Mango Production Trends Amid Climate Change Challenges
संदर्भ:
भारत में आम की फसल बढ़ते तापमान के कारण कई चुनौतियों का सामना कर रही है। हालिया रिपोर्टों के अनुसार
- आम के फूल आने के समय में बदलाव देखा गया है।
- फलों की गुणवत्ता में गिरावट आई है।
- तापमान बढ़ने से फसल की उपज पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
इन परिवर्तनों ने किसानों की आय और उपभोक्ताओं तक पहुंचने वाले आम की गुणवत्ता दोनों को प्रभावित किया है।
बढ़ते तापमान पर प्रमुख तथ्य:
- रिकॉर्ड तोड़ गर्मी: भारत मौसम विज्ञान विभाग की वार्षिक जलवायु रिपोर्ट 2024 के अनुसार, साल 2024 भारत में 1901 के बाद का सबसे गर्म साल रहा।
- औसत तापमान में वृद्धि: 2024 में भारत का वार्षिक औसत भूमि सतह तापमान 1991–2020 की औसत की तुलना में +0.65°C अधिक दर्ज किया गया।
- लगातार गर्म होते वर्ष: पिछले 12 वर्षों से लगातार तापमान औसत से अधिक रहा है, जो दीर्घकालिक जलवायु परिवर्तन का संकेत है।
भारत में आम उत्पादन पर बढ़ते तापमान का प्रभाव: मिश्रित परिदृश्य
- अनुमानित प्रभाव: बढ़ते तापमान से आम उत्पादन पर नकारात्मक असर पड़ने की आशंका जताई गई है:
- जल्दी पकना और फल गिरना: उच्च तापमान के कारण आम जल्दी पक जाते हैं और असमय झड़ने लगते हैं।
- गुणवत्ता में गिरावट: अल्फोंसो जैसी किस्मों में स्पंजी टिशू जैसी विकृति बढ़ी है।
- किसानों की रिपोर्ट: किसानों के अनुभव और मीडिया रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि आम की पैदावार और मिठास दोनों में गिरावट आई है।
- प्रेक्षित प्रभाव: हालांकि सरकारी आँकड़े इससे उलट रुझान दिखाते हैं:
- उत्पादकता में वृद्धि: भारतीय बागवानी विभाग और एग्रीकल्चरल मार्केट इंटेलिजेंस सेंटर के अनुसार, पिछले वर्षों में आम की उत्पादकता बढ़ी है:
- FY2009 में: 5.5 मीट्रिक टन/हेक्टेयर (MT/Ha)
- FY2018 में: 9.7 मीट्रिक टन/हेक्टेयर (MT/Ha)
- खेती का दायरा बढ़ा: आम की खेती के क्षेत्रफल में भी वृद्धि दर्ज की गई है।
- वैश्विक स्तर पर प्रदर्शन: वर्ष 2024–25 में भारत की आम उत्पादकता चीन और थाईलैंड जैसे बड़े उत्पादकों को भी पीछे छोड़ सकती है।
आम उत्पादन: आनुवंशिक विविधता और भविष्य की संभावनाएँ
- आनुवंशिक विविधता और अनुकूलन क्षमता
- आम की प्रजातियों में प्रचुर आनुवंशिक विविधता पाई जाती है, जो उन्हें बदलते जलवायु परिस्थितियों में ढलने में सहायक बनाती है।
- शोध दर्शाते हैं कि आम के पेड़ों में फिजियोलॉजिकल (जैव-शारीरिक) तंत्र होते हैं, जो उन्हें ऊष्मा, सूखा या अनियमित वर्षा जैसी जलवायु चुनौतियों में जीवित रहने में मदद करते हैं।
- यह विविधता प्राकृतिक चयन और लक्ष्य आधारित प्रजनन (breeding) को संभव बनाती है, जिससे बेहतर किस्में तैयार की जा सकती हैं।
- भविष्य की संभावनाएँ
- जलवायु परिवर्तन के जोखिमों के बावजूद विशेषज्ञ आम उत्पादन को लेकर सावधानीपूर्वक आशावादी हैं।
- वैज्ञानिक शोध, अनुकूलनशील किस्मों का विकास और जलवायु-सहिष्णु कृषि तकनीकों के प्रयोग से स्थायी उत्पादन सुनिश्चित किया जा सकता है।
- कृषि अनुसंधान संस्थान जैसे ICAR-CISH (Central Institute for Subtropical Horticulture) उन्नत किस्में विकसित कर रहे हैं जो रोग प्रतिरोधी और जलवायु-अनुकूल हैं।
निष्कर्ष:
भारत में आम उत्पादन की दीर्घकालिक स्थिरता आनुवंशिक विविधता, नवाचार और वैज्ञानिक हस्तक्षेपों पर निर्भर करेगी। यदि सही रणनीति अपनाई जाए, तो आम न केवल भारत की खेती का अभिन्न हिस्सा बना रहेगा, बल्कि वैश्विक बाजार में भी प्रमुख फल बना रहेगा।