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पाली भाषा

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हाल ही में, भारत सरकार ने पाली भाषा को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया है, जो इस भाषा की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता को रेखांकित करता है।

पाली भाषा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

  • “पाली भाषा” या “पाली लैंग्वेज” शब्द आधुनिक काल में गढ़ा गया है और इसकी सटीक उत्पत्ति विद्वानों के बीच बहस का विषय रही है।
  • 6वीं या 7वीं शताब्दी तक, ऐसी कोई भी विशिष्ट भाषा नहीं थी, जो पाली के रूप में जानी जाती हो।
  • पाली के आरंभिक संदर्भ बौद्ध विद्वान बुद्धघोष की टिप्पणियों में मिलते हैं। पाली की उत्पत्ति के बारे में कई सिद्धांत सामने आए हैं।
    • मैक्स वॉलेसर (जर्मन भारतविद्) का सुझाव है कि पाली शब्द पाताल या “पदाली” से लिया गया है, जो संभावित रूप से इसका संबंध पाटलिपुत्र की भाषा से दर्शाता है।
    • आर.सी. चाइल्डर्स (ब्रिटिश प्राच्यविद्) की राय में पाली आम लोगों द्वारा बोली जाने वाली स्थानीय भाषा थी।
    • जेम्स अल्विस (सीलोन से औपनिवेशिक युग के व्यवस्थापक) ने इसकी पहचान गौतम बुद्ध के कालखंड में प्रचलित मगध की भाषा के रूप में की है।
  • प्राचीन भारत के इतिहास के पुनर्निर्माण की दृष्टि से पाली का अध्ययन महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसका साहित्य अतीत के बारे में बहुमूल्य जानकारी प्रदान करने वाली सामग्रियों से युक्त है।
  • हालांकि, कई पाली ग्रंथ पांडुलिपियों में प्रच्छन हैं, जो सहजता से सुलभ नहीं हैं।
  • पाली का श्रीलंका, म्यांमार, थाईलैंड जैसे बौद्ध देशों और चटगाँव, जापान, कोरिया, तिब्बत, चीन और मंगोलिया जैसे क्षेत्रों में अध्ययन जारी है, जहां बहुसंख्यक बौद्ध निवास करते हैं।

पाली भाषा का साहित्यिक योगदान:

  • पाली विभिन्न बोलियों से बुनी गई एक समृद्ध ताने-बाने की शैली है, जिसे प्राचीन भारत में बौद्ध और जैन संप्रदायों ने अपनी पवित्र भाषाओं के रूप में अपनाया।
  • भगवान बुद्ध के कालखंड, लगभग 500 ईसा पूर्व के दौरान, उन्होंने अपने उपदेशों के लिए पाली का उपयोग किया जिससे यह उनकी शिक्षाओं के प्रसार का मौलिक माध्यम बन गयी।
  • बौद्ध धर्म के प्रामाणिक साहित्य का पूरा ग्रंथसंग्रह पाली में रचा गया है, जिसमें सबसे विशिष्ट है तिपिटक, जिसका अनुवाद “तीन पेटियां” है।
    • पहली पेटी या पिटक – विनय पिटक: नैतिक आचरण और सामुदायिक जीवन का खाका प्रस्तुत करते हुए बौद्ध भिक्षुओं के लिए मठ के नियमों की रूपरेखा प्रदान करता है।
    • दूसरी पेटी या पिटक – सुत्त पिटक: बुद्ध के भाषणों और संवादों का खजाना है, जो उनके विवेक और दार्शनिक अंतर्दृष्टि को समेटे हुए है।
    • अंत में, अभिधम्म पिटक: मन और वास्तविकता का गहन विश्लेषण प्रस्तुत करते हुए नैतिकता, मनोविज्ञान और ज्ञान के सिद्धांत से संबंधित विभिन्न विषयों के बारे में गहन चर्चा करता है।
  • प्रामाणिक ग्रंथों के अलावा, पाली साहित्य में जातक कथाएं भी शामिल हैं।
  • ये गैर-प्रामाणिक कहानियां हैं, जो बोधिसत्व के रूप में बुद्ध के पिछले जीवन या भावी बुद्ध की कहानियां सुनाती हैं।
  • ये कथाएं भारतीय जनमानस की साझी विरासत से मेल खाती हैं, जो साझा नैतिक मूल्यों और सांस्कृतिक परंपराओं को प्रतिविम्बित करती हैं।
  • साथ ही, ये साहित्यिक कृतियां प्राचीन भारतीय विचार एवं आध्यात्मिकता को संरक्षित और प्रसारित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण भाषा के रूप में पाली के महत्व को रेखांकित करती हैं।

पाली के लिए शास्त्रीय भाषा के दर्जे का महत्व:

  • पाली को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने से लंबे समय से अलोप हो रही भाषा के पुनः प्रवर्तन की संभावना है।
  • यह मान्यता सरकार को पाली के प्रोत्साहन और संरक्षण हेतु विभिन्न योजनाओं को विकसित और लागू करने में सक्षम बनाएगी।
  • इन पहलों के माध्यम से, शैक्षणिक संस्थानों में पाली के अध्ययन को बढ़ाने, इसकी समृद्ध साहित्यिक विरासत को संरक्षित करने और इसके ऐतिहासिक महत्व पर शोध को प्रोत्साहित करने के प्रयास किए जा सकते हैं।
  • अंततः, इस कदम की बदौलत आधुनिक काल में इस भाषा की निरंतर प्रासंगिकता सुनिश्चित करते हुए और भारत की भाषाई विविधता के व्यापक ताने-बाने में इसका स्थान सुनिश्चित करते हुए पाली के पुनरुद्धार में योगदान मिलेगा।

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