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संदर्भ:
भारतीय उद्योग को नवाचार की आवश्यकता: हाल ही में भारतीय कॉर्पोरेट नेताओं द्वारा अधिक कार्य घंटे की अपील ने देश के श्रम बाजार की गहरी संरचनात्मक समस्याओं को उजागर किया है।
भारतीय उद्योग को नवाचार की आवश्यकता क्यों?
भारत में सस्ते श्रम से जुड़ी समस्याएँ:
- लंबे कार्य घंटे:
- प्रवासी औद्योगिक श्रमिक 11-12 घंटे तक काम करते हैं, खासकर मांग बढ़ने पर।
- इससे उनका शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है।
- अनौपचारिक रोजगार:
- 2023-24 के Periodic Labour Force Survey के अनुसार, केवल 21.7% श्रमिक नियमित वेतनभोगी नौकरियों में हैं।
- इनमें से भी लगभग आधे श्रमिकों को कोई अनुबंध, वेतन अवकाश या सामाजिक सुरक्षा नहीं मिलती।
- ठेकेदारी प्रथा के कारण शोषण:
- 2011-12 से कारखाना क्षेत्र में शामिल होने वाले 56% श्रमिक ठेका श्रमिक हैं।
- उन्हें कानूनी सुरक्षा नहीं मिलती और उनकी मजदूरी भी स्थायी कर्मचारियों से कम होती है।
- प्रवासी श्रमिकों की असुरक्षा: सामाजिक स्थिति, संपत्ति की कमी और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं की अनुपलब्धता के कारण प्रवासी श्रमिक कई तरह की असुरक्षाओं का सामना करते हैं।
- लाभ कमाने की प्रवृत्ति:
- उद्योगों का मुख्य लक्ष्य लाभ बढ़ाना होता है, न कि श्रमिकों का कल्याण।
- 2019-20 में कारखाना क्षेत्र में लाभ हिस्सेदारी 31.6% थी, जो 2021-22 में बढ़कर 46.4% हो गई।
भारत में वस्त्र उद्योग की स्थिति:
भारत के वस्त्र उद्योग की चुनौतियाँ–
- सस्ते श्रम पर अत्यधिक निर्भरता: भारत का वस्त्र उद्योग सस्ते श्रमिकों पर अधिक निर्भर है, जिससे आधुनिकीकरण और नवाचार बाधित हो रहा है।
- वैश्विक बाजार में सीमित वृद्धि: पिछले दो दशकों में भारत का वैश्विक वस्त्र निर्यात 1% पर स्थिर रहा है, जबकि चीन, बांग्लादेश और वियतनाम ने तकनीकी उन्नति और उत्पादकता बढ़ाने वाले निवेश के कारण तेजी से प्रगति की है।
- प्रतिस्पर्धात्मकता में गिरावट: भारतीय निर्माता कम मजदूरी की प्रतिस्पर्धा में फंसे हुए हैं, जिससे वे वैश्विक बाजार में पिछड़ रहे हैं।
- अन्य उद्योगों में भी यही समस्या: केवल वस्त्र उद्योग ही नहीं, बल्कि आईटी और अन्य नई पीढ़ी के उद्योगों में भी यही स्थिति है। कौशल विकास औरतकनीकी अवसंरचना में निवेश की कमी से उनकी संभावनाएँ सीमित हो रही हैं।
- नवाचार के बजाय श्रम–आधारित मॉडल: उद्योग जगत को उच्च मूल्य वाले, नवाचार-आधारित मॉडल की ओर बढ़ना चाहिए, लेकिन इसके बजाय वे कम मजदूरी और अधिक कार्य घंटों पर निर्भर हैं।
भारत में नवाचार में पिछड़ते उद्योग:
- कम R&D निवेश– भारत का GERD सिर्फ 65% है, जबकि चीन (2.4%) और दक्षिण कोरिया (4.8%) आगे हैं। उदाहरण: भारतीय फार्मा उद्योग जेनेरिक दवाओं में मजबूत, लेकिन नवाचार में कमजोर।
- सस्ते श्रम पर निर्भरता– भारतीय उद्योग तकनीकी उन्नयन की बजाय सस्ते श्रमिकों पर निर्भर हैं। उदाहरण: वस्त्र निर्यात में भारत (1%) पिछड़ा, जबकि बांग्लादेश (7.9%) और वियतनाम (6.4%) आगे।
- उद्योग–अकादमी सहयोग की कमी– कम पेटेंट और शोध सहयोग नवाचार को रोकता है। उदाहरण: 2021 में भारत में सिर्फ 36 पेटेंट उद्योग-शिक्षा साझेदारी से बने, जबकि चीन में 5000+।
- सरकारी प्रोत्साहन की कमी– R&D केंद्रित नीतियाँ कमजोर। उदाहरण: चीन की “Made in China 2025” नवाचार को बढ़ावा देती है, जबकि भारत की PLI योजना सिर्फ उत्पादन पर केंद्रित।
- SMEs के लिए वित्तीय बाधाएँ– नवाचार और तकनीकी उन्नयन में निवेश की चुनौती। उदाहरण: CGTMSE योजना के बावजूद, केवल 15% MSMEs को औपचारिक ऋण।
नई औद्योगिक रणनीति की आवश्यकता:
- तकनीक और स्वचालन को अपनाना– उन्नत निर्माण तकनीकों, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और स्वचालन को अपनाकर उत्पादन क्षमता बढ़ाई जा सकती है, जिससे कार्य के घंटे बढ़ाने की आवश्यकता नहीं होगी।
- कौशल विकास को प्राथमिकता देना– शिक्षा और व्यावसायिक प्रशिक्षण के माध्यम से श्रमिकों के कौशल को बढ़ाना आवश्यक है, जिससे एक सक्षम और कुशल कार्यबल तैयार हो सके।
- मजदूर कानूनों और सुरक्षा उपायों को सशक्त बनाना– उचित वेतन, नौकरी की सुरक्षा और सामाजिक लाभों को लागू करने से न केवल जीवन स्तर में सुधार होगा बल्कि घरेलू उपभोग को भी बढ़ावा मिलेगा।
- औद्योगिक इकाइयों का औपचारिककरण – व्यवसायों को औपचारिक क्षेत्र में शामिल करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, जिससे पारदर्शिता बढ़ेगी, श्रमिकों को बेहतर वेतन मिलेगा और स्थायी रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे।