Tectona Grandis
संदर्भ:
भारत में टिशू-कल्चर तकनीक से तैयार सागवान (teak) को एक उच्च उपज और तीव्र लाभ देने वाला विकल्प मानते हुए बढ़ावा दिया जा रहा है। इससे देश में लकड़ी की खेती और व्यापार को बढ़ाने की कोशिश की जा रही है, लेकिन इसके उत्पादकता, आर्थिक व्यवहार्यता और पारिस्थितिकीय स्थिरता को लेकर बहस भी तेज हो गई है।
सागवान (Teak / Tectona grandis) के बारे में:
परिचय:
- सागवान को “लकड़ियों का राजा” (King of Timbers) कहा जाता है क्योंकि यह मजबूत, टिकाऊ, और कीटों व जल के प्रति प्रतिरोधी होती है।
- यह विश्व की सबसे मूल्यवान उष्णकटिबंधीय लकड़ियों में से एक है।
- इसका उपयोग जहाज निर्माण, भवन निर्माण, फर्नीचर, फ़्लोरिंग और संगीत वाद्ययंत्रों में बड़े पैमाने पर होता है।
वैश्विक स्थिति और भारत की भूमिका:
- भारत में विश्व के 35% लगाए गए सागवान के वन मौजूद हैं।
- एशिया में 95% से अधिक वैश्विक सागवान संसाधन पाए जाते हैं।
- FAO Global Teak Resources and Market Assessment 2022 के अनुसार: मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में सबसे अधिक प्राकृतिक सागवान वन क्षेत्र हैं।
भौगोलिक वितरण:
- दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया में इसका प्राकृतिक रूप से विकास होता है — विशेष रूप से भारत, म्यांमार, थाईलैंड, लाओस और इंडोनेशिया।
- भारत में यह मुख्यतः इन राज्यों में पाया जाता है:
- मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, असम और पूर्वोत्तर भारत।
पारिस्थितिक विशेषताएँ: नम पर्णपाती (moist deciduous) और मिश्रित पर्णपाती वनों में उगता है।
- अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी और पूरा सूर्य प्रकाश इसकी वृद्धि के लिए आवश्यक है।
- यह 30–40 मीटर तक ऊँचा हो सकता है और सैकड़ों वर्षों तक जीवित रह सकता है।