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अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने BRICS गठबंधन के नौ देशों को चेतावनी दी कि यदि वे अमेरिकी डॉलर को कमजोर करने के लिए कोई कदम उठाते हैं, तो उनके खिलाफ 100% टैरिफ लगाया जाएगा। इस गठबंधन में ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका, मिस्र, इथियोपिया, ईरान और संयुक्त अरब अमीरात शामिल हैं।
टैरिफ क्या होता है?
टैरिफ का मतलब है आयातित (दूसरे देशों से लाई गई) या निर्यातित (दूसरे देशों को भेजी गई) वस्तुओं पर सरकार द्वारा लगाया गया कर। इसे आयात शुल्क या सीमा शुल्क भी कहा जाता है।
टैरिफ के मुख्य उद्देश्य:
- देश की अर्थव्यवस्था की सुरक्षा: घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाने के लिए टैरिफ लगाया जाता है।
- राजस्व जुटाना: सरकार इस कर से आय अर्जित करती है।
- विदेशी व्यापार को नियंत्रित करना: विदेशी वस्तुओं को महंगा बनाकर उनका आयात कम किया जा सकता है।
कारण: डोनाल्ड ट्रंप ने BRICS देशों पर 100% टैरिफ लगाने की धमकी इसलिए दी है क्योंकि:
- डॉलर के प्रभुत्व को खतरा:
- डॉलर दुनिया के करीब 58% विदेशी मुद्रा भंडार का हिस्सा है (IMF के अनुसार)।
- प्रमुख वस्तुएं, जैसे कि तेल, अभी भी मुख्य रूप से डॉलर में खरीदी-बेची जाती हैं।
- BRICS देश अपने बढ़ते GDP हिस्से के साथ गैर-डॉलर मुद्राओं में व्यापार करने की योजना बना रहे हैं, जिसे डि–डॉलराइजेशन कहा जाता है।
- नई मुद्रा बनाने की योजना:
- BRICS देश डॉलर की जगह लेने के लिए नई मुद्रा बनाने या किसी अन्य मुद्रा को समर्थन देने की कोशिश कर रहे हैं।
- ट्रंप ने इसे अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए खतरा बताते हुए कहा कि अगर ऐसा हुआ, तो इन देशों पर 100% टैरिफ लगाया जाएगा।
वर्तमान स्थिति–
- डॉलर का प्रभुत्व बरकरार: शोध के अनुसार, निकट भविष्य में डॉलर की भूमिका मुख्य वैश्विक आरक्षित मुद्रा के रूप में खतरे में नहीं है।
- डॉलर का महत्व:
- तेल और अन्य प्रमुख वस्तुओं का व्यापार डॉलर में जारी है।
- डॉलर विदेशी मुद्रा भंडार में सबसे बड़ा हिस्सा बनाए हुए है।
डि–डॉलराइजेशन क्या है?
डि–डॉलराइजेशन उस प्रक्रिया को कहते हैं जिसमें देश अमेरिकी डॉलर पर अपनी निर्भरता कम करते हैं। यह निर्भरता तीन मुख्य रूपों में होती है:
- आरक्षित मुद्रा (Reserve Currency):
- केंद्रीय बैंक विदेशी लेन-देन के लिए जो मुद्रा रखते हैं, उसे आरक्षित मुद्रा कहते हैं।
- इसका उपयोग अंतरराष्ट्रीय व्यापार, विनिमय दर को स्थिर रखने और वित्तीय भरोसे को बढ़ाने के लिए किया जाता है।
- माध्यम विनिमय (Medium of Exchange): व्यापार में डॉलर का उपयोग कम करने का प्रयास।
- लेखा इकाई (Unit of Account): डॉलर का उपयोग मूल्य तय करने के लिए किया जाता है, जिसे कम करने का प्रयास होता है।
अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अमेरिकी डॉलर की ताकत के कारण–
- ऐतिहासिक कारण:
- प्रथम विश्व युद्ध के बाद, अमेरिकी डॉलर ने पाउंड स्टर्लिंग की जगह लेना शुरू किया।
- द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1944 के ब्रेटन वुड्स समझौते ने इसे वैश्विक आरक्षित मुद्रा के रूप में स्थापित किया।
- आरक्षित मुद्रा का दर्जा:
- दुनिया भर के केंद्रीय बैंक डॉलर को अपनी मुद्रा का समर्थन करने और अंतरराष्ट्रीय लेन-देन के लिए रखते हैं।
- इससे डॉलर की वैश्विक मांग मजबूत बनी रहती है।
- स्थिरता और तरलता:
- अमेरिकी डॉलर को स्थिर और आसानी से उपयोग होने वाली मुद्रा माना जाता है।
- अमेरिकी अर्थव्यवस्था का आकार:
- 22 ट्रिलियन डॉलर से अधिक GDP के साथ, अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।
- इसके बड़े व्यापारिक लेन-देन के कारण डॉलर का उपयोग व्यापक है।
- नेटवर्क प्रभाव:
- डॉलर का उपयोग वैश्विक वित्तीय बाजारों और वस्तुओं (जैसे तेल) की कीमत तय करने में होता है।
- इसका व्यापक उपयोग इसे और अधिक सुविधाजनक और प्रभावशाली बनाता है।