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पर्यावरणविद् सालुमरदा तिम्मक्का का निधन (Environmentalist Saalumarada Thimmakka passes away) | UPSC Preparation

Environmentalist Saalumarada Thimmakka passes away

Environmentalist Saalumarada Thimmakka passes away

संदर्भ:

बेंगलुरु की पद्मश्री सम्मानित पर्यावरणविद् सालूमरदा तिम्मक्का, जिन्होंने समाज को पर्यावरण संरक्षण का अनोखा संदेश देते हुए 385 बरगद के पेड़ लगाए थे, का 114 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उनका जीवन पर्यावरण के प्रति समर्पण, सामुदायिक सेवा और प्रकृति संरक्षण की भारतीय परंपरा का सशक्त प्रतीक माना जाता है।

सालूमरदा तिम्मक्का का परिचय:

प्रारंभिक जीवन:

तिम्मक्का का जन्म लगभग 1911 में कर्नाटक के तुमकुरु जिले के गूब्बी तालुक के एक ग्रामीण परिवार में हुआ। वे गरीबी और कठिन परिस्थितियों में पली-बढ़ीं। संतान न होने के कारण वे और उनके पति चिक्कैया जीवन में निराशा का सामना करते रहे, लेकिन इसी संघर्ष ने उन्हें प्रकृति के प्रति गहरा भावनात्मक लगाव दिया। उन्होंने पेड़ों को ही अपना परिवार माना और पौधों को संतान की तरह पाला।

पर्यावरण संरक्षण में योगदान:

तिम्मक्का का सबसे बड़ा योगदान 385 बरगद के वृक्षों का रोपण और संरक्षण है। उन्होंने अपने पति के साथ कुडुर से हुलिकल के बीच लगभग 4.5 किमी सड़क के किनारे पेड़ लगाए। वे प्रतिदिन किलोमीटरों पैदल चलकर पौधों को पानी देती थीं। कई वर्षों तक वे अपने निजी श्रम और सीमित आय से इन पौधों की देखभाल करती रहीं।

राष्ट्रीय स्तर पर पहचान:

तिम्मक्का की कार्यशैली औपचारिक योजनाओं से अलग थी—वे बिना सरकारी सहायता के केवल सामुदायिक जिम्मेदारी और प्रकृति-प्रेम से वानिकी करती रहीं। धीरे-धीरे वे “वृक्ष माता (Vruksha Maate)” के नाम से प्रसिद्ध हुईं। उनका काम कर्नाटक ही नहीं, पूरे भारत में ‘‘ग्रासरूट पर्यावरणवाद’’ का प्रतीक बन गया।

पुरस्कार और सम्मान:

उनके असाधारण योगदान को देखते हुए भारत सरकार ने वर्ष 2019 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया। कई राज्य सरकारों, पर्यावरण संगठनों और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने भी उन्हें सम्मानित किया। कर्नाटक सरकार ने 2025 में उनके सम्मान में वार्षिक ‘तिम्मक्का पर्यावरण पुरस्कार’ शुरू करने की घोषणा की और राज्यभर में 13,000 पौधे लगाने का निर्णय लिया।

सामाजिक महत्व:

तिम्मक्का ने यह सिद्ध किया कि पर्यावरण संरक्षण केवल बड़े बजट और बड़ी तकनीक का विषय नहीं है; यह व्यक्तिगत जिम्मेदारी और सामुदायिक भावना से भी किया जा सकता है। उन्होंने भारतीय ग्राम्य समाज में पर्यावरण चेतना को पुनर्जीवित किया और महिलाओं की भूमिका को नए रूप में प्रस्तुत किया।

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