India trade deficit in November 2025

संदर्भ:
नवंबर 2025 में भारत के वस्तु व्यापार घाटे में उल्लेखनीय सुधार दर्ज किया गया। अक्टूबर 2025 में यह 41.68 अरब डॉलर के उच्च स्तर पर था, जबकि अब यह घटकर 24.53 अरब डॉलर रह गया। यह सुधार मुख्यतः रिकॉर्ड निर्यात तथा सोना और कोयला आयात में तेज गिरावट के कारण हुआ।
नवंबर 2025 के मुख्य आंकड़े:
- नवंबर 2025 में भारत का व्यापार घाटा 24.53 अरब डॉलर रहा। वस्तु निर्यात 38.13 अरब डॉलर तक पहुंच गया, जो वार्षिक आधार पर 23.15 प्रतिशत की वृद्धि है और पिछले 10 वर्षों का उच्चतम स्तर है।
- वहीं वस्तु आयात 62.66 अरब डॉलर रहा, जिसमें 1.88 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। इसके अतिरिक्त सेवा क्षेत्र अधिशेष लगभग 17.9 अरब डॉलर आंका गया।
व्यापार घाटा घटने के प्रमुख कारण:
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निर्यात में तेज उछाल: भारत के इंजीनियरिंग उत्पाद, इलेक्ट्रॉनिक्स, रत्न और आभूषण, तथा फार्मास्यूटिकल्स के निर्यात में मजबूत वृद्धि दर्ज हुई। अमेरिका और चीन जैसे प्रमुख बाजारों में निर्यात बढ़ा, जो वैश्विक अनिश्चितताओं के बावजूद भारतीय निर्यात की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता को दर्शाता है।
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आयात में संकुचन: त्योहारी मांग के कम होने से सोने का आयात घटा। इसके साथ ही अंतरराष्ट्रीय कीमतों में नरमी के कारण कच्चे तेल और कोयले का आयात भी कम हुआ। इससे कुल आयात बिल पर दबाव घटा।
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अमेरिकी शुल्क: हालांकि अमेरिका द्वारा लगाए गए शुल्क और वैश्विक व्यापार तनाव बने हुए हैं, फिर भी भारत का निर्यात अमेरिका में स्थिर रहा। यह भारतीय निर्यातकों की लचीलापन और विविधीकरण रणनीति को दर्शाता है।
व्यापार घाटा क्या है?
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परिभाषा: जब किसी देश का आयात उसके निर्यात से अधिक होता है, तो उसे व्यापार घाटा कहा जाता है। यह स्थिति चालू खाता घाटे को बढ़ा सकती है और मुद्रा विनिमय दर तथा विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव डालती है।
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प्रमुख आयात और निर्यात: भारत के प्रमुख आयातों में कच्चा तेल, इलेक्ट्रॉनिक्स, सोना, रसायन और मशीनरी शामिल हैं। वहीं निर्यात में सेवाएं, इंजीनियरिंग वस्तुएं, दवाइयां, और रत्न एवं आभूषण प्रमुख हैं।
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देशवार व्यापार संतुलन: चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा सबसे अधिक है। अमेरिका के साथ भारत को अधिशेष प्राप्त होता है। यूएई, रूस, सऊदी अरब और इराक के साथ ऊर्जा आयात के कारण घाटा बना रहता है।
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नीतिगत पहल: मेक इन इंडिया, उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (PLI) और मुक्त व्यापार समझौते घरेलू विनिर्माण बढ़ाने और आयात निर्भरता कम करने का प्रयास कर रहे हैं।
