Rohingya refugee issue
संदर्भ:
भारत के सर्वोच्च न्यायालय महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि यदि भारत में रह रहे रोहिंग्या शरणार्थियों को भारतीय कानूनों के तहत “विदेशी” माना जाता है, तो उन्हें विदेशी अधिनियम, 1946 के अनुसार निर्वासित किया जाना आवश्यक है। यह निर्णय दिल्ली में रोहिंग्या प्रवासियों की संभावित निर्वासन प्रक्रिया को रोकने के लिए दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान आया।
भारत का रुख: रोहिंग्या शरणार्थी मुद्दा–
पृष्ठभूमि
- रोहिंग्या समुदाय को म्यांमार के रखाइन क्षेत्र में नरसंहार का सामना करना पड़ा।
- वर्तमान में ये दुनिया की सबसे बड़ी नागरिकता विहीन आबादी हैं।
भारत का रुख:
- अंतरराष्ट्रीय दायित्व:
- भारत UN शरणार्थी सम्मेलन (UNHCR) का हस्ताक्षरकर्ता नहीं है।
- भारत ने इन प्रमुख अंतरराष्ट्रीय संधियों पर हस्ताक्षर नहीं किए:
- यातना और अन्य क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार या सजा के खिलाफ सम्मेलन।
- जबरन गायब होने से सभी व्यक्तियों के संरक्षण के लिए अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन।
- इस कारण भारत पर आश्रय देने और गैर–प्रतिरोध (Non-Refoulement) नीति का पालन करने का कोई कानूनी दायित्व नहीं है।
गैर–प्रतिरोध (Non-Refoulement) नीति:
- यह नीति उन व्यक्तियों को उन स्थानों पर वापस भेजने से रोकती है जहां उन्हें उत्पीड़न, यातना या गंभीर नुकसान का खतरा है।
- यह शरणार्थियों और मानवाधिकारों की संरक्षा करता है।
भारत में रोहिंग्या की स्थिति:
- भारत रोहिंग्या शरणार्थियों को अवैध प्रवासी के रूप में मानता है।
- इन्हें घरेलू कानूनों के तहत हिरासत में रखा जाता है:
- विदेशी अधिनियम, 1946:
- विदेशियों के प्रवेश, निवास और प्रस्थान को नियंत्रित करता है।
- अवैध प्रवासियों को निर्वासित करने का प्रावधान।
- पासपोर्ट अधिनियम, 1967:
- भारत में पासपोर्ट जारी करने और उसके विनियमन से संबंधित।
राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं के मद्देनजर, सरकार को विदेशी अधिनियम के तहत विदेशियों के प्रवेश या प्रस्थान को नियंत्रित, प्रतिबंधित या रोकने का पूर्ण अधिकार है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:
- मोहम्मद सलीमुल्लाह बनाम भारत संघ और अन्य (2021):
- अनुच्छेद 14 और 21 के अधिकार सभी व्यक्तियों (नागरिक और गैर-नागरिक) पर लागू होते हैं।
- लेकिन निर्वासन न होने का अधिकार अनुच्छेद 19(1)(e) के तहत निवास या बसने के अधिकार से संबंधित है, जो केवल भारतीय नागरिकों पर लागू होता है।
रोहिंग्या मुसलमान कौन हैं?
- परिभाषा: संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, रोहिंग्या मुसलमान दुनिया के सबसे प्रताड़ित अल्पसंख्यक हैं।
- निर्वासन का कारण:
- 2017 में म्यांमार की सेना द्वारा अत्याचार और दमन से बचने के लिए घर छोड़ना पड़ा।
- म्यांमार में भेदभाव और हिंसा के चलते, रोहिंग्या अल्पसंख्यक दशकों से बौद्ध-बहुल देश से बांग्लादेश और भारत जैसे पड़ोसी देशों में पलायन कर रहे हैं।
निष्कर्ष
- भारत में रोहिंग्या जैसे गैर-नागरिकों के लिए निर्वासन से सुरक्षा का मौलिक अधिकार नहीं है।
- राष्ट्रीय सुरक्षा और कानूनी प्रावधानों के आधार पर निर्वासन प्रक्रिया जारी रहेगी।