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अमेरिकी फेडरल रिजर्व की ब्याज दर में कटौती: भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर?

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में यू.एस. फेडरल (US Federal Reserve) रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में कटौती की गई। यूएस फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने जानकारी दी है । इसका मुख्य उद्देश्य यू.एस. अर्थव्यवस्था में वृद्धि को प्रोत्साहित करने के लिए है, इसका प्रभाव भारत जैसे उभरते बाजारों पर भी पड़ेगा। भारतीय निवेशकों के लिए, यह विकास अवसर और चुनौतियों दोनों का सामना कराता है।

मुख्य बिन्दु :

  • अमेरिकी फेडरल रिजर्व (US Federal Reserve) ने ब्याज दरों में 50 बेसिस पॉइंट की कटौती की है, जो अब 4.75% से 5% के बीच हैं।
  • इससे पहले, मार्च 2020 में फेड ने इंटरेस्ट रेट्स में कटौती की थी।
  • महंगाई (inflation) पर काबू पाने के लिए, फेड ने मार्च 2022 से जुलाई 2023 के बीच 11 बार ब्याज दरों में वृद्धि की थी।
  • पिछले साल फेडरल रिजर्व ने लगातार तीसरी बार अपने पॉलिसी डिसीजन में ब्याज दरों को अपरिवर्तित रखा था।
  • 26 जुलाई 2023 को, फेड ने पॉलिसी रेट को 5.25%-5.5% की रेंज में जस-का-तस (unchanged) रखा था।
  • 2024 में दरों में कटौतियां देखने को मिल सकती हैं, और ये कम होकर 4.6% तक आ सकती हैं।
  • महंगाई से निपटने के लिए मार्च 2022 से दरों को बढ़ाना शुरू किया था, जो पिछले साल जुलाई तक 23 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई थीं।
  • नीति निर्धारक (Policymakers) मानते हैं कि फेड की बेंचमार्क दर इस साल के अंत तक आधा प्रतिशत अंक और घटेगी, 2025 में एक पूर्ण प्रतिशत अंक और 2026 में अंत में आधा प्रतिशत अंक घटेगी। इससे दर 75 प्रतिशत से 3.00 प्रतिशत के बीच आ जाएगी।

फेड ने ब्याज दरें क्यों घटाईं (Why did the Fed cut interest rates)?

  • फेडरल रिजर्व (Federal Reserve) ने बढ़ती बेरोजगारी (unemployment) की चिंताओं को देखते हुए बेंचमार्क ब्याज दर में 50 बेसिस पॉइंट की कटौती की, जबकि महंगाई स्थिर हो रही थी।
  • कोविड-19 के बाद की रिकवरी और रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण महंगाई बढ़ने का मुकाबला करने के लिए फेड ने कई बार ब्याज दरें बढ़ाई थीं। लेकिन अब महंगाई दर में कमी आने लगी है, जो फेड के 2% के लक्ष्य के करीब पहुंच गई है।
  • बेरोजगारी (unemployment) के बढ़ते आंकड़ों ने संकेत दिया कि सख्त मौद्रिक नीति श्रम बाजार (labor market) को नुकसान पहुंचा सकती है, जिससे फेड को यह कदम उठाने के लिए प्रेरित किया।

यूएस फेडरल रिजर्व के बारे में (About the US Federal Reserve):

संयुक्त राज्य फेडरल रिजर्व (United States Federal Reserve), जिसे आमतौर पर फेड या फेडरल रिजर्व कहा जाता है, अमेरिका का केंद्रीय बैंकिंग प्रणाली है। यह देश को एक सुरक्षित (safe), लचीला (flexible) और स्थिर मौद्रिक (stable monetary) और वित्तीय प्रणाली (financial system) प्रदान करता है।

फेडरल रिजर्व सिस्टम में 12 क्षेत्रीय फेडरल रिजर्व बैंक शामिल हैं, जो अमेरिका के विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों के लिए जिम्मेदार हैं।

प्रमुख कार्य (Major Functions):

  • ब्याज दरों का निर्धारण (Setting interest rates): फेड ब्याज दरों को निर्धारित करता है ताकि आर्थिक वृद्धि और महंगाई को नियंत्रित किया जा सके।
  • बैंकिंग प्रणाली की निगरानी (Monitoring the banking system): यह वित्तीय संस्थानों की सुरक्षा और स्थिरता को सुनिश्चित करता है।
  • महंगाई नियंत्रण (Inflation control): फेड का लक्ष्य 2% की महंगाई दर को बनाए रखना है।
  • विभिन्न आर्थिक नीतियों का कार्यान्वयन (Implementation of various economic policies): यह नीतियों को लागू करता है ताकि रोजगार और आर्थिक वृद्धि को बढ़ावा दिया जा सके।
  • वित्तीय संकटों में हस्तक्षेप (Intervening in Financial Crises): जरूरत पड़ने पर फेड वित्तीय संकटों से निपटने के लिए कदम उठाता है।

यूएस फेडरल रेट में बदलाव के बारे में (About changes in the US Federal Rate):

फेडरल फंड्स रेट (federal funds rate) अमेरिकी फेडरल रिजर्व के हाथ में एक प्रमुख मौद्रिक नीति उपकरण (monetary policy tool) है, जिसके माध्यम से यह रोजगार और महंगाई को प्रभावित करता है, अर्थव्यवस्था में क्रेडिट की उपलब्धता और लागत को नियंत्रित करके।  जब फेड ब्याज दरों को समायोजित करता है, तो इसके प्रभाव विश्वभर में महसूस होते हैं, जो विकसित और उभरती दोनों अर्थव्यवस्थाओं (emerging economies) को प्रभावित करते हैं।

  • निवेश पर प्रभाव (Investment impact): उच्च अमेरिकी ब्याज दरें अमेरिकी संपत्तियों को निवेशकों के लिए अधिक आकर्षक बना सकती हैं, जिससे उभरती और जोखिम भरी बाजारों से पूंजी का प्रवाह कम हो सकता है।
  • पूंजी प्रधान क्षेत्र (Capital-intensive sectors): ऐसे क्षेत्र, जो विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) पर निर्भर करते हैं, पहले इस प्रभाव को महसूस कर सकते हैं।
  • वैश्विक तरलता में कमी (Tightening global liquidity): उच्च अमेरिकी ब्याज दरें वैश्विक तरलता को तंग कर सकती हैं, जिससे विदेशी निवेशकों के लिए उधारी महंगी हो जाएगी।

महंगाई से लड़ने में केंद्रीय बैंक की नीतिगत दर का महत्व (Importance of Central Bank Policy Rate in Fighting Inflation):

  • केंद्रीय बैंक के पास महंगाई को नियंत्रित करने का एक प्रभावी उपकरण नीतिगत दर (policy rate) है।
  • जब महंगाई बढ़ जाती है, केंद्रीय बैंक नीतिगत दर बढ़ाता है। इससे बैंकों का उधार महंगा होता है, और वे ग्राहकों को भी महंगे लोन प्रदान करते हैं।
  • महंगे लोन के कारण बाजार में पैसे की आवाजाही (movement of money) कम होती है, जिससे मांग घटती है और महंगाई में कमी आती है।
  • जब अर्थव्यवस्था कठिनाइयों का सामना करती है, तो मनी फ्लो बढ़ाने के लिए केंद्रीय बैंक नीतिगत दर को कम करता है। इससे बैंकों को सस्ता कर्ज मिलता है, और ग्राहकों को भी सस्ते लोन मिलते हैं।
  • केंद्रीय बैंक की नीतिगत दर का समुचित प्रबंधन महंगाई नियंत्रण और आर्थिक विकास के लिए आवश्यक है।

फेड की नीति का भारतीय बाजार पर क्या प्रभाव पड़ेगा? (What is the Impact of Fed’s Policy on the Indian Market):

  • विदेशी निवेश में वृद्धि (Increase in foreign investment): अमेरिकी ब्याज दरें कम होने से विदेशी निवेशक (foreign investors) अमेरिका में उधारी लेकर भारत में शेयर, बांड, या विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) के माध्यम से निवेश कर सकते हैं, जिससे पूंजी का प्रवाह बढ़ेगा।
  • रुपये की मजबूती (Rupee Strength): अमेरिका में ब्याज दरें गिरने से डॉलर भारतीय रुपये के मुकाबले कमजोर हो सकता है, जिससे रुपये की वैल्यू बढ़ सकती है। इससे भारतीय निर्यातकों को नुकसान होगा, लेकिन आयातकों को लाभ मिलेगा।
  • आरबीआई की ब्याज दर निर्णय (RBI interest rate decision): जबकि फेड की दरों में कटौती वैश्विक बाजारों को प्रभावित करती है, भारत का केंद्रीय बैंक, आरबीआई, अलग महंगाई लक्ष्यों और mandates के कारण सीधे उसी दिशा में नहीं बढ़ेगा। आरबीआई महंगाई नियंत्रण और जीडीपी वृद्धि को बेरोजगारी के आंकड़ों से अधिक प्राथमिकता देता है।
  • निवेश आकर्षित करना (Attracting investment): फेड की दरों में कटौती से अमेरिका और अन्य देशों की ब्याज दरों के बीच का अंतर बढ़ता है, जिससे भारत जैसे देशों में मुद्रा कैरी ट्रेड के लिए आकर्षण बढ़ता है।
  • शेयर बाजार में तेजी (Stock market boom): फेड की दर कटौती से विदेशी निवेश उभरते बाजारों, खासकर भारत में बढ़ता है। अमेरिकी ट्रेजरी यील्ड में गिरावट के साथ, निवेशक भारतीय शेयरों में उच्च रिटर्न की तलाश कर सकते हैं, जिससे स्टॉक की कीमतें बढ़ सकती हैं।
  • ब्याज संवेदनशील क्षेत्र (Interest sensitive sectors): बैंकिंग, रियल्टी, और ऑटोमोबाइल जैसे कुछ क्षेत्रों को फेड की दर में कटौती से विशेष लाभ हो सकता है।
  • मुद्रा बाजार (Currency market): रुपये की मजबूती से आयात सस्ता और निर्यात महंगा होगा।
  • सोने की कीमतें (Gold prices): ब्याज दरों में कमी से सोने की मांग बढ़ने की उम्मीद है, क्योंकि यह फिक्स्ड-इनकम निवेशों को कम आकर्षक बना देती है।
  • वैश्विक वृद्धि को बढ़ावा (Global growth boost): ब्याज दरों में कटौती से अमेरिकी डॉलर में उधारी की लागत कम होती है, जिससे कंपनियों के लिए वैश्विक तरलता की स्थितियां आसान होती हैं।
  • उभरते बाजारों में फंड का प्रवाह (Fund flow to emerging markets): कम अमेरिकी ब्याज दरें अमेरिका के संपत्तियों पर मिलने वाली यील्ड को कम करेंगी, जिससे निवेशक उभरते बाजारों की ओर आकर्षित होंगे।
  • आरबीआई की नीति दर पर प्रभाव (Impact on RBI policy rate): आरबीआई भी अन्य केंद्रीय बैंकों की तरह फेड द्वारा दिए गए संकेतों के आधार पर नीति दर में बदलाव करता है। आरबीआई ने कोविड-19 के दौरान मई 2020 में 40 बेसिस पॉइंट की कटौती की थी।

 आगे का रास्ता (Way Forward):

  • पूंजी प्रवाह को प्रोत्साहित करें (Encourage capital flows): भारत को अमेरिका में ब्याज दरों में कमी का लाभ उठाते हुए विदेशी निवेश आकर्षित करना चाहिए। इसके लिए कारोबार करने में आसानी को बढ़ाना जरूरी है, साथ ही बुनियादी ढांचा, प्रौद्योगिकी और विनिर्माण जैसे प्रमुख क्षेत्रों में विकास को बढ़ावा देना चाहिए।
  • वैश्विक आर्थिक स्थिति का विश्लेषण (Analyze the global economic situation): अन्य देशों की आर्थिक स्थिरता और उनकी मौद्रिक नीतियों पर ध्यान देकर, भारत को अपनी नीति को संतुलित करना चाहिए ताकि वह वैश्विक प्रवृत्तियों के अनुरूप चल सके।
  • मौद्रिक स्थिरता बनाए रखें (Maintain monetary stability): आरबीआई को वैश्विक प्रवृत्तियों का सावधानीपूर्वक आकलन करना चाहिए, लेकिन ब्याज दरों को समायोजित करते समय घरेलू परिस्थितियों को प्राथमिकता देनी चाहिए। इसका ध्यान महंगाई नियंत्रण, वित्तीय स्थिरता और स्थिर जीडीपी वृद्धि पर होना चाहिए।
  • सोने और मुद्रा बाजार पर नजर (Eye on gold and currency market): सोने की कीमतों में संभावित वृद्धि और रुपये की मजबूती के प्रभावों का आकलन करते हुए उचित नीतियों का विकास करना चाहिए।

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