National Education Policy 2020
संदर्भ:
सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 को देश के सभी राज्यों में अनिवार्य रूप से लागू करने की मांग वाली जनहित याचिका (PIL) को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत वह राज्यों को बाध्य नहीं कर सकता कि वे इस नीति को लागू करें।
- हालाँकि, पीठ ने यह भी कहा कि यदि भविष्य मेंमौलिक अधिकारों के उल्लंघन से जुड़ी कोई स्थिति उत्पन्न होती है, तो कोर्ट हस्तक्षेप कर सकता है।
पृष्ठभूमि:
- याचिकाकर्ता: अधिवक्ता जी.एस. मणि ने एक जनहित याचिका (PIL) दायर की, जिसमें तमिलनाडु, केरल और पश्चिम बंगाल में राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 को अनिवार्य रूप से लागू करने की मांग की गई थी।
- मुख्य मांग: NEP 2020 के तहत प्रस्तावित तीन-भाषा सूत्र (Three-Language Formula) को इन राज्यों में लागू करने का निर्देश देना।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:
- मुख्य बेंच: न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने याचिका को खारिज कर दिया।
- मुख्य तर्क:
- संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत, सुप्रीम कोर्ट नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए निर्देश जारी कर सकता है, लेकिन किसी राज्य को किसी नीति को अपनाने के लिए बाध्य नहीं कर सकता।
- यदि किसी राज्य की कार्रवाई या निष्क्रियता से मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है, तो कोर्ट हस्तक्षेप कर सकता है।
- याचिकाकर्ता की स्थिति:
- कोर्ट ने पाया कि याचिकाकर्ता का इस मुद्दे से कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं है, क्योंकि वह तमिलनाडु से हैं लेकिन वर्तमान में दिल्ली में निवास करते हैं।
संवैधानिक दृष्टिकोण:
- अनुच्छेद 32: यह अनुच्छेद नागरिकों को मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने का अधिकार देता है।
- संविधान की सातवीं अनुसूची: शिक्षा को समवर्ती सूची में रखा गया है, जिससे केंद्र और राज्य दोनों को इस पर कानून बनाने का अधिकार है।
संघीय ढांचे पर प्रभाव:
- यह फैसला संघीय ढांचे की पुष्टि करता है, जिसमें राज्यों को नीति अपनाने में स्वतंत्रता दी गई है।
- राज्यों को NEP 2020 को लागू करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता, जब तक कि यह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन न करे।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 परिचय:
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 (NEP 2020) भारत की शिक्षा व्यवस्था के लिए एक व्यापक रूपरेखा है, जिसे जुलाई 2020 में केंद्र सरकार ने जारी किया। यह 1986 की नीति को बदलती है और 21वीं सदी की आवश्यकताओं के अनुरूप शिक्षा को रूपांतरित करने का लक्ष्य रखती है।
प्रमुख विशेषताएँ:
- समग्र और बहुविषयक शिक्षा: विज्ञान, कला, वाणिज्य की पारंपरिक सीमाएँ हटाकर विद्यार्थियों को विविध विषय पढ़ने का अवसर।
- मूलभूत साक्षरता व संख्यात्मकता: प्राथमिक स्तर पर पढ़ना, लिखना और गणना सीखने पर विशेष ध्यान।
- तकनीकी एकीकरण: डिजिटल शिक्षण, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और मूल्यांकन में तकनीक का उपयोग।
- व्यावसायिक शिक्षा: कक्षा 6 से व्यावसायिक शिक्षा की शुरुआत, जिससे छात्रों को रोजगारोन्मुख कौशल मिलें।
- शिक्षक प्रशिक्षण: नए मानक जैसे NPST और ITEP के ज़रिए शिक्षकों की गुणवत्ता बढ़ाना।
- नई पाठ्यक्रम संरचना (5+3+3+4): शिक्षा को 4 चरणों में बाँटा गया है – प्रारंभिक, तैयारी, मध्य और माध्यमिक।
- भाषा पर बल: प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा/स्थानीय भाषा में पढ़ाई को बढ़ावा।
- मूल्यांकन सुधार: परीक्षा प्रणाली में बदलाव, नया मूल्यांकन निकाय “PARAKH” की स्थापना।
- शिक्षा में निवेश: शिक्षा पर सार्वजनिक खर्च को GDP का 6% करने की सिफारिश।
उद्देश्य:
- भारत को ज्ञान आधारित समाज बनाना
- सभी को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करना
- युवाओं को वैश्विक चुनौतियों के लिए तैयार करना
- सोचने, समझने और निर्णय लेने की उच्च क्षमताएँ विकसित करना