक बड़ा व्यावसायिक क्षेत्र बन चुका है। अनेक निजी कंपनियाँ उपग्रह प्रक्षेपण, डेटा सेवाओं और लॉन्च वाहन विकास में सक्रिय हो रही हैं।  
    • समाधान: इस दिशा में नीति निर्माताओं को ऐसे नियम बनाना होंगे जो निजी क्षेत्र की भागीदारी को प्रोत्साहित करते हुए देश के हितों की रक्षा करें।
  • अंतरिक्ष मलबे की समस्या: 
    • चुनौती: अंतरिक्ष में छोड़ा गया मलबा (स्पेस डेब्री) तेजी से बढ़ रहा है, जिससे न केवल उपग्रहों और मिशनों को खतरा है, बल्कि भविष्य की अंतरिक्ष गतिविधियाँ भी प्रभावित हो रही हैं।  
    • समाधान: इस समस्या का सामना करने के लिए सटीक और विश्वसनीय ट्रैकिंग प्रणालियों का विकास अत्यंत आवश्यक हो गया है, ताकि संभावित खतरों को समय रहते पहचाना और नियंत्रित किया जा सके। साथ ही, मलबा हटाने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग और तकनीकी नवाचारों को बढ़ावा देना अनिवार्य है।
  • गहन प्रतिस्पर्धा:
    • चुनौती: अंतरिक्ष क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा दिन-प्रतिदिन तेज होती जा रही है। बड़ी आर्थिक ताकतें और उभरते देश नई तकनीकों, उपग्रहों, और लॉन्च क्षमताओं के विकास में निवेश कर रहे हैं। 
    • समाधान: इस प्रतिस्पर्धा में बने रहने के लिए भारत को आधुनिक और प्रभावी ट्रैकिंग क्षमताएं, सुरक्षित उपग्रह प्रणाली और दीर्घकालिक रणनीतियाँ अपनानी होंगी। 
      • अंतरिक्ष क्षेत्र में विकास के लिए एक स्थायी और संतुलित दृष्टिकोण अपनाना अनिवार्य हो गया है।
      • अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का लाभ व्यापक स्तर पर तभी संभव है जब जनता विशेषकर ग्रामीण और पिछड़े इलाकों में अंतरिक्ष ज्ञान बढ़ाने के लिए सरकार और संस्थानों को स्थानीय भाषा में जागरूकता कार्यक्रम, कार्यशालाएँ और शैक्षिक प्रयासों को बढ़ावा देना होगा। 

भारतीय अंतरिक्ष नीति 2023

  • भारत की अंतरिक्ष नीति 2023 राष्ट्रीय अंतरिक्ष दृष्टिकोण का आधुनिक पुनर्निर्माण है। 
  • इस नीति का उद्देश्य केवल निजी क्षेत्र को प्रोत्साहित करना नहीं है, बल्कि भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था को वैश्विक मंच पर प्रतिस्पर्धी और समावेशी बनाना भी है। 
  • भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) को इस नीति में अनुसंधान और नवाचार का केंद्रबिंदु बनाया गया है। 
    • वह अब नई प्रणालियों, तकनीकों और वैज्ञानिक अन्वेषण पर केंद्रित रहेग।
    • इसरो के दैनिक प्रचालनात्मक मिशनों की जिम्मेदारी न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (NSIL) को सौंप दी गई है। 
    • IN-SPACe को एक नियामक और समन्वयक संस्था के रूप में पुनः परिभाषित किया गया है।
  • अंतरिक्ष नीति 2023 के माध्यम से सरकार ने पहली बार निजी क्षेत्र को पूर्ण स्वतंत्रता और प्रोत्साहन के साथ अंतरिक्ष क्षेत्र में प्रवेश की अनुमति दी है। 
    • निजी कंपनियाँ उपग्रह निर्माण, लॉन्च व्हीकल विकास, डेटा प्रसंस्करण, और भू-अवलोकन सेवाओं जैसे विविध उपक्षेत्रों में सक्रिय भागीदारी कर सकेंगी। 
  • इस नीति का दूरदर्शी लक्ष्य है भारत की वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में हिस्सेदारी को वर्तमान के लगभग 2% से बढ़ाकर 10% तक पहुँचाना। 
    • इसके लिए नवाचार आधारित उत्पादों और सेवाओं का सृजन किया जा रहा है और भारत को एक वैश्विक प्रक्षेपण सेवा केंद्र और डेटा समाधान प्रदाता के रूप में प्रस्तुत करने की भी रणनीति बनाई गई है।

 

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