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मानहानि को अपराधमुक्त करना (Decriminalise defamation) | Apni Pathshala

Decriminalise defamation

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संदर्भ:

सुप्रीम कोर्ट के एक न्यायाधीश ने आपराधिक मानहानि कानून के बढ़ते दुरुपयोग पर नाराज़गी जताई है, खासकर जब निजी व्यक्ति और राजनीतिक दल इसे बदला लेने के हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्होंने इस संदर्भ में मानहानि को अपराध की श्रेणी से बाहर करने की आवश्यकता पर जोर दिया।

भारत में मानहानि (Defamation in India):

परिभाषा (Definition): मानहानि किसी भी बोले गए, लिखित या प्रकाशित कथन को कहते हैं जो किसी व्यक्ति या समूह की प्रतिष्ठा को हानि पहुँचाए।

  • यह जीवित व्यक्तियों के साथ-साथ मृत व्यक्तियों पर भी लागू होती है, यदि उनके परिवार या निकट संबंधियों की प्रतिष्ठा प्रभावित होती है

मानहानि के प्रकार (Two Forms of Defamation)

  1. लाइबल (Libel – लिखित मानहानि):
    • स्थायी रूप में की गई मानहानि जैसे लेखन, छवियाँ, प्रकाशन आदि।
  2. स्लैंडर (Slander – मौखिक मानहानि):
    • मौखिक या अस्थायी रूप से की गई मानहानि जैसे बोले गए शब्द।

कानूनी स्थिति (Legal Status):

  1. सिविल मानहानि (Civil Defamation):
  • यह टॉर्ट क़ानून (Tort Law) द्वारा शासित है।
  • इसमें पीड़ित व्यक्ति प्रतिष्ठा की हानि के बदले मुआवज़ा (Compensation) माँग सकता है।
  1. आपराधिक मानहानि (Criminal Defamation):
  • यह भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nyaya Sanhita – BNS), 2023 की धारा 356 के तहत अपराध है।
  • दंड: अधिकतम दो वर्ष की कैद, जुर्माना या दोनों।

अपराधीकरण हटाने के पक्ष में तर्क:

  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1)(a)) पर इसका प्रतिकूल असर पड़ता है।
  • पत्रकारों, लेखकों व आलोचकों पर जेल का खतरा dissent को दबाता है।
  • यह ब्रिटिश काल की विरासत है, राष्ट्रीय आवाज़ों को दबाने के लिए लागू किया गया था।
  • जेल की सजा असंगत है, जबकि नागरिक उपाय उपलब्ध हैं।
  • राजनीतिक वर्ग अक्सर विरोधियों और मीडिया को डराने के लिए दुरुपयोग करता है।
  • संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय निकाय अपराधीकरण हटाने की सिफारिश करते हैं।

अपराधीकरण बनाए रखने के पक्ष में तर्क:

  • मान-सम्मान (अनुच्छेद 21) जीवन के अधिकार का हिस्सा है; सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में इसकी पुष्टि की।
  • नागरिक उपाय महंगे और धीमे हैं, आम नागरिकों के लिए अप्रभावी।
  • डिजिटल युग में झूठी बातें तेजी से फैलती हैं, इन्हें रोकने के लिए मजबूत निवारक जरूरी।
  • मीडिया और राजनीति में बेबुनियाद आरोप से बचाव हेतु नियंत्रण आवश्यक।
  • भारतीय सामाजिक संदर्भ में प्रतिष्ठा सीधे रोज़गार, विवाह और सामाजिक स्थिति से जुड़ी है।

निष्कर्ष: भारत में मानहानि के अपराधीकरण पर बहस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और व्यक्तिगत प्रतिष्ठा के बीच संतुलन खोजने की है। एक ओर इसे अभिव्यक्ति पर अंकुश और ब्रिटिश काल की दमनकारी विरासत माना जाता है, वहीं दूसरी ओर यह तर्क दिया जाता है कि प्रतिष्ठा जीवन के अधिकार का हिस्सा है और डिजिटल युग में झूठे आरोपों से बचाव के लिए मजबूत निवारक आवश्यक हैं।

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