Increasing trend of drug abuse among school students

संदर्भ:
हाल ही में नेशनल मेडिकल जर्नल ऑफ इंडिया में प्रकाशित AIIMS समर्थित 10-शहर अध्ययन (2025) के अनुसार, भारत में लगभग 11 वर्ष की उम्र से ही स्कूली बच्चे नशीले पदार्थों का प्रयोग आरंभ कर देते हैं। यह प्रवृत्ति न केवल मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करती है, बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक ताने-बाने पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
अध्ययन के प्रमुख बिंदु :
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AIIMS द्वारा 5,920 छात्रों पर आधारित सर्वेक्षण में पाया गया कि नशीली पदार्थों के उपयोग की औसत आयु 12.9 वर्ष है।
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कई मामलों में छात्र 11 से 14 वर्ष की उम्र में प्रयोग आरंभ करते पाए गए।
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अध्ययन के अनुसार इनहेलेंट्स का उपयोग सबसे कम आयु 11.3 वर्ष में शुरू होता है।
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सर्वाधिक उपयोग किए गए पदार्थों में तंबाकू (4%), शराब (3.8%), ओपिऑइड (2.8%), कैनबिस (2%), और इनहेलेंट्स (1.9%) शामिल हैं।
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यह चिंताजनक है कि अधिकांश छात्र इन पदार्थों के हानिकारक प्रभावों से 90% तक परिचित होने के बावजूद इनका प्रयोग करते हैं।
मुख्य कारक:
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सामाजिक दबाव: अध्ययन में पाया गया कि पीयर प्रेशर किशोरों में नशा शुरू होने का सबसे प्रमुख कारण है। कई छात्र अपने साथियों के साथ रहने या सामाजिक स्वीकृति पाने के लिए नशीले पदार्थों का प्रयोग शुरू करते हैं।
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परिवारिक वातावरण: परिवार में नशा उपयोग, घरेलू तनाव, अभिभावक की अनुपस्थिति या निगरानी की कमी बच्चों की नशा-प्रवृत्ति को कई गुना बढ़ा देती है। जिससे छात्रों में अवसाद, चिंता, भावनात्मक अस्थिरता और व्यवहारगत समस्याएँ पाई जाती है।
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उत्सुकता: फिल्मों और सोशल मीडिया में नशे का ग्लैमराइजेशन किशोरों में प्रयोग की प्रवृत्ति को मजबूत करता है। कई छात्र जिज्ञासा या रोमांच के कारण प्रयोग आरंभ करते हैं।
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भारत की भौगोलिक संवेदनशीलता: भारत का स्थान गोल्डन क्रेसेन्ट और गोल्डन ट्रायंगल जैसी वैश्विक अफीम उत्पादक क्षेत्रों के बीच है, जिससे देश में अवैध ड्रग्स की उपलब्धता आसान हो जाती है।
भारत सरकार के प्रयास:
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राष्ट्रीय नशा-नियंत्रण तंत्र : नेशनल एक्शन प्लान फॉर ड्रग डिमांड रिडक्शन (NAPDDR) के अंतर्गत नशा मुक्त भारत अभियान, इंटीग्रेटेड रिहैबिलिटेशन सेंटर्स, अडिक्शन ट्रीटमेंट फैसिलिटीज, ODICs और CPLI केंद्र, तथा राष्ट्रीय डिअडिक्शन हेल्पलाइन 14446 जैसे मजबूत उपाय लागू किए गए हैं। इनका मुख्य उद्देश्य स्कूलों, कॉलेजों, समुदायों और परिवारों में नशा-मुक्त व्यवहार विकसित करना है।
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आपूर्ति कम करने के उपाय (MHA): NDPS अधिनियम 1985, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) और NCORD तंत्र अवैध ड्रग ट्रेड पर निगरानी रखते हैं। हाल के वर्षों में डार्कनेट और क्रिप्टोकरेंसी आधारित ड्रग तस्करी पर विशेष फोकस बढ़ा है।
