संदर्भ:
दुर्लभ बीमारियाँ (Rare Diseases): संसदीय आंकड़ों के अनुसार, अब तक 13,479 मरीजों ने राष्ट्रीय दुर्लभ एवं अन्य आनुवंशिक विकार रजिस्ट्री (National Registry for Rare and Other Inherited Disorders) में पंजीकरण कराया है।
दुर्लभ बीमारियाँ (Rare Diseases) क्या होती हैं?
- ऐसी बीमारियाँ जो बहुत कम लोगों को होती हैं।
- दुनिया में हजारों रेयर डिज़ीज हैं और नई बीमारियाँ अब भी खोजी जा रही हैं।
कुछ प्रमुख दुर्लभ बीमारियों के उदाहरण:
- Acromegaly
- Amyotrophic Lateral Sclerosis (ALS)
- Cystic Fibrosis
- Duchenne Muscular Dystrophy
- Gaucher Disease
- Hemophilia
- Huntington’s Disease
- Sickle Cell Disease
दुर्लभ बीमारियों की विशेषताएँ:
- ये बीमारियाँ अक्सर आनुवंशिक (genetic) होती हैं।
- कुछ देशों में इन्हें “Orphan Diseases” कहा जाता है, क्योंकि इन पर शोध या फंडिंग बहुत कम होती है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, ऐसी बीमारी को रेयर माना जाता है जो हर 1 लाख में 65 से कम लोगों को प्रभावित करती है।
भारत में दुर्लभ बीमारियों (Rare Diseases) की स्थिति:
- भारत में विश्व के दुर्लभ रोगों का एक बड़ा हिस्सा पाया जाता है, और अनुमान है कि लगभग 8 से 10 करोड़ लोग इन बीमारियों से प्रभावित हैं।
- दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मुद्दे पर चिंता जताई है और कहा है कि अभी भी कई मरीज पंजीकृत नहीं हैं, जिससे उनकी पहचान और इलाज नहीं हो पा रहा है।
- कोर्ट ने यह भी कहा कि सरकार और न्यायपालिका को इस विषय में निष्क्रिय नहीं रहना चाहिए और सक्रिय कदम उठाने चाहिए।
- चूंकि दुर्लभ रोगों से पीड़ित लोगों की संख्या प्रबंधनीय है, इसलिए सरकार द्वारा लक्षित योजनाओं और मदद से इस समस्या का प्रभावी समाधान किया जा सकता है।
भारत में दुर्लभ बीमारियों:
- भारत में पाई जाने वाली कुछ रेयर बीमारियाँ:
- Lysosomal Storage Disorders (LSDs)
- Mucopolysaccharoidosis (MPS) Type I
- Adrenoleukodystrophy
दुर्लभ बीमारियों से निपटने की मुख्य चुनौतियाँ:
- उच्च इलाज खर्च: कुछ दवाएँ जैसे risdiplam (SMA के लिए) का खर्च ₹72 लाख/वर्ष, जो NPRD की ₹50 लाख सीमा से अधिक है।
- जल्दी खत्म होती मदद: वित्तीय सहायता जल्दी समाप्त हो जाती है, जिससे इलाज अधूरा रह जाता है।
- सरकारी सहयोग की कमी: फंड की कमी के कारण सरकार अतिरिक्त मदद नहीं देती; कोर्ट के निर्देशों को भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है।
- पेटेंट बाधाएँ: पेटेंट के कारण भारत में जरूरी दवाओं का स्थानीय उत्पादन नहीं हो पाता।
- दवाएं भारत में उपलब्ध नहीं: पेटेंट कंपनियाँ भारत में दवा लाने से मना कर देती हैं, जिससे मरीजों को दिक्कत होती है।