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संयुक्त राष्ट्र में भारत की बढ़ती अनुपस्थिति (India growing absence at the United Nations) | UPSC

India growing absence at the United Nations

India growing absence at the United Nations

India growing absence at the United Nations – 

संदर्भ:

भारत के संयुक्त राष्ट्र (UN) में मतदान पैटर्न में हाल के वर्षों में उल्लेखनीय बदलाव देखा जा रहा है। जहां पहले भारत स्पष्ट पक्ष लेता था, अब वह कई विवादास्पद या संवेदनशील प्रस्तावों पर मतदान से अनुपस्थित (abstain) रहने का विकल्प चुन रहा है। वर्ष 2024–25 में भारत द्वारा अनुपस्थित रहने की दर अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है, जो यह दर्शाता है कि भारत अपनी विदेश नीति में बदलते वैश्विक समीकरणों के बीच संतुलन साधने की रणनीति अपना रहा है।

भारत की हालिया उल्लेखनीय असंलग्नताएँ (Recent Notable Abstentions):

  1. रूसयूक्रेन संघर्ष (2022):
  • भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद दोनों में प्रस्तावों से अलगाव (abstain) किया।
  • संकेत: भारत ने संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के महत्व को दोहराया, लेकिन रूस की सीधी निंदा से बचा।
  1. इस्राइलफिलिस्तीन मुद्दा:
  • भारत ने बार-बार इस्राइल की निंदा या गाजा के पक्ष में प्रस्तावों पर मतदान से परहेज़ किया।
  • तर्क: भारत ने कहा कि यह कदम संतुलित दृष्टिकोण और आतंकवाद जैसे मुद्दों की अनदेखी के विरोध में लिया गया।
  1. म्यांमार:
  • 2017 से म्यांमार में रोहिंग्या संकट और सैन्य तख्तापलट से जुड़े कई प्रस्तावों पर भारत ने असंलग्नता अपनाई।
  1. चीन के मानवाधिकार रिकॉर्ड पर प्रस्ताव:
  • भारत ने तिब्बत, शिनजियांग और हांगकांग में मानवाधिकार उल्लंघन से जुड़े प्रस्तावों से दूरी बनाए रखी
  • कारण: सीमावर्ती पड़ोसी से टकराव टालना
  1. अन्य मुद्दे:
  • तालिबान और अफगानिस्तान: भारत ने तालिबान शासन से जुड़े कुछ प्रस्तावों पर वोटिंग में भाग नहीं लिया।
  • इस्लामोफोबिया: UN में इस्लामोफोबिया के विरुद्ध प्रस्ताव पर भारत ने मतदान से दूरी बनाई।
  • हथियार प्रतिबंध (Arms Embargo): कुछ हथियार प्रतिबंध प्रस्तावों पर भी भारत ने असंलग्न रुख अपनाया।

भारत की रणनीतिक असंलग्नता की नीति: प्रमुख कारण

  1. ध्रुवीकृत वैश्विक व्यवस्था:
  • अमेरिका, चीन और रूस जैसे प्रमुख शक्तियों के बीच बढ़ते तनाव ने वैश्विक सहमति की संभावना को कम कर दिया है।
  • कई देशों पर “किसी एक पक्ष को चुनने” का दबाव बढ़ा है।
  • भारत एक उभरती वैश्विक शक्ति के रूप में स्वायत्तता बनाए रखना चाहता है, न कि कठोर गुटबंदियों में बंधना।
  1. संयुक्त राष्ट्र प्रस्तावों की जटिलता:
  • आधुनिक UN प्रस्तावों में कई बार विरोधाभासी प्रावधान होते हैं — जिससे स्पष्टहांयानामतदान जोखिमपूर्ण हो सकता है।
  • ऐसे में असंलग्नता (Abstention) भारत के लिए एक व्यावहारिक कूटनीतिक उपकरण बन गई है।
  1. रणनीतिक स्वायत्तता का प्रदर्शन:
  • भारत के लिए असंलग्नता केवल निष्क्रियता नहीं, बल्कि परिष्कृत कूटनीतिक संकेत है।
  • यह भारत को विवादास्पद या मूल्य आधारित मुद्दों पर सूक्ष्म निर्णय लेने की स्वतंत्रता देता है।
  • यह नीति शीत युद्ध काल की गुटीय राजनीति से दूरी का संकेत भी देती है, भले ही इससे सहयोगियों में कुछ अस्पष्टता उत्पन्न हो।
  1. मिडल पॉवर डिप्लोमेसी:
  • भारत अब खुद को मध्य शक्ति” (Middle Power) के रूप में प्रस्तुत कर रहा है।
  • असंलग्नता उसे:
    • विरोधी खेमों के साथ संतुलन बनाने,
    • अपनी प्राथमिकताओं को उभारने और
    • राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाने की छूट देती है।

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