Indigenous ASW ship Mahe

संदर्भ:
भारतीय नौसेना 24 नवंबर 2025 को मुंबई स्थित नेवल डॉकयार्ड में स्वदेशी Anti-Submarine Warfare Shallow Water Craft (ASW-SWC) ‘माहे’ को कमीशन करने जा रही है। यह कदम तटीय रक्षा क्षमता को सुदृढ़ बनाने और आत्मनिर्भर भारत के तहत स्वदेशी रक्षा उत्पादन को प्राथमिकता देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।
एंटी-सबमरीन वॉरफेयर शैलो वॉटर क्राफ्ट (ASW-SWC) क्या है?
- परिचय: ASW-SWC भारतीय नौसेना के लिए विकसित एक विशेष श्रेणी का पोत है, जिसे तटीय क्षेत्र के कम गहराई वाले हिस्सों में शत्रु पनडुब्बियों की खोज, निगरानी और निष्प्रभावी करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसकी संरचना उन्नत सोनार, जल-गतिशील प्रणालियों, तेज़ गति और त्वरित प्रतिक्रिया क्षमता पर आधारित है।
- इतिहास: यह कार्यक्रम 2010 के दशक के पूर्वार्ध में तटीय रक्षा समीक्षा के बाद उभरा, जब पनडुब्बी घुसपैठ की घटनाओं से ऐसे विशेष पोतों की आवश्यकता महसूस हुई। 2019 में रक्षा मंत्रालय ने Cochin Shipyard Ltd. (CSL) और Garden Reach Shipbuilders & Engineers (GRSE) के साथ 16 पोतों के निर्माण का अनुबंध किया।
- उद्देश्य:;इन पोतों का उद्देश्य माइन-लेइंग, सब-सर्फेस सर्विलांस, सर्च एंड रेस्क्यू (SAR) और लो-इंटेंसिटी मैरीटाइम ऑपरेशंस (LIMO) को सक्षम करना है।
स्वदेशी ASW जहाज़ ‘माहे’ का परिचय:
INS माहे इस श्रृंखला का पहला पोत है, जिसे 2021 से 2024 के बीच डिजाइन, निर्माण, फिटमेंट और ट्रायल प्रक्रियाओं से गुजरते हुए नौसेना की आवश्यकताओं के अनुरूप तैयार किया गया।
इस पोत का नाम ‘माहे’—मालाबार तट के ऐतिहासिक समुद्री नगर से प्रेरित है। इसके क्रेस्ट में उरुमी (प्राचीन कलारीपयट्टु तलवार) दर्शाई गई है, जो इसकी युद्धक तैयारी, चपलता और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक हैं।
INS माहे की प्रमुख विशेषताएँ:
- यह ASW-SWC श्रृंखला का पहला पोत है, जिसका विस्थापन मान लगभग 896–1100 टन है, जो इसे उथले जल में संचालन के लिए उपयुक्त बनाता है।
- पोत में वॉटर-ज़ेट प्रोपल्शन सिस्टम लगा हुआ है, जिससे यह अधिक गतिशीलता और लगभग 25 नॉट की शीर्ष गति प्राप्त करने में सक्षम है।
- इसकी हथियार प्रणाली में RBU-6000 रॉकेट लॉन्चर, लाइटवेट टॉरपीडो ट्यूब्स, और डिकॉय लॉन्चर शामिल हैं।
- इसकी परिचालन रेंज 1800 नॉटिकल माइल है, जिससे लंबी तटीय गश्त संभव है।
- पोत पर दो Rigid-Hulled Inflatable Boats (RHIBs) हैं, जो बोर्डिंग, SAR और तटीय अभियानों में सहायक हैं।
- इसमें DRDO द्वारा विकसित एएसडब्ल्यू कॉम्बैट सूट, Abhay hull-mounted sonar, Low Frequency Variable Depth Sonar (LFVDS) और उन्नत प्रबंधन प्रणालियाँ — FCS, IPMS, APMS, BDCS शामिल हैं।
- इसमें कुल 57 कर्मियों (7 अधिकारी और 50 नाविक) के दल द्वारा संचालन करने की क्षमता है।
- माहे-क्लास पोतों में 80% से अधिक स्वदेशी सामग्री का उपयोग किया गया है, जो रक्षा उत्पादन में भारत की आत्मनिर्भरता को दर्शाता है।
इसका रणनीतिक महत्व:
- सुदृढ़ तटीय सुरक्षा ढाँचा: ये पोत उन उथले तटीय क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हैं, जहाँ बड़े युद्धपोत प्रभावी ढंग से कार्य नहीं कर सकते। इनकी त्वरित पनडुब्बी-रोधी क्षमता से भारत का लेयर्ड कोस्टल डिफेंस मजबूत होता है।
- पनडुब्बी-रोधी युद्ध क्षमता में वृद्धि: आधुनिक सोनार, टॉरपीडो और रॉकेट लॉन्चर से सुसज्जित यह प्लेटफॉर्म भारतीय नौसेना को उप-सतही खतरों से निपटने में सक्षम बनाता है। यह क्षेत्रीय समुद्री प्रतिस्पर्धा में एक महत्वपूर्ण संतुलन प्रदान करता है।
- भविष्य की तैनाती: उथले जल में संचालन, तीव्र गतिशीलता और मॉड्यूलर प्रणालियाँ, इसे शांति काल और युद्धकाल दोनों में प्रभावी बनाती हैं। यह समुद्री डोमेन जागरूकता और तटीय निगरानी के लिए महत्वपूर्ण है।
- ब्लू वॉटर नेवी की दिशा में प्रगति: तटीय सुरक्षा मजबूत होने से नौसेना के बड़े प्लेटफॉर्म—जैसे डेस्ट्रॉयर, फ्रिगेट और पनडुब्बियाँ—हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में शक्ति-प्रक्षेपण भूमिकाओं पर अधिक ध्यान दे सकते हैं।
