India will buy Russian oil despite Trump’s threat
India will buy Russian oil despite Trump’s threat –
संदर्भ:
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की चेतावनी के बावजूद भारत ने स्पष्ट किया है कि वह रूस से तेल आयात जारी रखेगा। भारतीय विदेश मंत्रालय ने बयान जारी करते हुए कहा कि रूस के साथ भारत के संबंध “स्थिर और समय की कसौटी पर खरे” रहे हैं, और इन्हें किसी तीसरे देश के नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए। भारत के इस रुख को रणनीतिक स्वतंत्रता की पुन: पुष्टि के रूप में देखा जा रहा है।
भारत रूस से अधिक तेल क्यों खरीद रहा है?
- गंभीर मूल्य छूट: रूसी कच्चा तेल वैश्विक बाजार कीमतों की तुलना में काफी सस्ता मिल रहा है। वित्त वर्ष 2024-25 में भारत ने रूस से 9 बिलियन डॉलर मूल्य का खनिज ईंधन आयात किया, जबकि 2020-21 में यह आंकड़ा सिर्फ 2.1 बिलियन डॉलर था।
- ऊर्जा सुरक्षा को प्राथमिकता: भारत के लिए सस्ती और भरोसेमंद ऊर्जा सुनिश्चित करना आर्थिक स्थिरता और उपभोक्ता हितों के लिए अत्यंत आवश्यक है।
- संयुक्त राष्ट्र द्वारा कोई प्रतिबंध नहीं: रूसी तेल पर संयुक्त राष्ट्र द्वारा कोई प्रतिबंध नहीं है, इसलिए भारत इसका वैध रूप से व्यापार कर सकता है। अमेरिका और यूरोपीय संघ के प्रतिबंधों के विपरीत, भारत इसे अंतरराष्ट्रीय कानून और नैतिक आधार पर सही ठहराता है।
- रणनीतिक व्यवहारिकता: भारत एक गैर-पक्षपाती (non-aligned) और हित-आधारित (interest-driven) विदेश नीति अपनाता है, जिसमें राष्ट्रीय आवश्यकताओं को किसी गुट राजनीति (bloc politics) से ऊपर रखा जाता है।
भारत पर अमेरिका और NATO का दबाव:
- व्यापारिक दंड की धमकी: अमेरिका ने भारतीय वस्तुओं पर 25% टैरिफ लगाया है और संकेत दिया है कि रूस से ऊर्जा व्यापार पर अतिरिक्त दंड भी लगाया जा सकता है।
- द्वितीयक प्रतिबंधों की चेतावनी: NATO महासचिव मार्क रुटे ने भारत, चीन और ब्राज़ील को रूस की युद्धकालीन अर्थव्यवस्था के समर्थन को लेकर चेतावनी दी है। रूस से व्यापार जारी रखने वाले देशों पर द्वितीयक प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं।
- अमेरिकी विधायी दबाव: अमेरिकी कांग्रेस में एक प्रस्तावित विधेयक के अनुसार, रूस से व्यापार करने वाले देशों से आने वाले पेट्रोलियम और यूरेनियम उत्पादों पर 500% शुल्क लगाया जा सकता है। इससे भारत के निर्यात पर गंभीर असर हो सकता है।
- रणनीतिक रिश्तों पर असर: रूस के साथ व्यापार जारी रखने से भारत के पश्चिमी साझेदारों के साथ रक्षा और तकनीकी सहयोग में तनाव आ सकता है। पश्चिमी गुट की रूस-विरोधी एकजुटता के बीच भारत के लिए संतुलन बनाए रखना कठिन हो रहा है।
- ऊर्जा स्रोतों में विविधता की माँग: पश्चिमी दबाव के चलते भारत को रूसी तेल पर निर्भरता कम करने और ऊर्जा आपूर्ति के विविध विकल्प तलाशने के लिए मजबूर किया जा रहा है।
भारत–रूस व्यापार और अमेरिका की चिंता:
- रिकॉर्ड व्यापार: भारत और रूस के बीच व्यापार 2024–25 में $68.7 अरब तक पहुंच गया — यह महामारी-पूर्व स्तर से लगभग 6 गुना अधिक है।
- मुख्य आयात: भारत रूस से कच्चा तेल, पेट्रोलियम उत्पाद, उर्वरक और कोयला आयात करता है। 2022 में पश्चिमी प्रतिबंधों के बाद तेल खरीद में भारी वृद्धि हुई।
- मई 2025 का आंकड़ा: अकेले मई 2025 में भारत ने रूस से $4.42 अरब का कच्चा तेल आयात किया।
- संभावित अमेरिकी प्रतिबंधों पर भारत की स्थिति: भारत का कहना है कि उसने तेल आपूर्ति के स्रोतों में विविधता लाई है और ज़रूरत पड़ने पर आपूर्तिकर्ता बदल सकता है।
- ट्रंप की धमकियों पर संदेह: पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा कड़े प्रतिबंधों की चेतावनी को लेकर संदेह है, क्योंकि इससे भारत-अमेरिका व्यापार समझौता प्रभावित हो सकता है।
- चीन का प्रभाव: रूस का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार चीन है, जिससे अमेरिका के लिए दोहरे मोर्चे पर तनाव बढ़ाना जोखिमपूर्ण हो सकता है।
- वैश्विक बाज़ार पर असर: रूस से तेल खरीदने वाले देशों पर प्रतिबंध लगाने से वैश्विक ऊर्जा बाज़ार अस्थिर हो सकता है, जिससे अमेरिका और उसके सहयोगियों को भी नुकसान हो सकता है।
समाधान:
- रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखें: किसी भी गुट से जुड़ने के बजाय, राष्ट्रीय हितों के आधार पर स्वतंत्र विदेश नीति अपनाई जाए।
- डिप्लोमैटिक संवाद बढ़ाएं: पश्चिमी देशों से संवाद कर अपनी ऊर्जा जरूरतें स्पष्ट करें और संभावित प्रतिबंधों से छूट की मांग करें।
- आंतरिक मजबूती बढ़ाएं: नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश, तेल भंडारण क्षमता और रिफाइनिंग इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत किया जाए।
- संतुलित संबंध बनाए रखें: रूस और पश्चिम दोनों से आर्थिक सहयोग को इस तरह संतुलित रखें कि किसी रणनीतिक साझेदारी पर असर न पड़े।