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ट्रंप ने यूक्रेन की नाटो सदस्यता को बताया अव्यावहारिक

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संदर्भ:

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से बातचीत के दौरान यूक्रेन के नाटो में शामिल होने की संभावना को अव्यावहारिक करार दिया। ट्रंप का यह बयान अमेरिकी विदेश नीति में एक बड़ा बदलाव दर्शाता है, जो पिछली सरकारों द्वारा यूक्रेन के नाटो सदस्यता समर्थन से हटने की ओर इशारा करता है।

ट्रंप की नाटो में भंगात्मक भूमिका:

  • यूक्रेन की नाटो सदस्यता पर असहमति: ट्रंप का यूक्रेन की नाटो सदस्यता को नकारना अमेरिकी विदेश नीति में संभावित बदलाव को दर्शाता है।
  • नाटो की एकता पर असर: यह रुख नाटो की एकजुटता को कमजोर कर सकता है।
  • रूस को बढ़ावा: इससे रूस को पूर्वी यूरोप में अपने रणनीतिक उद्देश्यों को मजबूत करने का अवसर मिल सकता है।
  • बदलती अमेरिकी प्राथमिकताएँ: म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन (2025) में उपराष्ट्रपति वेंस ने यूक्रेन पर चर्चा से बचकर इस बदलाव को और स्पष्ट किया।

नाटो (NATO) – उत्तर अटलांटिक संधि संगठन:

परिचय:

  • नाटो (NATO) एक पश्चिमी सुरक्षा संगठन है, जिसे 4 अप्रैल 1949 को 12 संस्थापक सदस्यों के साथ स्थापित किया गया था। इन सदस्य देशों ने वॉशिंगटन संधि (Washington Treaty) पर हस्ताक्षर किए, जो संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 51 (Article 51 of the UN Charter) पर आधारित है।
  • स्थापना का उद्देश्य: नाटो की स्थापना शीत युद्ध (Cold War) के दौरान सोवियत विस्तारवाद (Soviet Expansionism) को रोकने के लिए की गई थी।

नाटो की सदस्यता:

  • मूल संस्थापक देश (12 देश): बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, फ्रांस, आइसलैंड, इटली, लक्ज़मबर्ग, नीदरलैंड, नॉर्वे, पुर्तगाल, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका।
  • विस्तारित सदस्य देश: समय के साथ नाटो का विस्तार हुआ और वर्तमान में इसके 32 सदस्य देश हैं।

नाटो के उद्देश्य:

  1. सामूहिक रक्षा: नाटो का मुख्य उद्देश्यसामूहिक सुरक्षा प्रदान करना है, जैसा कि वॉशिंगटन संधि के अनुच्छेद 5 (Article 5) में उल्लिखित है।
  2. राजनीतिक सहयोग: इसका उद्देश्यलोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देना और रक्षा सुरक्षा मामलों में सदस्य देशों के बीच परामर्श सहयोग को मजबूत करना है ताकि संघर्षों को रोका जा सके।
  3. सैन्य सहायता: नाटोसैन्य सहायता प्रदान करने और संकट प्रबंधन अभियानों को अंजाम देने के लिए भी उत्तरदायी है, विशेष रूप से तब जब कूटनीतिक प्रयास विफल हो जाते हैं।

नाटो विस्तार और रूस की सुरक्षा चिंताएँ:

  1. नाटो: सामूहिक रक्षा संगठन– नाटो (NATO) एक 32-सदस्यीय सैन्य गठबंधन है, जो सामूहिक रक्षा (Collective Defence) के सिद्धांत पर आधारित है। अनुच्छेद 5 (Article 5) के तहत, किसी एक सदस्य पर हमला पूरे गठबंधन पर हमला माना जाता है, जिससे संयुक्त सैन्य प्रतिक्रिया हो सकती है।
  2. रूस की सीमाओं के करीब नाटो का विस्तार– नाटो के निरंतर विस्तार से यह रूस की सीमाओं के और करीब पहुंच गया है, जिससे रूस और नाटो के बीच तनाव बढ़ा है।
  3. रूस का विरोध– रूस लंबे समय से नाटो के विस्तार का कड़ा विरोध करता आया है, क्योंकि वह इसे सीधे अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा मानता है।
  4. पश्चिमी दबदबे का माध्यम– रूस नाटो को पश्चिमी देशों का एक रणनीतिक उपकरण मानता है, जिसका उद्देश्य पूर्वी यूरोप में रूसी प्रभाव को सीमित करना है।
  5. यूक्रेन का नाटो में प्रवेश: प्रमुख मुद्दा– यूक्रेन की नाटो सदस्यता की संभावना रूस की विदेश नीति और सैन्य कार्रवाइयों का एक प्रमुख कारण रही है।

नाटो विस्तार पर रूस का दृष्टिकोण:

  1. राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा– रूस नाटो के विस्तार को पुरानी संधियों के उल्लंघन और अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सीधा खतरा मानता है।
  2. सामूहिक रक्षा सिद्धांत– नाटो चार्टर के अनुच्छेद 5 (Article 5) के तहत सामूहिक रक्षा सिद्धांत लागू होता है, जिसका अर्थ है कि यदि किसी एक सदस्य देश पर हमला होता है, तो पूरा नाटो गठबंधन, जिसमें अमेरिका भी शामिल है, सैन्य प्रतिक्रिया दे सकता है।
  3. मॉनरो सिद्धांत से तुलना– प्रसिद्ध राजनीतिक वैज्ञानिक जॉन जे. मियर्शाइमर (John J. Mearsheimer) ने रूस के नाटो विस्तार विरोध को अमेरिकी मॉनरो सिद्धांत से जोड़ा है, जो पश्चिमी गोलार्ध में अमेरिकी वर्चस्व को बनाए रखने और विदेशी हस्तक्षेप का विरोध करने की नीति थी।
  4. यूक्रेन की नाटो सदस्यता का विरोध– रूस लंबे समय से यूक्रेन के नाटो में शामिल होने का कड़ा विरोध कर रहा है, और यही उसकी विदेश नीति और सैन्य कार्रवाइयों का प्रमुख कारण भी रहा है।

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