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विश्व ऊर्जा आउटलुक 2024 के अनुसार, अगले दशक में भारत में ऊर्जा की मांग अन्य किसी भी देश से अधिक बढ़ने की संभावना है।
विश्व ऊर्जा आउटलुक 2024:
- प्रकाशक: यह रिपोर्ट अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) द्वारा प्रतिवर्ष प्रकाशित की जाती है।
- महत्व: यह वैश्विक ऊर्जा विश्लेषण और अनुमानों का सबसे प्रामाणिक स्रोत है, जो ऊर्जा सुरक्षा, उत्सर्जन और आर्थिक विकास से जुड़े बड़े रुझानों की पहचान करता है।
2024 रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएं:
- नया ऊर्जा परिदृश्य: विश्व एक नए ऊर्जा परिदृश्य में प्रवेश कर रहा है, जिसमें विभिन्न ईंधनों और प्रौद्योगिकियों की प्रचुरता और भू-राजनीतिक खतरे शामिल हैं।
- क्लीन एनर्जी: 2030 तक विश्व की आधी से अधिक बिजली कम उत्सर्जन वाले ऊर्जा स्रोतों से उत्पन्न होने की उम्मीद है।
- पारंपरिक ईंधनों की मांग: इस दशक के अंत तक तेल, कोयला और गैस की मांग चरम पर पहुंचने का अनुमान है।
- बिजली की मांग में वृद्धि: वैश्विक बिजली की मांग जापान की वार्षिक खपत के बराबर हर साल बढ़ेगी।
भारत से संबंधित मुख्य बातें:
- ऊर्जा की मांग में वृद्धि: भारत अगले दशक में सबसे अधिक ऊर्जा की मांग का सामना करेगा, जो इसके आकार और विभिन्न क्षेत्रों में बढ़ती मांग का परिणाम है।
- वाहन वृद्धि: STEPS (घोषित नीति परिदृश्य) के अनुसार, भारत 2035 तक प्रतिदिन 12,000 से अधिक नई कारें सड़कों पर उतारेगा।
- निर्माण वृद्धि: हर साल 1 बिलियन वर्ग मीटर से अधिक निर्मित क्षेत्र जोड़ा जाएगा, जो दक्षिण अफ्रीका के कुल निर्मित क्षेत्र से भी अधिक है।
- इस्पात और सीमेंट उत्पादन: 2035 तक इस्पात उत्पादन में 70% और सीमेंट उत्पादन में 55% की वृद्धि होने की उम्मीद है।
- एयर कंडीशनरों की मांग: एयर कंडीशनरों की मांग में 4.5 गुना वृद्धि होगी, जिससे 2035 में इनसे बिजली की खपत मैक्सिको की कुल अपेक्षित खपत से अधिक हो जाएगी।
- बिजली उत्पादन क्षमता: 2035 तक भारत की कुल ऊर्जा मांग में 35% वृद्धि होगी, और इसकी बिजली उत्पादन क्षमता लगभग तीन गुनी होकर 1400 गीगावाट हो जाएगी।
- कोयले का महत्व: भारत के ऊर्जा मिश्रण में कोयला महत्वपूर्ण भूमिका निभाता रहेगा, और 2030 तक 60 गीगावाट की नई कोयला आधारित क्षमता जोड़ी जाएगी।
अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA):
- स्थापना: 1974 में तेल आपूर्ति सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इसकी स्थापना की गई थी।
- सदस्य: इसमें 31 सदस्य देश और 11 सहयोगी देश शामिल हैं।
- उद्देश्य: यह सरकारों और उद्योगों के साथ मिलकर एक सुरक्षित और टिकाऊ ऊर्जा भविष्य को आकार देने का कार्य करता है। इसकी स्थापना 1973-1974 के तेल संकट के दौरान हुई थी, जब तेल प्रतिबंध ने कीमतों में भारी वृद्धि की थी और तेल आयात पर निर्भरता उजागर की थी।
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