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सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय न्याय प्रणाली में गवाहों की स्थिति को दयनीय बताते हुए गवाह संरक्षण योजना, 2018 के प्रभावी क्रियान्वयन की कमी पर चिंता व्यक्त की।
दांडिक न्याय प्रणाली में साक्षियों और उनके साक्ष्य की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। आपराधिक मामलों में, साक्षियों का महत्व अत्यधिक होता है, लेकिन अक्सर साक्षियों को धमकाया या प्रलोभित किया जाता है, जिससे न्याय प्रक्रिया प्रभावित होती है। परिणामस्वरूप, न्याय प्रणाली पीड़ितों को न्याय दिलाने में असफल हो जाती है। इस स्थिति से निपटने के लिए साक्षियों को सुरक्षा प्रदान करना अनिवार्य हो जाता है।
- साक्षी की परिभाषा : साक्षी वह व्यक्ति होता है जो किसी न्यायिक अधिकरण के समक्ष साक्ष्य या बयान देता है। दंड प्रक्रिया संहिता में ‘साक्षी’ की स्पष्ट परिभाषा नहीं है, लेकिन न्यायालय किसी भी चरण में किसी व्यक्ति को साक्षी के रूप में बुला सकता है। यदि किसी व्यक्ति की गवाही मामले के न्यायसंगत निपटान के लिए आवश्यक होती है, तो उसे फिर से बुलाया जा सकता है।
- साक्षियों को संरक्षण प्रदान करने का महत्व : दांडिक न्याय प्रणाली का मुख्य उद्देश्य समाज को अपराधियों से सुरक्षित रखना और कानून तोड़ने वालों को दंडित करना है। प्रभावी न्याय प्रणाली में अपराध से पहले की घटनाओं की जांच की जाती है। साक्षियों के जरिए साक्ष्य एकत्रित कर न्यायालयों को तथ्यों को सिद्ध करने में मदद मिलती है।
- भारत में साक्षियों के संरक्षण संबंधी कानून : भारत में साक्षियों के संरक्षण के लिए पहले से कुछ प्रावधान मौजूद थे, लेकिन कोई समर्पित कानून नहीं था। साक्षियों का कर्तव्य होता है कि वे सच बोलें, जबकि सरकार की जिम्मेदारी है कि वे उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करे।
- योजना की आवश्यकता और औचित्य : 1958 में विधि आयोग की 14वीं रिपोर्ट में साक्षियों को सुरक्षा प्रदान करने की आवश्यकता की बात की गई थी। राष्ट्रीय पुलिस आयोग और विधि आयोग की अन्य रिपोर्टों में भी साक्षियों की समस्याओं का उल्लेख किया गया और उनके संरक्षण की सिफारिश की गई। उच्चतम न्यायालय ने भी साक्षियों की सुरक्षा की आवश्यकता पर जोर दिया है।
गवाह संरक्षण योजना, 2018:
- गृह मंत्रालय ने राष्ट्रीय विधि सेवा प्राधिकरण, पुलिस अनुसंधान और विकास ब्यूरो, तथा राज्य सरकारों के परामर्श से “साक्षी संरक्षण योजना, 2018” तैयार की। उच्चतम न्यायालय ने 2016 में महेन्दर चावला बनाम भारत संघ के मामले में इस योजना को स्वीकृति दी, जिसमें निर्देश दिया गया कि भारत संघ और राज्य/संघ राज्य क्षेत्र इसे अक्षरशः लागू करें। यह योजना संविधान के अनुच्छेद 141/142 के अंतर्गत एक ‘कानून’ के रूप में मान्य होगी।
योजना के उद्देश्य और लक्ष्य:
- साक्षी संरक्षण योजना का मुख्य उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि साक्षियों को हिंसा या अन्य आपराधिक तरीकों से धमकाया न जाए, जिससे आपराधिक मामलों की जांच, अभियोजन और सुनवाई प्रभावित न हों। यह योजना विधि प्रवर्तन एजेंसियों और न्याय प्रशासन को सहयोग देकर कानून को लागू करने का प्रयास करती है।
सक्षम प्राधिकारी:
इस योजना के तहत हर जिले में एक स्थायी समिति बनाई जाएगी, जिसमें:
- सभापति: जिला और सत्र न्यायाधीश
- सदस्य: जिले के पुलिस प्रमुख
- सदस्य सचिव: जिले में अभियोजन के प्रमुख
राज्य साक्षी संरक्षण निधि:
इस योजना के अंतर्गत एक राज्य साक्षी संरक्षण निधि का प्रावधान किया गया है। यह निधि सक्षम प्राधिकारी द्वारा पारित साक्षी संरक्षण आदेश के कार्यान्वयन में होने वाले खर्चों को पूरा करने के लिए उपयोग की जाएगी। इसके स्रोत में शामिल हैं:
- राज्य सरकार द्वारा वार्षिक बजटीय आवंटन
- न्यायालयों/न्यायाधिकरणों द्वारा जुर्माने की राशि
- सरकारी अनुमति प्राप्त दान/अंशदान
- कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी के अंतर्गत योगदान
साक्षी की श्रेणियां:
साक्षियों की सुरक्षा के लिए खतरे के आधार पर तीन श्रेणियां निर्धारित की गई हैं:
- श्रेणी ‘क‘: जहाँ साक्षी या उसके परिवार को जान का खतरा हो।
- श्रेणी ‘ख‘: जहाँ सुरक्षा, सम्मान या संपत्ति पर खतरा हो।
- श्रेणी ‘ग‘: जहाँ सामान्य खतरा हो, जो डराने-धमकाने या प्रतिष्ठा/संपत्ति से संबंधित हो।
यह योजना साक्षियों के संरक्षण के लिए एक संरचित और कानूनी ढाँचा प्रदान करती है, जिससे न्यायालयों में साक्षियों की भूमिका को सुरक्षित और प्रभावी बनाया जा सके।
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