हाल ही में भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने फलों को पकाने वाले व्यापारियों, फलों को संभालने वालों और खाद्य व्यवसाय संचालकों (FBO) को सख्त चेतावनी जारी की है। यह चेतावनी खासकर आम के सीजन में फलों को कृत्रिम रूप से पकाने के लिए कैल्शियम कार्बाइड का इस्तेमाल करने वालों के लिए है।
FSSAI ने क्या कहा हैं?
- FSSAI ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के खाद्य सुरक्षा विभागों से इस नियम का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का आग्रह किया है।
- प्राधिकरण ने इस बात पर जोर दिया है कि कैल्शियम कार्बाइड एक खतरनाक रसायन है और इसका इस्तेमाल करने से स्वास्थ्य को गंभीर खतरा होता है।
- साथ ही यह खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 और इससे जुड़े नियमों और कानूनों का भी उल्लंघन है।
कैल्शियम कार्बाइड
- रासायनिक सूत्र: CaC2
- कैल्शियम कार्बाइड एक अत्यधिक प्रतिक्रियाशील यौगिक है।
- इसका उपयोग प्रायः आम जैसे फलों को पकाने के लिए किया जाता है।
- इसका निर्माण चूने और कार्बन को 2000 से 2100°C तक गर्म करके किया जाता है।
- इससे निकलने वाली एसिटिलीन गैस में आर्सेनिक और फास्फोरस के हानिकारक अंश होते हैं।
- इसका इस्तेमाल चक्कर आना, अत्यधिक प्यास, जलन, उल्टी और अल्सर आदि का कारण बनता है।
प्रतिबंध के कारण
- कैल्शियम कार्बाइड, जो आमतौर पर आम जैसे फलों को पकाने के लिए उपयोग किया जाता है, से एसिटिलीन गैस उत्सर्जित होती है, जिसमें आर्सेनिक और फास्फोरस जैसे हानिकारक रसायन होते हैं।
- ये पदार्थ, जिन्हें ‘मसाला’ के नाम से भी जाना जाता है, चक्कर आना, मुँह सूखना, जलन, कमजोरी, निगलने में कठिनाई, उल्टी और त्वचा के अल्सर आदि जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएँ पैदा कर सकते हैं।
- इसके अलावा, एसिटिलीन गैस इससे संबंधित काम करने वालों के लिए भी खतरनाक है।
- यह संभव है कि कैल्शियम कार्बाइड फलों के सीधे संपर्क में आ जाए और फलों पर आर्सेनिक तथा फास्फोरस उस्त्सर्जित करे।
- इन खतरों के कारण, खाद्य सुरक्षा और मानक विनियम, 2011 (बिक्री पर निषेध और प्रतिबंध) के विनियमन 2.3.5 के तहत फलों को पकाने के लिए कैल्शियम कार्बाइड के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया गया है।
- इस विनियमन में स्पष्ट रूप से कहा गया है, “कोई भी व्यक्ति इसकी बिक्री या पेशकश नहीं करेगा अथवा किसी भी विवरण के तहत बिक्री के उद्देश्य से अपने परिसर में बिक्री के लिए ऐसे फल नहीं रखेगा, जो एसिटिलीन गैस, जिसे आमतौर पर कार्बाइड गैस के रूप में जाना जाता है, के उपयोग द्वारा कृत्रिम रूप से पकाए गए हैं।
खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम, 2006:FSS अधिनियम, 2006 उन विभिन्न अधिनियमों एवं आदेशों को समेकित करता है जो अब तक विभिन्न मंत्रालयों और विभागों में खाद्य संबंधी मुद्दों से निपटने में सहायक थे, जैसे –
मुख्य विशेषताएँ
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अनुमोदित विकल्प
प्रतिबंधित कैल्शियम कार्बाइड के बड़े पैमाने पर उपयोग के मुद्दे को ध्यान में रखते हुए, FSSAI, ने भारत में फलों को पकाने के लिए एक सुरक्षित विकल्प के रूप में एथिलीन गैस के उपयोग की अनुमति दी है।
एथिलीन गैस
- एथिलीन एक ऐसा हार्मोन है जो प्राकृतिक रूप से फलों में पाया जाता है। यह फल पकने की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है। यह रासायनिक और जैव-रासायनिक गतिविधियों की एक श्रृंखला शुरू करके ऐसा करता है।
- जब कच्चे फलों को एथिलीन गैस से अवगत कराया जाता है, तो यह पकने की प्राकृतिक प्रक्रिया को शुरू कर देता है। यह तब तक जारी रहता है जब तक फल खुद ही पर्याप्त मात्रा में एथिलीन का उत्पादन शुरू नहीं कर देता।
- एथिलीन गैस का उपयोग विभिन्न प्रकार के फलों पर किया जा सकता है। इसकी मात्रा फसल, किस्म और परिपक्वता के स्तर पर निर्भर करती है। आमतौर पर, 100 μl/L तक की सांद्रता का उपयोग किया जाता है।
भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI)
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