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विवादों को सुलझाने के लिए मध्यस्थता (Mediation To Resolve Conflicts)

Mediation To Resolve Conflicts

संदर्भ:

भारत में मध्यस्थता संघ (Mediation Association of India) द्वारा आयोजित पहली राष्ट्रीय मध्यस्थता सम्मेलन के उद्घाटन अवसर पर राष्ट्रपति ने देशभर में विवादों के समाधान और अदालतों पर बोझ कम करने के लिए मध्यस्थता को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता पर बल दिया।

मध्यस्थता (Mediation): एक वैकल्पिक विवाद निपटान प्रणाली

  • परिभाषा: मध्यस्थता एक स्वैच्छिक, गोपनीय और गैर-विरोधी प्रक्रिया है, जिसमें एक निष्पक्ष तृतीय पक्ष (मध्यस्थ) दो या अधिक विवादरत पक्षों को आपसी सहमति से समाधान तक पहुँचने में मदद करता है।
  • वैकल्पिक विवाद निपटान प्रणाली (ADR): मध्यस्थता, वैकल्पिक विवाद निपटान (Alternative Dispute Resolution – ADR) की एक प्रमुख विधि है। इसके अन्य रूप हैं:
    • पंचाट (Arbitration)
    • सुलह (Conciliation)
    • परामर्श/मोलभाव (Negotiation)
  • भारत में मध्यस्थता का उपयोग: वर्ष 2016 से प्रारंभिक 2025 तक, 7,57,173 मामलों का समाधान मध्यस्थता के माध्यम से किया गया — यह इसकी प्रभावशीलता और लोकप्रियता को दर्शाता है।

मध्यस्थता का महत्व और भारत में इसकी कानूनी व्यवस्था:

  1. मध्यस्थता का महत्व:
  • मामलों की लंबितता में कमी: छोटे दीवानी, वैवाहिक और व्यावसायिक विवादों को सुलझाकर अदालतों का बोझ कम करती है।
  • तेज़ समाधान: अधिकांश मामले कुछ ही बैठकों में हल हो जाते हैं।
  • कम खर्चीला विकल्प: अदालत की लागत और वकीलों की फीस की बचत होती है।
  • संबंधों को बनाए रखना: परिवारिक और व्यावसायिक विवादों में विशेष रूप से सकारात्मक भूमिका निभाती है।
  • पक्षकारों को सशक्त बनाना: समाधान न्यायालय द्वारा थोपा नहीं जाता, बल्कि आपसी सहमति से होता है।
  1. कानूनी प्रावधान और संस्थागत समर्थन

कानूनी सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987:

  • लोक अदालतों की स्थापना करता है जो मध्यस्थता जैसे तरीकों से कार्य करते हैं।
  • निःशुल्क विधिक सहायता और वैकल्पिक विवाद समाधान को वैधानिक समर्थन प्रदान करता है।

दिवानी प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 89:  अदालतों को मामलों को मध्यस्थता सहित अन्य ADR तरीकों के लिए भेजने की अनुमति देता है।

मध्यस्थता अधिनियम, 2023:  भारत में मध्यस्थता को संस्थागत बनाने का प्रयास।

मुख्य प्रावधान:

  • दीवानी और वाणिज्यिक मामलों में पूर्वविधिक मध्यस्थता अनिवार्य
  • भारतीय मध्यस्थता परिषद की स्थापना:
    • पूरे देश में मध्यस्थता को विनियमित करने के लिए।
    • मध्यस्थों का प्रशिक्षण, मूल्यांकन और प्रमाणन सुनिश्चित करेगा।

मध्यस्थता का महत्व:

  1. न्यायिक प्रणाली पर भार कम करना
  • India Justice Report (IJR) 2025 के अनुसार, भारत की न्यायपालिका में लंबित मामलों की संख्या 5 करोड़ को पार कर गई है।
  • मध्यस्थता के ज़रिये छोटे-छोटे विवादों को अदालतों के बाहर सुलझाकर अदालती बोझ में कमी लाई जा सकती है।
  1. सस्ता और त्वरित न्याय: लंबी कानूनी प्रक्रिया में लगने वाले अधिवक्ता शुल्क, अदालत शुल्क और समय की बड़ी बचत होती है।
  • कम समय में न्यायिक समाधान उपलब्ध कराता है, जो आम जनता के लिए अधिक व्यावहारिक है।

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