Hansa-3 NG Trainer Aircraft
संदर्भ:
केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री ने CSIR–National Aerospace Laboratories (NAL), बेंगलूरु में भारत का पहला स्वदेशी उत्पादन-संस्करण पायलट ट्रेनर विमान हंसा-3 NG लॉन्च किया। यह भारत को वैश्विक एविएशन हब बनाने की दिशा में निर्णायक कदम है। यह मशीन भारतीय नागरिक उड्डयन पारिस्थितिकी तंत्र में पहला ऐसा मंच है, जिसे सीरियल प्रोडक्शन के लिए तैयार घोषित किया गया है।
हंसा-3 NG क्या हैं?
- परिचय: Hansa-3 NG भारत का पहला पूरी तरह स्वदेशी, द्वि-सीटर, ऑल-कॉम्पोज़िट ट्रेनर एयरक्राफ्ट है, जिसे विशेष रूप से PPL (Private Pilot Licence) और CPL (Commercial Pilot Licence) के प्रशिक्षण के लिए विकसित किया गया है।
- उद्देश्य: CSIR–NAL द्वारा डिज़ाइन किए गए इस विमान का विकास भारतीय उड़ान प्रशिक्षण संस्थानों की बढ़ती आवश्यकताओं को पूरा करने के उद्देश्य से किया गया है।
Hansa-3 NG विमान की प्रमुख विशेषताएँ:
- हल्का समग्र (Composite) एयरफ्रेम: Hansa-3 NG का एयरफ्रेम पूर्णतः लाइटवेट कॉम्पोजिट सामग्री से बना है, जिससे विमान अधिक टिकाऊ, जंग-रोधी और ईंधन-कुशल बनता है।
- आधुनिक ग्लास कॉकपिट: विमान में अत्याधुनिक डिजिटल ग्लास कॉकपिट लगाया गया है, जो सभी उड़ान जानकारी एक ही स्क्रीन पर प्रदान करता है। इससे प्रशिक्षु पायलटों की सिचुएशनल अवेयरनेस बढ़ती है।
- उत्कृष्ट दृश्यता वाला बबल कैनोपी: इसमें चौड़ा, पारदर्शी बबल कैनोपी दिया गया है, जिससे पायलट को 360-डिग्री दृश्यता मिलती है। यह टेक-ऑफ, लैंडिंग और ट्रेनिंग मैन्यूवर्स के दौरान सुरक्षा और नियंत्रण को काफी बढ़ाता है।
- सुरक्षित निम्न-गति (Low-Speed) संचालन क्षमता: Hansa-3 NG को विशेष रूप से स्थिर और सुरक्षित लो-स्पीड हैंडलिंग के लिए डिजाइन किया गया है। यह गुण शुरुआती प्रशिक्षुओं के लिए दुर्घटना जोखिम को कम करता है।
- ईंधन-कुशल Rotax इंजन: विमान Rotax पावरप्लांट से संचालित है, जो अपनी उच्च ईंधन दक्षता और कम परिचालन लागत के लिए प्रसिद्ध है। यह इंजन विश्व भर के ट्रेनिंग विमानों में उपयोग होता है और विश्वसनीयता के लिए जाना जाता है।
- उन्नत नेविगेशन और सुरक्षा सिस्टम: Hansa-3 NG में GPS आधारित नेविगेशन, ILS-रेडी सिस्टम, ट्रांसपोंडर, रेडियो कम्युनिकेशन और Emergency Locator Transmitter (ELT) शामिल हैं।
- मजबूत लैंडिंग गियर: विमान का लैंडिंग गियर ट्रेनिंग फ्लाइंग में होने वाले बार-बार के हार्ड लैंडिंग को ध्यान में रखकर मजबूत बनाया गया है।
- कम रखरखाव: कॉम्पोजिट एयरफ्रेम और क्विक-एक्सेस इंजन पैनल विमान के रखरखाव को सरल और कम लागत वाला बनाते हैं। इससे फ्लाइंग स्कूलों के लिए ऑपरेटिंग खर्च काफी कम हो जाता है।
Hansa-3 NG जैसे स्वदेशी विमानन कार्यक्रमों का महत्व:
- भारत की पायलट-प्रशिक्षण क्षमता में वृद्धि: आगामी 15–20 वर्षों में भारत को लगभग 30,000 नए पायलटों की आवश्यकता होगी, जिसके कारण प्रशिक्षण विमान की मांग लगातार बढ़ेगी। Hansa-3 NG की सीरियल प्रोडक्शन इस निर्भरता को कम करेगी।
- स्वदेशी एयरोस्पेस विनिर्माण को बढ़ावा: यह परियोजना भारत के एयरोस्पेस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता (Atmanirbhar Bharat) के लक्ष्य को सुदृढ़ करती है। Hansa-3 NG, SARAS Mk-2, हाई-एल्टीट्यूड प्लेटफॉर्म्स (HAP) और स्वदेशी UAVs का विकास यह दर्शाता है कि भारत अब न सिर्फ तकनीक का उपभोक्ता है, बल्कि उन्नत विमानन प्रणालियों का डिज़ाइनर और निर्माता भी बन रहा है।
- किफायती प्रशिक्षण इकोसिस्टम का निर्माण: अब तक भारत विदेशी निर्माताओं से छोटे प्रशिक्षण विमान आयात करता रहा है, जिनकी कीमत अधिक होती है। स्वदेशी उत्पादन क्षमता के साथ, भारत को लाखों डॉलर समतुल्य विदेशी मुद्रा बचत का लाभ मिलेगा।
- उद्योग-सहभागिता और MSME वृद्धि को प्रोत्साहन: इस परियोजना के साथ उद्योग साझेदार आंध्र प्रदेश में 100 विमानों प्रति वर्ष की क्षमता वाला बड़ा विनिर्माण केंद्र स्थापित कर रहे हैं। इससे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हजारों रोजगार उत्पन्न होंगे, साथ ही भारत में MSME- आधारित एयरोस्पेस घटक निर्माण को नई गति मिलेगी।
- 2035 तक ग्लोबल एविएशन हब बनाने में निर्णायक: सरकार का लक्ष्य है कि भारत 2035 तक विश्व का अग्रणी विमानन केंद्र बने। Hansa-3 NG जैसे एयरक्राफ्ट के कारण भारत वैश्विक बाजारों में प्रतिस्पर्धी बन सकेगा। यह प्रगति पूर्ण विकसित राष्ट्र “Viksit Bharat 2047” के लक्ष्य की वैज्ञानिक और औद्योगिक पृष्ठभूमि को मजबूती प्रदान करेगी।

