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हाल ही में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक साक्षात्कार में नाटो (NATO) से बाहर निकलने की संभावना पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि पद ग्रहण के बाद इस पर गंभीरता से विचार करेंगे।
मुख्य कारण:
- आर्थिक असंतुलन:
- ट्रंप का मानना है कि NATO के सदस्य देश, विशेष रूप से यूरोपीय राष्ट्र, व्यापारिक मामलों में अमेरिका के साथ निष्पक्ष व्यवहार नहीं कर रहे हैं।
- अमेरिका से वाहन और खाद्य उत्पादों जैसे कई प्रमुख वस्तुओं का आयात यूरोपीय देशों द्वारा सीमित है, जिससे व्यापार घाटा बढ़ता है।
- अमेरिका का मानना है कि व्यापार और सुरक्षा सहयोग दोनों में संतुलन आवश्यक है।
- सुरक्षा खर्च का भार:
- अमेरिका NATO का प्रमुख सैन्य और वित्तीय सहयोगी है, जो संगठन की सुरक्षा संरचना को मजबूत बनाए रखने के लिए अरबों डॉलर खर्च करता है।
- कई सदस्य देश अपनी रक्षा पर न्यूनतम खर्च करते हैं, जबकि अमेरिका नाटो की रक्षा गतिविधियों का मुख्य भार वहन करता है।
- ट्रंप का तर्क है कि सदस्य देशों को अपनी रक्षा बजट को बढ़ाना चाहिए ताकि सुरक्षा जिम्मेदारियों का उचित बंटवारा हो सके।
- भुगतान की मांग:
- ट्रंप ने स्पष्ट रूप से कहा है कि नाटो के सदस्य देशों को अपनी रक्षा पर कम से कम 3% जीडीपी खर्च करना चाहिए।
- कुछ देशों ने इस दिशा में कदम उठाए हैं, जैसे कि पोलैंड ने अपना रक्षा बजट बढ़ाकर 7% जीडीपी कर दिया है, जो नाटो में सबसे अधिक है।
- अमेरिका का मानना है कि यदि सभी देश अपनी हिस्सेदारी समय पर चुकाते हैं, तो संगठन की सामरिक ताकत बढ़ सकती है।
- रणनीतिक पुनर्विचार:
- यदि NATO के सदस्य देश आर्थिक और सैन्य सहयोग में निष्पक्षता नहीं दिखाते हैं, तो अमेरिका संगठन से बाहर निकलने पर गंभीरता से विचार कर सकता है।
- ट्रंप का मानना है कि समान भागीदारी और सहयोग के बिना नाटो की सुरक्षा प्रणाली को बनाए रखना व्यावहारिक नहीं होगा।
नाटो में रक्षा खर्च: योगदानकर्ता-:
संयुक्त राज्य अमेरिका NATO में रक्षा खर्च के मामले में सबसे बड़ा योगदानकर्ता है, जो नाटो देशों के वार्षिक रक्षा खर्च का लगभग दो–तिहाई हिस्सा है। अमेरिका का रक्षा खर्च नाटो के बाकी देशों के कुल खर्च से अधिक है।
रक्षा खर्च (2024):
- कुल रक्षा खर्च (यूरोपीय नाटो सदस्य): $380 अरब (संयुक्त GDP का 2%)
- संयुक्त राज्य अमेरिका: $967 अरब (नाटो रक्षा खर्च का दो-तिहाई), GDP का 3.4%
- जर्मनी: $97.7 अरब
- यूनाइटेड किंगडम: $82.1 अरब
- फ्रांस: $64.3 अरब
- पोलैंड: $34.9 अरब
नाटो (NATO) क्या है?
- पूरा नाम: North Atlantic Treaty Organisation (उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन)
- स्थापना: 4 अप्रैल 1949
- मुख्यालय: ब्रुसेल्स, बेल्जियम
- नाटो के स्थापना के उद्देश्य: द्वितीय विश्व युद्ध के बाद नाटो का गठन शांति बनाए रखने और अपने सदस्य देशों की रक्षा के लिए किया गया था। इसका मुख्य उद्देश्य सामूहिक सुरक्षा प्रदान करना और राजनीतिक और सैन्य सहयोग को बढ़ावा देना है।
स्थापना करने वाले देश:
- NATO की स्थापना 12 देशों ने मिलकर की थी:
- बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, फ्रांस, आइसलैंड, इटली, लक्ज़मबर्ग, नीदरलैंड्स, नॉर्वे, पुर्तगाल, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका।
- मुख्य सिद्धांत: अनुच्छेद 5: यदि किसी सदस्य देश पर हमला होता है, तो इसे सभी सदस्य देशों पर हमला माना जाएगा। यह सिद्धांत सामूहिक रक्षा (Collective Defense) कहलाता है।
- अनुच्छेद 51 (यूएन चार्टर): यह व्यक्तिगत और सामूहिक सुरक्षा के अधिकार को मान्यता देता है।
नाटो का कामकाज:
- राजनीतिक निर्णय: North Atlantic Council (उत्तरी अटलांटिक परिषद): यह नाटो की मुख्य राजनीतिक निर्णय लेने वाली संस्था है।
- सैन्य संरचना:
- सैन्य कमांड: सामरिक और क्षेत्रीय कमांड से मिलकर बना है।
- संयुक्त सैन्य बल: सदस्य देश अपनी सेना, उपकरण और संसाधनों को नाटो कमांड के तहत संचालित करते हैं।
- वित्तीय सहयोग: सभी सदस्य देश अपनी सकल राष्ट्रीय आय (GNI) के आधार पर संगठन के खर्चों में योगदान करते हैं।