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भारत में पर्यावरणीय संकट और जैव-पुनरुद्धार (Environmental crisis and bio-regeneration in India) | Ankit Avasthi Sir

Environmental crisis and bio-regeneration in India

Environmental crisis and bio-regeneration in India

संदर्भ:

भारत आज ऐसे पर्यावरणीय संकट से गुजर रहा है, जिसे दशकों के औद्योगिक प्रदूषण, कीटनाशक अवशेष, तेल रिसाव, और भारी धातु विषाक्तता ने तीव्र बना दिया है। नदियों में प्रतिदिन लाखों लीटर बिना उपचारित अपशिष्ट डाला जा रहा है। इस स्थिति में जैव-पुनरुद्धार (Bioremediation) भारत के लिए एक सतत, सस्ता और वैज्ञानिक विकल्प बनकर उभर रहा है।

जैव-पुनरुद्धार (Bioremediation) क्या है?

    • परिचय: Bioremediation का अर्थ है— “जीव विज्ञान के माध्यम से जीवन की पुनर्स्थापना।” यह तकनीक सूक्ष्मजीवों, फफूँद, शैवाल और पौधों की प्राकृतिक क्षमता का उपयोग करके प्रदूषकों को कम हानिकारक पदार्थों में बदलती है।
  • जैव अपघटन: ये जैविक एजेंट तेल, कीटनाशक, प्लास्टिक, सॉल्वेंट, और भारी धातुओं को ऊर्जा स्रोत के रूप में उपयोग करते हैं और उन्हें जल, CO₂, एवं कार्बनिक अम्लों में परिवर्तित कर देते हैं। 
  • प्रकार: इन-सिटू (In situ): प्रदूषण स्थल पर ही उपचार और एक्स-सिटू (Ex situ): प्रदूषित मिट्टी/जल को हटाकर अलग से उपचार, फिर पुनः उपयोग।
  • लाभ: यह तकनीक पारंपरिक विधियों की तुलना में काफी सस्ती और ऊर्जा-कुशल है। यह मिट्टी की उर्वरता बढ़ाती है, जल की गुणवत्ता सुधारती है, और भारी खुदाई या मिट्टी हटाने की आवश्यकता कम करती है। बायोटेक्नोलॉजी, पर्यावरण इंजीनियरिंग और वेस्ट मैनेजमेंट में रोजगार के नए अवसर मिल सकते हैं।

Bioremediation कैसे काम करता है?

  • प्रदूषक की पहचान: Bioremediation की प्रक्रिया में सबसे पहले स्थल पर मौजूद प्रदूषक (Contaminants) की पहचान की जाती है, जैसे तेल, कीटनाशक, भारी धातुएं या औद्योगिक रसायन, ताकि आगे सही जैविक एजेंट चुने जा सकें।
  • उपयुक्त जैविक एजेंट: इसके बाद वैज्ञानिक ऐसे सूक्ष्मजीव (Microorganisms) चुनते हैं—जैसे बैक्टीरिया, फफूँद, शैवाल—जिनमें उस विशेष प्रदूषक को तोड़ने की क्षमता होती है, ताकि प्रक्रिया प्रभावी और सुरक्षित बने।
  • चयापचय क्रिया द्वारा अपघटन: चयनित सूक्ष्मजीव प्रदूषकों को ऊर्जा स्रोत की तरह उपयोग करते हुए उन्हें अपने चयापचय (Metabolism) के माध्यम से जल, CO₂ और कार्बनिक अम्लों जैसे सुरक्षित उत्पादों में बदल देते हैं।
  • इन-सिटू/एक्स-सिटू अनुप्रयोग: प्रदूषक की प्रकृति के अनुसार तकनीक को इन-सिटू, अर्थात स्थल पर ही उपचार, या एक्स-सिटू, यानी दूषित मिट्टी/जल को हटाकर अलग उपचार, के रूप में लागू किया जाता है।
  • पर्यावरणीय स्थितियों का अनुकूलन: सूक्ष्मजीवों की दक्षता बढ़ाने के लिए तापमान, pH, ऑक्सीजन, पोषक तत्वों जैसी पर्यावरणीय स्थितियों को संतुलित किया जाता है ताकि अपघटन प्रक्रिया तेज़ और स्थिर रहे।

भारत में Bioremediation की वर्तमान स्थिति:

  • भारत में Bioremediation धीरे-धीरे लागू हो रही है, हालांकि अभी यह मुख्यतः पायलट चरणों (Pilot Phases) में है। Department of Biotechnology (DBT) ने अपने Clean Technology Programme के तहत ऐसी कई परियोजनाओं को बढ़ावा दिया जा रहा है।
  • CSIR-National Environmental Engineering Research Institute (NEERI) को Bioremediation कार्यक्रमों का प्रस्ताव और कार्यान्वयन करने का दायित्व दिया गया है। इसके अलावा, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IITs) ने नई तकनीकों पर शोध किया है। कुछ शोधकर्ताओं ने कपास से बने नैनो-कॉम्पोज़िट विकसित किए हैं जो तेल रिसाव (Oil Spills) को अवशोषित कर सकते है।
  • देश में स्टार्टअप्स और निजी कंपनियां भी इस क्षेत्र में सक्रिय हो रही हैं। जैसे कि Biotech Consortium India Limited (BCIL) और Econirmal Biotech, जो माइक्रोबियल फॉर्मुलेशन के माध्यम से मिट्टी और अपशिष्ट जल उपचार में सहायता प्रदान कर रही हैं।
  • वर्तमान में Bioremediation का उपयोग व्यापक स्तर पर नहीं हुआ है, लेकिन यह राष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण रणनीति (National Pollution Control Strategy) के लिए सतत और लागत-कुशल विकल्प के रूप में उभर रहा है। इसके लिए आवश्यक है कि एक समन्वित योजना, स्पष्ट मानक, नियमावली और जनता की भागीदारी सुनिश्चित की जाए, ताकि भारत के औद्योगिक और शहरी प्रदूषण को प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया जा सके।

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