Extension of the CPEC to Kabul
संदर्भ:
अफगानिस्तान, चीन और पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों ने आपसी सहयोग को नए आयाम देने पर सहमति जताई है। इस त्रिपक्षीय बैठक में खास तौर पर चीन–पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) को काबुल तक विस्तार देने पर सहमति बनी, जिससे अफगानिस्तान को क्षेत्रीय आर्थिक नेटवर्क से जोड़ने और व्यापारिक अवसरों को बढ़ाने का रास्ता खुलेगा।
त्रिपक्षीय बैठकों के उद्देश्य:
- संपर्क और आर्थिक एकीकरण:
- CPEC का विस्तार: चीन–पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) को अफगानिस्तान तक बढ़ाना, ताकि उसे मध्य एशियाई बाज़ारों से जोड़ा जा सके।
- रेलवे परियोजनाएँ: अफगानिस्तान और पाकिस्तान को जोड़ने वाली रेलवे लाइनों का निर्माण पूरा करना।
- खनिज संसाधन निवेश: अफगानिस्तान के खनिज संसाधनों की खोज और उनमें चीनी निवेश को बढ़ावा देना।
- राजनीतिक और कूटनीतिक सामान्यीकरण:
- अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच राजनयिक प्रतिनिधित्व (diplomatic representation) को मज़बूत करना।
- तालिबान सरकार को, वैश्विक मान्यता न होने के बावजूद, चीन की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) रूपरेखा में औपचारिक रूप से शामिल करना।
- सुरक्षा सहयोग:
- पाकिस्तान की चिंता: पाकिस्तान चाहता है कि अफगान तालिबान, अफगान धरती से संचालित TTP (Tehreek-e-Taliban Pakistan) पर कार्रवाई करे, जो अक्सर पाकिस्तानी सुरक्षा बलों पर हमले करता है।
- चीन की चिंता: चीन ने ETIM पर चिंता जताई है, क्योंकि उसके लड़ाके अफगानिस्तान की धरती से चीन पर हमले करते हैं।
चीन–पाकिस्तान–तालिबान से जुड़ी हालिया बैठक क्षेत्रीय स्थिरता और आर्थिक सहयोग के लिहाज से अहम मानी जा रही है।
- चीन के लिए: CPEC और BRI परियोजनाओं की सुरक्षा, अफगान खनिज संसाधनों तक पहुंच और मध्य एशिया से व्यापारिक जुड़ाव बढ़ाना।
- तालिबान प्रशासन के लिए: राजनीतिक मान्यता का अवसर, आर्थिक निवेश और क्षेत्रीय जुड़ाव के जरिए अलगाव कम करना।
- पाकिस्तान के लिए: TTP हमलों पर नियंत्रण हेतु दबाव बनाने का मंच, CPEC परियोजनाओं को पुनर्जीवित करना और मध्य एशिया के प्रवेश द्वार के रूप में भूमिका मजबूत करना।
भारत पर प्रभाव
- CPEC का विरोध– भारत हमेशा चीन–पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) का विरोध करता रहा है क्योंकि यह पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) से होकर गुजरता है। अफगानिस्तान तक इसके विस्तार से पाकिस्तान और चीन की स्थिति और मजबूत होती है, जिससे भारत के दावे कमजोर पड़ते हैं।
- रणनीतिक हाशिए पर जाना– अफगानिस्तान में भारत के ऐतिहासिक योगदान (संसद भवन, अस्पताल, सड़कें, शिक्षा आदि) के बावजूद, यह त्रिपक्षीय ढांचा भारत को पूरी तरह अलग कर देता है।
- सुरक्षा के खतरे– यदि तालिबान को बिना किसी शर्त के अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिलती है, तो चीन–पाकिस्तान–अफगानिस्तान की निकटता कट्टरपंथी समूहों को और ताकत दे सकती है, जो भारत के खिलाफ सक्रिय हैं।
- कनेक्टिविटी की प्रतिस्पर्धा– चीन की पश्चिम की ओर कनेक्टिविटी बनाने की पहल भारत की चाबहार पोर्ट परियोजना और अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) जैसी योजनाओं के लिए खतरा बनती है।
निष्कर्ष:
चीन–पाकिस्तान–अफ़ग़ानिस्तान त्रिपक्षीय वार्ता यह दर्शाती है कि चीन दक्षिण एशिया में अपने आर्थिक और सुरक्षा हितों को मज़बूत करने की दिशा में सक्रिय है। भारत के लिए यह आवश्यक है कि वह अपनी कूटनीति को संतुलित तरीके से संचालित करे—वैश्विक और क्षेत्रीय शक्तियों से संवाद बनाए रखते हुए वैकल्पिक connectivity (जैसे चाबहार पोर्ट और INSTC) तथा security frameworks को आगे बढ़ाए। इस प्रकार ही भारत अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा सुनिश्चित कर पाएगा।