Genome Edited Rice Varieties
संदर्भ:
ICAR ने दुनिया की पहली जीनोम–संपादित (genome-edited) धान की किस्में विकसित की हैं, जिनमें अधिक उपज, सूखा और लवणता सहनशीलता, तथा नाइट्रोजन उपयोग दक्षता में सुधार जैसी विशेषताएं हैं, जिससे ये किस्में जल-संरक्षण और जलवायु के अनुकूल बनती हैं।
‘Kamala’ (DRR Dhan 100) और ‘Pusa DST Rice 1’ के बारे में जानकारी:
विकास और एजेंसियाँ:
- Kamala (DRR Dhan 100):
- विकसित: ICAR-Indian Institute of Rice Research (IIRR), हैदराबाद
- आधार: Samba Mahsuri
- विशेषताएँ: अधिक उपज, जल्दी पकने वाली, सूखा-प्रतिरोधी
- Pusa DST Rice 1:
- विकसित: ICAR-Indian Agricultural Research Institute (IARI), दिल्ली
- आधार: MTU1010
- विशेषताएँ: सूखा व लवणता सहनशीलता (salinity tolerance)
- प्रौद्योगिकी: दोनों किस्में CRISPR-Cas9 आधारित जीनोम संपादन से बनी हैं (विशेष रूप से SDN1 तकनीक द्वारा)।
इनमें कोई विदेशी डीएनए नहीं डाला गया है।
- अनुमोदन:
- Institutional Biosafety Committees (IBC)
- Review Committee on Genetic Manipulation (RCGM)
(Relaxed genome-editing नियमों के तहत)
मुख्य लाभ:
- उपज में वृद्धि (Yield Boost):
- Kamala:
- Samba Mahsuri की तुलना में 19% अधिक उपज
- औसत: 37 टन/हेक्टेयर
- अधिकतम: 9 टन/हेक्टेयर तक
- Pusa DST Rice 1: MTU1010 की तुलना में 6% से 30.4% अधिक उपज (तनाव की स्थिति में)
- Kamala:
- जलवायु अनुकूलता (Climate Resilience):
- Kamala: सूखा-प्रतिरोध और जल्दी परिपक्वता
- Pusa DST: लवणता + सूखा-प्रतिरोध (खारे/अल्कलाइन/तटीय क्षेत्रों हेतु उपयुक्त)
- जल संरक्षण (Water Saving):
- Kamala 20 दिन पहले पक जाती है → 3 सिंचाई कम लगती है
- इससे 7,500 मिलियन घन मीटर पानी की बचत
- उत्सर्जन में कमी (Emission Reduction):
- यदि 5 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में उगाई जाए →
32,000 टन ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी (20%)
- यदि 5 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में उगाई जाए →
- खाद्य सुरक्षा में योगदान:
- बेहतर धान उत्पादन → भारत की औसत उपज में सुधार
- विशेष महत्व क्योंकि चावल कुल खाद्यान्न का 40% हिस्सा है
निष्कर्ष: ये दोनों जीन-संपादित धान किस्में भारत की खाद्य सुरक्षा, जल संरक्षण और जलवायु लचीलापन सुनिश्चित करने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम हैं।