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घरेलू प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण बैंक (Domestic Systemically Important Banks) | UPSC

Domestic Systemically Important Banks

Domestic Systemically Important Banks

संदर्भ:

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने State Bank of India (SBI), HDFC Bank और ICICI Bank को वर्ष 2025 की घरेलू प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण बैंक (D-SIBs) की सूची में शामिल किया। यह सूची हर वर्ष RBI द्वारा तैयार की जाती है। इन तीन बैंकों को पिछले वर्षों की तरह समान बकेट संरचना में रखा गया है।

घरेलू प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण बैंक (D-SIBs) क्या हैं?

  • परिचय: Domestic Systemically Important Banks (D-SIBs) वे बैंक हैं जिनका आकार, जटिलता, और वित्तीय प्रणाली से जुड़ाव इतना बड़ा है कि उनका संकट या विफलता समग्र अर्थव्यवस्था को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकता है। इसे “Too Big to Fail (TBTF)” भी कहा जाता है।
  • उद्देश्य: D-SIB ढाँचा इस बात को सुनिश्चित करता है कि ये बैंक अधिक पूंजी और कड़ाई से नियामक निगरानी के अधीन रहें। इसका मुख्य उद्देश्य सिस्टमिक जोखिम को कम करना और मोरल हैजर्ड की समस्याओं को संबोधित करना है।
  • ढाँचा: RBI ने प्रत्येक D-SIB के लिए अतिरिक्त Common Equity Tier 1 (CET1) पूंजी निर्धारित की है, जो उनके Risk Weighted Assets (RWA) का एक प्रतिशत है। इसमें SBI: 0.80%, HDFC Bank: 0.40% और ICICI Bank: 0.20%। 
  • बकेट प्रणाली: D-SIBs को उनके Systemic Importance Score (SIS) के आधार पर अलग-अलग बकेट में रखा जाता है। उच्च बकेट में रखे गए बैंक को अधिक पूंजी आवश्यकता का पालन करना होता है।

घरेलू प्रणालीगत महत्त्वपूर्ण बैंक प्रणाली की शुरुआत:

RBI ने 2014 में D-SIB ढाँचा पेश किया। इसके तहत D-SIB बैंक के नाम सार्वजनिक किए गए। बैंक को उनके SIS के आधार पर बकेट में रखा गया और अतिरिक्त CET1 पूंजी की आवश्यकता निर्धारित की गई। SBI और ICICI Bank को 2015 और 2016 में D-SIB घोषित किया गया था, जबकि HDFC Bank को 2017 में शामिल किया गया। वैश्विक संदर्भ पर भी Global Systemically Important Banks (G-SIBs) सूची Basel Committee on Banking Supervision (BCBS) और Financial Stability Board (FSB) द्वारा तैयार की जाती है। वर्तमान में 30 G-SIBs हैं, जिनमें कोई भारतीय बैंक शामिल नहीं है। इनमें JP Morgan, HSBC, Bank of America, Deutsche Bank जैसी प्रमुख अंतरराष्ट्रीय बैंक शामिल हैं।

D-SIB का महत्व:

  • प्रणालीगत सुरक्षा: D-SIBs इतने बड़े और जटिल हैं कि उनकी विफलता पूरे वित्तीय तंत्र को प्रभावित कर सकती है। इनके लिए अतिरिक्त पूंजी और निगरानी सुनिश्चित करती है कि अर्थव्यवस्था में अचानक संकट न उत्पन्न हो।
  • वित्तीय मजबूती: इन बैंकों को अतिरिक्त CET1 पूंजी रखने का आदेश दिया जाता है, जिससे किसी भी अस्थिर परिस्थिति में वे सुधारित पूंजी संरचना के साथ सुरक्षित रूप से काम कर सकें।
  • निवेश प्रोत्साहन: इनकी स्थिति “Too Big to Fail” के कारण निवेशकों और बाजार को विश्वास देती है। इसका लाभ यह है कि ये बैंक वित्तीय लेनदेन में स्थिरता और निवेश आकर्षित करने में मददगार साबित होते हैं।

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